'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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ग्राउण्ड रिपोर्ट : बेलसोनिका ‘ठेका मजदूर’ झेल रहे हैं भीषण दमन और उसके खिलाफ जबरदस्त प्रतिरोध

‘लखानी मजदूर संघर्ष समिति’ तथा ‘क्रांतिकारी मजदूर मोर्चा, फरीदाबाद’ के बैनर तले, फरीदाबाद के सैकड़ों मजदूरों, 2 मई को शाम 6 बजे, सामुदायिक सेक्टर 24 में, ‘बेल्सोनिका ऑटो कॉम्पोनेन्ट एम्प्लाइज यूनियन, मानेसर’ के संघर्षरत मजदूरों के समर्थन में, अपनी वर्गाय प्रतिबद्धता और सॉलिडेरिटी रेखांकित करते हुए, एक मजदूर आक्रोश सभा आयोजित किया, जिसमें लखानी मजदूरों समेत, दूसरे मजदूरों और मजदूरों …

लुटेरी व्यवस्था को बदलने का सबसे प्रहारक औज़ार है मार्क्सवाद

‘जैसे हम कम्युनिस्ट पार्टियों की आलोचना करते हैं. अब सत्ता में नहीं हैं वो. कहीं नजर नहीं आते. एक केरल में कोने में बैठे हैं, फिर भी वो विचारधारा खतरनाक है.’ – श्री मोदी. एक विशद लोकतान्त्रिक देश में, लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से चुन कर आये, सत्ता शिखर पर विराजमान व्यक्ति द्वारा आज़ादी के बाद पहली बार कम्युनिस्टों और उनके सिद्धांतों …

सेंगोल यानी राजदण्ड : पूरा भाजपाई गिरोह पागल हो गया है ?

अंग्रेजों के जिस राजदंड से जनता पे जुल्म करते थे इस राजदंड को पंडित नेहरू ने इलाहाबाद संग्रहालय में दफना दिया था, अंग्रेजों के दलाल उसे भारतीय संसद में स्थापित करने जा रहे हैं. विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की संसद में राजदंड क्यों स्थापित किया जाएगा ? अगर राजदंड स्थापित होगा तो राजा कौन होगा ? क्या मध्ययुगीन राजशाही …

एक हाहाकारी सत्य कथा : गब्बर वर्सेज नेहरू …

माननीय श्री गब्बर सिंह 1926 में पैदा हुए थे. मामाजी के मध्यप्रदेश में भिंड की पावन धरती पर उनका बचपन बीता. यह सूखा इलाका है, तो आसपास न कोई तालाब था, न मगरमच्छ ! लेकिन कुछ दूर चंबल नदी थी, वहां के मगरमच्छ प्रसिद्ध है. तो महज 20 साल की उम्र में माननीय गब्बर जी ने अपना घर छोड़ दिया …

नए संसद भवन उद्घाटन में पेंचबाजी

प्रधानमंत्री द्वारा 28 मई को संसद के नए भवन अर्थात् सेन्ट्रल विस्टा के उद्घाटन की खबर से बहस का मुद्दा गहराता जा रहा है. राजनीतिक चोचलेबाजी से ऊपर उठकर केवल संवैधानिक प्रावधानों तक सीमित और नियंत्रित रहने से जनता के पक्ष में मुनासिब परंपरा गढ़ी जा सकती है. संविधान के अनुसार भारत फेडरल गणतंत्र है अर्थात् केन्द्र सरकार के साथ …

एक अदद रुदन मंत्रालय की जरूरत है !

दो साल पहले की मेमोरी आयी है…एक अदद, रुदन मंत्रालय की जरूरत है ! जी हां, कैबिनेट सिस्टम ऑफ गवरनेंस, असल में जिम्मेदारियों को बांटने के लिए बनाई गई विधि है. एक विशाल देश में प्रशासन के अलग अलग विषय होते है – रक्षा, विदेश, गृह, कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि. हर विषय अपने लिए पूर्णकालिक विशेषज्ञ की मांग करता है. …

प्रेम एक कला है, संकल्प है अपना जीवन पूरी तरह से एक दूसरे व्यक्ति के जीवन को समर्पित कर देने का

प्रस्तुत आलेख एरिक फ्रॉम की विश्वविख्यात रचना ‘द आर्ट ऑफ लविंग’ पुस्तक से लिया गया है. इसका हिन्दी अनुवाद युगांक धीर ने किया है. जैसा कि यह रचना अपने शुरुआत में ही कहता है, ‘प्रेम में, अगर सचमुच वह ‘प्रेम’ है, एक वायदा जरुर होता है – कि मैं अपने व्यक्तित्व और अस्तित्व की तहों तक प्रेम करता हूं, अपने …

राहुल सांकृत्यायन की पुस्तक ‘रामराज्य और मार्क्सवाद’ की भूमिका – ‘दो शब्द’

जब से दुनिया में मार्क्सवाद ने खुद स्थापित किया है और दुनिया भर के मेहनतकशों ने तहे दिल से अपनाया है, तब से ही मार्क्सवाद के खिलाफ दुनियाभर के तमाम लुटेरों ने संगठित हमला बोल दिया है. यह युद्ध सशस्त्र होने के साथ-साथ सैद्धांतिक तौर पर भी जबरदस्त तैयारियों के साथ हमलावर है. जैसा कि स्वयं कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक …

हिन्दुत्ववादियों को पत्थर की रक्षा में तो धर्म दिखाई देता है, पर…

हिन्दू मानसिकता पत्थर की मूर्ति को भगवान या देवता मानकर उसकी न सिर्फ पूजा करता है, बल्कि उस पत्थर की मूर्ति के लिए लोगों की हत्या भी करने से परहेज नहीं करती है. यह कितनी बड़ी विडम्बना है कि कच्छ की रानी का विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में पुजारी द्वारा बलात्कार को तो भूला दिया जाता है, पर उस नारी …

अगर दर्शन सूफियाना हो तो वह साइंसदाना कैसे हो सकता है ?

दुनिया में पहले तकनीक आई, बाद में विज्ञान आया. यूरोप के छलांग मारकर आगे बढ़ने का इतिहास तकनीक के पीछे के वैज्ञानिक नियम ढूंढना था. दुनिया और ब्रह्माण्ड के गतिशास्त्र के नियम खोजना था. भारत, अरब और चीन, दुनिया की ये तीन प्राचीनतम सभ्यताएं अपने अपने ढंग से नई-नई तकनीक खोजकर जब धीरे-धीरे विकसित हो रही थी, तब यूरोप कहीं …

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