'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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पुस्तक / फिल्म समीक्षा

‘रामभक्त रंगबाज’: ‘फर्क साफ है’…

‘पाजामे की लंबाई इकतालीस करूं या साढ़े इकतालीस ?’ ‘कुछ भी कर दो. आधे इंच से क्या फर्क पड़ता है. ‘फर्क पड़ता है. आधे इंच से आदमी हिन्दू से मुसलमान हो सकता है.’ राकेश कायस्थ का चर्चित उपन्यास ‘रामभक्त रंगबाज’ इसी ‘फर्क’ की कहानी कहता है, जो 1990 के बाद दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रहा है. भारत …

‘काले अध्याय’ : नियति के आईने में इतिहास और वर्तमान

2015 में मनोज रूपड़ा का चर्चित उपन्यास ‘काले अध्याय’ भारतीय ज्ञानपीठ से छपकर आया था. इस साल इसका अंग्रेजी तर्जुमा ‘‘I Named My Sister Silence’ एका [Eka] प्रकाशन से छपकर आयी है. इसका अनुवाद– ‘The Adivasi Will Not Dance’ के लेखक हंसदा शेखर (Hansda Sowvendra Shekhar) ने किया है. किताब 2024 के लिए JCB Literary Prize award के लिए भी …

गिरमिटिया : बिदेसिया हुए पुरखों की कथा – ‘कूली वूमन- द ओडिसी ऑफ़ इन्डेन्चर’

आज से सौ साल पहले वह कलकत्ता से पानी के जहाज़ में बैठ एक अनजान सफ़र पर निकली थी. उस सफ़र में उसके साथ कोई अपना न था. वह अकेली थी. वह गर्भवती थी. ‘द क्लाईड’ नामक उस जहाज़ पर जो उसके हमसफ़र थे, उन्हें भी मंज़िल का पता न था. साथ में कुछ बहुत ज़रूरी चीज़ों के गट्ठर थे …

‘नास्टेल्जिया फॉर दि लाइट’ : एक और 9/11

9/11 आज एक मुहावरा बन चुका है. 2001 के बाद की दुनिया और 2001 के बाद की अमरीकी विदेश नीति को इन दो जादुई अंकों से ‘डीकोड’ किया जा सकता है. लेकिन कम लोगों को यह पता है कि दुनिया में एक और 9/11 है, जिस पर निरंतर पर्दा डाला जाता है. 11 सितम्बर, 1973 को दक्षिण अमरीकी देश चिली …

माई नेम इज़ सेल्मा : यह सिर्फ़ उस यहूदी महिला की कहानी भर नहीं है…

98 साल की उम्र में यहूदी महिला ‘सेल्मा’ (Selma van de Perre) ने 2021 में इसी नाम से अपना संस्मरण लिखा. हिटलर के शासन के दौरान जर्मनी व यूरोप में 1933 से 1945 के बीच यहूदियों की क्या स्थिति थी, इसका बहुत ही ग्राफिक चित्रण इस किताब में है. नीदरलैंड में एक मध्यवर्गीय यहूदी परिवार में जन्मी सेल्मा, जर्मन- राजनीति …

‘NAZARIYA’ : Land Struggles in India

सोशल मीडिया / इंटरनेट और तेज़ी से बदलते दौर में लघु-पत्रिकाओं के सामने एक बड़ा संकट यह खड़ा हो गया है कि वे पाठकों के हाथ में पहुंचने से पहले ही बासी हो जा रही हैं. ऐसे चुनौतीपूर्ण दौर में वही पत्रिकाएं अपनी प्रासंगिकता बनाये रख सकती हैं, जो न्यूज़ (news) से ज्यादा व्यूज़ (views) पर जोर दे. और वह …

‘वो गुज़रा ज़माना’: नमक के खंभों पर टिका समय…!

प्रथम विश्व युद्ध के समय आस्ट्रिया और रूस आमने सामने थे. ‘राष्ट्रवाद’ चरम पर था. आस्ट्रिया की राजधानी वियेना में सड़क पर अगर कोई रूसी बोलता पाया जाता तो उसे ‘लिंच’ किया जा सकता था. लेकिन युद्ध ख़त्म होने के बाद की भयानक तबाही और सामानों की भारी किल्लत के बीच वियेना के लोग सड़कों पर रूसी सैनिकों की वर्दी …

‘पैरेलल मदर्स’: सच से आंख मिलाती महिलाएं और इतिहास…

भारत जैसे देशों में महिलाओं को मातृत्व का सुख उनके व्यक्तित्व और उनकी पहचान को कत्ल करके ही संभव होता है. लेकिन कुछ खुद्दार महिलाएं ऐसी भी हैं, जो अपने मातृत्व को अपनी पहचान के साथ जोड़ कर रखती हैं और कभी-कभी तो मातृत्व के माध्यम से ही वे पितृसत्ता को चुनौती भी देती हैं. ऐसी ही कहानी है स्पेन …

‘कायर’ : हम सबकी भावनात्मक टकराहटों की कथा…

‘संवेदना एक दुधारी तलवार है, जो इसका इस्तेमाल करना नहीं जानता, उसे इससे बचकर रहना चाहिए. इसी में उसकी भलाई है. किसी अफीम की तरह संवेदना शुरू में पीड़ित को सांत्वना देती है, किन्तु इसे देने वाले को यदि इसकी सही मात्रा और अवसर का ज्ञान न हो तो यह जहर बन जाती है.’ [पेज 173] ‘स्टीफन स्वाइग’ का मशहूर …

बिरसा मुंडा’ की याद में : ‘Even the Rain’— क्या हो जब असली क्रांतिकारी और फिल्मी क्रांतिकारी एक हो जाये !

‘Even the Rain’— क्या हो जब असल क्रांतिकारी और फिल्मी क्रांतिकारी एक हो जाये ? यही दिलचस्प कहानी है 2010 में आयी एक महत्वपूर्ण फ़िल्म ‘Even the Rain‘ की. 2000 में स्पेन की एक फ़िल्म युनिट एक फ़िल्म की शूटिंग के लिए अमेरिका के सबसे गरीब देश बोलीविया में उतरती है. विषय है- कोलम्बस का लैटिन अमेरिकी देशों की विजय …

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