'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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साम्राज्यवाद-सामंतवाद-विरोधी आन्दोलन के प्रतीक हैं अमर शहीद बिरसा मुंडा

साम्राज्यवाद-सामंतवाद विरोधी बिरसईत का हुलगुलान और अमर शहीद बिरसा मुंडा के रणनीति और बर्तमान परिस्थिति पर ओरमांझी के बाघिनब॔डा में चर्चा सम्पन्न हुआ. मनमारू और जराइकेला गांव के 7 मुखवीरों ने 3 फरवरी (1900) को जंगल में धुआं उठते देख कर वहां पहुंचा, जहां उनका भगवान बिरसा मुंडा और डोका मुंडा की पत्नी सली सो रही थी और बाकी भात …

भारत में ‘लिव इन’ भी स्त्रियों के प्रति अन्यायी और क्रूर व्यवस्था!

लिव इन रिश्ते में हत्याओं के बाद इन दिनों ‘लिव इन’ संबंध चर्चा में हैं, क़तई जायज़ चर्चा में अपनी हिस्सेदारी बांटते हुए ‘लिव इन’ रिश्ता है क्या ? यह जानना समझना बेहद ज़रूरी है. ‘लिव इन’ यूरोपिय देशों से आयातित स्त्री पुरुष संबंधित व्यबस्था है, हमारे अपने देश में पिछले दो दशक से तेज़ी से फलता-फूलता इतना विकसित हो …

दुनिया भर के क्रांतिकारियों के आइकन/हीरो अर्नेस्टो चे ग्वेरा

आज यानि 14 जून, 1928 दुनिया के सबसे बड़े सर्वहारा अंतर्राष्ट्रीयतावादी क्रांतिकारी कॉमरेड चे ग्वेरा का जन्म दिवस है. वे अर्जेन्टाइना के मूल निवासी थे. चे ग्वैरा बोलीविया में क्रांतिकारी संघर्ष का नेतृत्व कर रहे थे. इसी संघर्ष में बोलीविया के जंगलों में सीआईए और बोलीविया की सेना से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे. उनका पूरा नाम अर्नेस्टो …

अर्नेस्टो चे ग्वेरा : क्रांति और प्रेम का अमर नायक

क्रांतिकारियों को जिन लोगों ने नहीं देखा है, क्रांतिकारी विचारों को जिन लोगों ने नहीं पढ़ा है उनके लिए क्रांतिकारियों का व्यक्तित्व, उनका स्वभाव, उनकी आत्मीयता, भाईचारा, संवेदनशीलता जानने का एक ही तरीका है उनके गुणों को जानना और सीखना. ये बातें उन युवाओं के लिए ज्यादा मूल्यवान हैं जो विगत पच्चीस साल में पैदा हुए और बड़े हुए हैं. …

106 वर्ष पुराने पटना संग्रहालय को निजी हाथों में सौंपने के खिलाफ राष्ट्रीय प्रतिवाद संगठित करो !

बुद्धिस्ट पुरातत्वों के लिए प्रसिद्ध 106 वर्ष प्राचीन विश्व ख्याति के संग्रहालय को राज्यपोषित आक्रमण से बचाया जाए. 106 वर्ष प्राचीन पटना संग्रहालय का स्वामित्व सोसायटी एक्ट के अंतर्गत संचालित एनजीओ बिहार संग्रहालय समिति को सौंपना गैर-कानूनी और जुर्म है. संविधान सभा के अध्यक्ष, बिहार निर्माता सच्चिदानंद सिन्हा जिस संग्रहालय के प्रस्तावक रहे हों, प्रसिद्ध इतिहासकार काशी प्रसाद जायसवाल जिस …

हीरामनी उर्फ आशा को सजा सुनाते हुए माओवादी आंदोलन पर फासीवादी टिप्पणी से न्यायपालिका आखिर क्या साबित करना चाह रही है ?

8 जून 2012 को सीमा आज़ाद और विश्व विजय को बिना किसी साक्ष्य और बिना किसी कृत्य के आरोप के अजीवन कारावास की सज़ा हो गयी थी. इसके बाद दोनों को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सज़ा गलत मानते हुए 6अगस्त 2012 को जमानत पर रिहा कर दिया. उसके बाद कानपुर में बंद 8 लोगों में से कुछ 4 वर्ष की …

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 9 साल की कार्यावधि में आम जनता के 50 सवाल

प्रति, श्रीमान नरेंद्र मोदी परिधानमंत्री, भारत विषय :- मोदी सरकार के 9 वर्ष पूर्ण होने पर खुला पत्र श्रीमान, मेरे इस खुले पत्र में लिखित 50 सवालों का जवाब कृपया पत्रकारवार्ता ले कर दें – 9 शहरों के नाम बताएं जो स्मार्ट सिटी बने ? सांसदों के गोद लिए हुए 9 गांवों के नाम बताएं जो आदर्श गांव बने ? …

क्या सच में ये अमीर अपनी मेहनत से अमीर बने हैं ?

आप के बच्चों के अच्छे नम्बर आये होंगे. आप बहुत खुश भी होंगे. आप अपने बच्चों को प्रेरित कर रहे होंगे कि वो बहुत बड़े आदमी बनें. आप अपने बच्चों से कहते होंगे देखो टाटा, अम्बानी और अदाणी जिंदल…, अपनी मेहनत से कितने बड़े आदमी बन गए हैं. आप अपने बच्चों को भी प्रेरित करते होंगे कि वे भी मेहनत …

दलित कविता का वर्तमान – ‘शिकायत’ से ‘चुनौती’ तक का सफर

‘मुक्ति कभी अकेले की नहीं होती’, इसमें वे तमाम लोग शामिल होते हैं जो मेहनतकश हैं. हजारों वर्षों से दासत्व का जीवन जी रहे दलित, पिछड़े (शुद्रों) के साथ साथ स्त्रियों, जिसपर दासत्व का दोहरा बोझ होता है, इसलिए सवाल जब मुक्ति की होगी तो उस मुक्ति में स्त्री की मुक्ति सबसे पहले देखी जायेगी और उसके सवाल को अछूतों-दलितों …

मारुती मज़दूरों के साथ अदालत में घोर अन्याय हुआ है

…क्योंकि शासक वर्ग द्वारा, मज़दूर वर्ग के विरुद्ध, यह एक युद्ध लड़ा गया था, एक वर्ग-युद्ध, जिसमें में मज़दूर हार गए और शासक, मालिक वर्ग जीत गया. ये, लेकिन, यह इस वर्ग-युद्ध का फाइनल, निर्णायक राउंड नहीं था. वह अभी लड़ा जाना है. इतिहास गवाह है; हार के बाद मज़दूर, लड़ने के लिए फिर उठते हैं; लेकिन, मज़दूर जीत गए …

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