लेखक एक जीवित ईकाई है. इसका सीधा सा तात्पर्य यही है कि वह प्रत्येक अन्याय के विरोध में मुखर रहे. विरोध जीवित होने का प्रमाण है. वह किसी ऐसे समूहगान का हिस्सा न बने, न ही किसी ऐसे सुर में सुर मिलाए जो तात्कालिक है. उसकी मंशा वह नहीं ही रहे जो एक सरलीकरण की प्रक्रिया से गुजरते हों. यद्यपि …
लेखक एक जीवित ईकाई है, तात्पर्य कि वह प्रत्येक अन्याय के विरोध में मुखर रहे !
