Home कविताएं मैं उन नमक हरामों से पूछना चाहती हूं…

मैं उन नमक हरामों से पूछना चाहती हूं…

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अनीता गौतम

मैं उन नमक हरामों से पूछना चाहती हूं
जो कावड़ उठा कर
पत्थर के लिंग और योनि को पूजने में व्यस्त है
पिछले 5000 सालों में
कौन-सा भोलानाथ तुम्हे बचाने आया ?
किस शिव शंकर ने
तुम्हारी गुलामी की जंजीरें काटी ?
किस नीलकंठ ने तुम्हारे गले में पड़ी
थूक की हंडिया खोली ?
किस महादेव ने तुम्हारे
पिछवाड़े बंधी झाड़ू खोली ?

जिस ओम नमः शिवाय का जाप
आज आप सब कर रहे हो
इस को सुनने मात्र पर भी
आपके कानो में पिघला हुआ सीशा
डाल दिया जाता था

जिस ओम नमः शिवाय का जाप
आज आप कर रहै हो
इसको जपने मात्र पर आपकी जुबान
काट ली जाती थी
जानवरों से बदतर जिंदगी थी आपकी
उस रामराज में
जिसकी परिकल्पना में आज
कावड़ उठा कर हरिद्वार की दौड़
आप लगा रहे हो.

आपकी बेड़ियां काटने कोई भोला नहीं आया
आपकी बेड़ियां बाबा साब अम्बेडकर ने काटी
और
कहा था कि
सभी दबे कुचले, दलित शोषित,
पिछडों का एक ही तीर्थ है
और वो है भारतीय संसद
उस तक पहुंचने के रास्ते मैं
आप सभी के लिए खोल रहा हूं

तोड़ दो बेड़िया
और पहुच जाओ संसद,
लेकिन
तुम मानसिक गुलाम
तुम पहुंच रहे हो हरिद्वार ?

तुम्हें क्या ?
तुम खेलते रहो
यादव, चमार, पासी, भंगी,
कुर्मी, कुम्हार आदि आदि
लेकिन एक बात याद रखना
पिछली बार 5000 सालों में
कोई अम्बेडकर पैदा हुआ था
हर रोज अम्बेडकर नहीं पैदा होते
और
तुम्हें आजादी मुफ्त में नहीं मिली है

  • अनीता गौतम

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