'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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भारत का इतिहास पराजयों का इतिहास क्यों है ?

किसी भी देश की नई पीढ़ी जब अपने देश का इतिहास पढ़ती है तो उसे अपने पूर्वजों के बारे में जानकारी मिलती है। आज हम जब भारत का इतिहास पढ़ते हैं तो हमें ज्ञात होता है कि भारत कई सदियों तक विदेशी आक्रमणकारियों (ईरानी, शक, कुषाण, हूण, पहलव, यवन, मुगल, पुर्तगाली, डच, अंग्रेज, फ्रांसीसी आदि) के हाथों लुटता-पिटता रहा है …

उत्पीड़कों की हिफाजत कर रही है हमारी कानून व्यवस्था

भारत के संविधान में सस्ते और सुलभ न्याय की व्यवस्था कायम की गई है. वहां पर प्रावधान किया गया है कि वादकारियों को समय से सस्ता और सुलभ न्याय मुहैया कराया जाएगा, मगर आजादी के 76 साल बाद हम देख रहे हैं कि जनता को सस्ता और सुलभ न्याय देने की संवैधानिक व्यवस्था को धराशाई कर दिया गया है. अन्याय …

सोमालियन पार्लियामेंट फासिस्ट आर्किटेक्चर के ध्वंसावशेष का प्रतिरुप है भारत का मोदी निर्मित ‘सेन्ट्रल विष्टा’

पेलाजो ब्राशची…मुसोलिनी की फासिस्ट पार्टी का मुख्यालय हुआ करता था, फासिस्ट आर्किटेक्चर का एक अनुपम उदाहरण है. तस्वीर में यह त्रिकोणीय भवन, फिलहाल 1934 के इलेक्शन के लिए सज धजकर तैयार है. भवन के सामने एक इटली- श्रेष्ठ इटली का नारा देने वाला, ‘आटरकी’ अर्थात आत्मनिर्भरता के प्रबल समर्थक प.पू. वेनिटो जी मुसोलिनी की तस्वीर लगी है. जी हां, 1921 …

कबीर : इंसान और इंसानियत के सच्चे प्रतीक और प्रतिनिधि

कबीर भारत के ऐसे सबसे पहले और सबसे बड़े ऐसे कवि और संत हुए हैं, जिन्होंने सदियों से सामाजिक रूढ़ियों और धार्मिक सड़ांध में बिलबिलाते भारतीयों को शब्दों के तमाचे गाल पर लगाकर जगाने का काम किया, कान ऐंठकर जीवन और जगत की सच्चाई को उजागर किया, और आंख फाड़कर दिखाया कि हकीकत क्या है, और झूठ क्या ? सबसे …

राजद्रोह कानून खत्म करने की कोशिश में खुद रिटायर हो गए चीफ जस्टिस रमन्ना

रिटायर हो गए चीफ जस्टिस एन. वी. रमन्ना जाते-जाते देश को हौसला दे रहे थे कि उनके रहते भारतीय दंड संहिता में राजद्रोह का अपराध खत्म कर दिया जाएगा. सुनवाई के अन्तिम दिन केन्द्र सरकार के तारणहार सेनापति साॅलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बहुत वर्जिश की. कोर्ट को तरह-तरह से आश्वासन दिया कि केन्द्र सरकार इस मामले में गंभीर है. …

…ये चौकीदार ही चोर है !

क्लाईव डिप्रेशन का मरीज था. एक पल में उत्साही, ऊर्जावान और दूसरे पल उदास, निराश उबा हुआ. अजब सी मृत्युइच्छा थी उसमें…!और यही ताकत भी थी. बड़े से बड़ा खतरा लेने से न चूकता. युद्ध में यह उसकी ताकत थी, तो शांति उसे स्याह अंधेरे में डुबा देती. सेंट डेविड के किले में ऐसे ही एक पल उसने कनपटी से …

लेनिन (1902) : आलोचना की स्वतंत्रता के मायने क्या हैं ?

‘आलोचना की स्वतंत्रता’ निस्संदेह मौजूदा समय का सबसे फैशनेबल नारा है. यह सभी देशों और समाजवादियों और जनवादियों के बीच चल रहे विवादों में सर्वाधिक इस्तेमाल किया जाने वाला मुद्दा है. विवाद में शामिल पार्टियों में से कोई एक अगर आलोचना की स्वतंत्रता के लिए गंभीर अपील करे तो पहली नजर में इससे ज्यादा विचित्र बात कोई और नजर नहीं …

आई डोंट वांट पॉलिटिक्स…!

ऐसा नहीं है कि इस सरकार के खिलाफ गम्भीर आंदोलन नहीं हुए. बल्कि मुझे लगता है कि जितने छोटे-छोटे आंदोलन पिछले 8 – 9 साल में हुए है, उसका औसत पिछली सरकारों तुलना में ज्यादा है. मगर इनमें से कोई वांछित नतीजे नहीं ला सका. किसान आज भी MSP के लिए इंतजार में है, CAA लागू है, वन रैंक वन …

संस्कृत नहीं, पालि भारत की सबसे पुरानी ऐतिहासिक भाषा है

ए. सी. दास ने ‘ऋग्वैदिक इंडिया’ में लिखा है कि आर्यों का मूल निवास ‘सप्तसिंधु’ या ‘पंजाब’ में था. कुछ लोग जो आर्यों को बाहर से आया मानते हैं, वे भी बताते हैं ये लोग प्रथमत: सप्तसिंधु प्रदेश में बसे थे. एक संगत अनुमान यह है कि ऋग्वेद के अधिकांश भाग की रचना लगभग 1500-1200 ई. पू. के बीच पंजाब …

पूंजीपतियों के मुनाफे व दौलत में वृद्धि की बाधाएं हटाने वास्ते ही आता है फासीवाद

  भारत में बहुत से लोग अभी भी पूछ रहे हैं कि फासीवाद कहां है. उन्हें लगता है कि नाजियों की तरह के न्यूरेमबर्ग जैसे कानून (यहूदियों से नागरिक अधिकार छीनने वाले कानून) तो अभी तक लागू नहीं हुए, यातना शिविर व गैस चैम्बर कहां हैं, और बड़े पैमाने पर जनसंहार तो अभी तक नहीं हुआ, अतः भारत में तानाशाही …

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