Home कविताएं अगर मैं जंगल में नहीं होता…

अगर मैं जंगल में नहीं होता…

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अगर मैं जंगल में नहीं होता
तो किसी जेल में होता
मुझे आज जंगल और
जेल में से किसी एक को चुनना है
और मैने जंगल को चुन लिया है
जो इस मुक्ति युद्ध में
हमारा कवच बन गया है
जंगल वैसे ही बचा रहा है हमें
जैसे हम बचा रहे हैं जंगल को
और एक-दूसरे के सहयोग से
हम दोनों फल-फूल रहे हैं

जिन्हे जंगल और इंसान के
बीच का ये रिश्ता पसंद नहीं है
वही हमें जंगली, असभ्य और
नक्सली कह रहे हैं
जो खत्म कर देना चाहते हैं
इंसान और प्रकृति के बीच का रिश्ता
जो इंसान को मशीन बना देना चाहते हैं
उसकी सारी क्षमताओं को
पूंजी की सेवा में लगा देना चाहते हैं

जबकि हम चाहते हैं
इंसान की सारी क्षमताओं को
मानवता के सेवा में लगाया जाएं
इस दुनियां से शोषण, गरीबी, अज्ञानता और
अन्याय को मिटाया जाएं

ऐसी दुनियां बनाया जाएं
जहां देश तो हो पर सरहदे न हो
जहां सरकार तो हो पर
जेल और पुलिस न हो
जहां इंसानों के बीच किसी तरह का भेदभाव न हो
हमारा जुर्म बस यही है कि हम ऐसा सोचते हैं
ऐसी दुनियां बनाने के लिए लड़ते हैं
इसलिए राजा की नजर में खटकते हैं

जंगल आज मैट्रिक्स फिल्म की तरह
इंसानों का घर बन गया है
जहां से हम आते है मशीन बना दिए गए
अपने भाई-बहनों को आज़ाद कराने
जिन्होंने लोकतंत्र के नाम पर अपना भविष्य
तानाशाह को सौप दिया है
जो उनकी जिन्दगी के साथ
वैसे ही खेल रहा है
जैसे रोमन अपने गुलामों के
जिन्दगी के साथ खेलते थे
जो इस खेल में जीत को ही
गुलामों की सफलता कहते हैं
इंसान की सफलता इनके खेल में
शामिल होने में नहीं
इनसे आज़ाद होने में है
यही वो बात है
जो हम सबसे कहते है
और इंसान को इंसान की तरह देखते है !

  • विनोद शंकर
    4/9/2023

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