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मैं, मैं हूं, और मैं ही रहुंगी…

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मैं, मैं हूं, और मैं ही रहुंगी...
मैं, मैं हूं, और मैं ही रहुंगी…

मैं,
मैं हूं ,
मैं ही रहूंगी.
मै ‘राधा’ नहीं बनूंगी,
मेरी प्रेम कहानी में,,,
किसी और का पति हो,
रुक्मिनी की आंख की
किरकिरी मैं क्यों बनूंगी,
मैं ‘राधा’ नहीं बनूंगी.

मै ‘सीता’ नहीं बनूंगी,
मै अपनी पवित्रता का,
प्रमाणपत्र नहीं दूंगी,
आग पे नहीं चलूंगी
वो क्या मुझे छोड़ देगा-
मै ही उसे छोड़ दूंगी,
मै सीता नहीं बनूंगी…

ना मैं ‘मीरा’ ही बनूंगी,
किसी मूरत के मोह में,
घर संसार त्याग कर,
साधुओं के संग फिरूं
एक तारा हाथ लेकर,
छोड़ ज़िम्मेदारियां –
मैं नहीं मीरा बनूंगी.

‘यशोधरा’ मैं नहीं बनूंगी
छोड़कर जो चला गया
कर्तव्य सारे त्यागकर
ख़ुद भगवान बन गया,
ज्ञान कितना ही पा गया,
ऐसे पति के लिये
मै पतिव्रता नहीं बनूंगी,
यशोधरा मैं नहीं बनूंगी.

‘उर्मिला’ भी नहीं बनूंगी मैं
पत्नी के साथ का
जिसे न अहसास हो,
पत्नी की पीड़ा का ज़रा भी
जिसे ना आभास हो,
छोड़ वर्षों के लिये
भाई संग जो हो लिया-
मैं उसे नहीं वरूंगी
उर्मिला मैं नहीं बनूगी.

मैं ‘गांधारी’ नहीं बनूंगी,
नेत्रहीन पति की आंखें बनूंगी…
अपनी आंखे मूंद लू
अंधेरों को चूम लू
ऐसा अर्थहीन त्याग
मैं नहीं करूंगी,,
मेरी आंखो से वो देखे
ऐसे प्रयत्न करती रहूंगी…
मैं गांधारी नहीं बनूंगी.

मै उसी के संग जियूंगी,
जिसको मन से वरूँगी,
पर उसकी ज़्यादती
मैं नहीं कभी सहूंगी
कर्तव्य सब निभाऊंगी
लेकिन,
बलिदान के नाम पर मैं यातना नहीं सहूंगी
मैं
मैं हूं,
और मैं ही रहुंगी

  • अनाम (नाम मालूम नहीं है)

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