20वीं शताब्दी के अंत और 21वीं शताब्दी की शुरुआती दौर में इस देश की धरती को, अगर वही लोग, रक्तरंजित करने में लिप्त हो जाएँ, जो इसे अपनी “मांं” के समान “आदरणीय और पूज्य” बताते नहींं थकते; तो इस पर रोया जाय या हंसा जाए? जमीन पर बहे खून की हर बूंंद यदि “कमल” की फसल उगाने में उर्वरक …
दंगे होने लगे जटिल, गांंठ खोलना नहीं है आसान
