Home कविताएं इंतजार में सूर्य

इंतजार में सूर्य

2 second read
0
0
610

जब देश और दुनिया की समूची प्रबुद्ध मनीषा
गुजर रही हो मेनोपाॅज के दौर से
जब बोझ व बंध्या हो गई हो उनकी कोख
जब सृजन, ठहराव और असृजन का ही पर्याय बन गया हो
जब रहनुमाओं की रहनुमाई
दम तोड़ रही हो
घने अंधकार वाली बंद गलियों में
तब और तब मेरे दोस्त
केवल तभी जरूरत है कि
झोंका जाए खुद को
अन्वेषण, अनुसंधान, आत्मालोचन में
खंगाला जाए अतीत वो
ताकि कुलांचे भरते हुए
दिशाहीन वर्तमान को
एक विश्वाकांक्षी जनाकांक्षी भविष्य की राह पर
धकेलने की कोशिशों
को मिले
नये प्रतिमान, नये संबेग और नई दिशा
ऐसे में यह अहसास जरू री है कि
विराम लेना नहीं जानता
महाकाल का रथ
बेतहाशा भागता, दौड़ता, बढ़ता जाता
अपने अनन्त यात्रा पथ पर
कंदरा युग से सभ्यता के युग तक
और अब इससे भी आगे
राह बनाते घनघोर अंधकार में भी
उनलोगों ने पहले काटी मेरी जांघें
मांस के लोथड़े के अलावा कुछ भी नहीं
काटी हाथ और पांवों की नसें
फूट पड़ी हल्की सी महज खून की चंद बूंदें
खीझकर निकाल ली आंखों की पुतली, पाकस्थली,
उलट-पुलटकर देखी यकृत, पित्त थैली
नोंचकर निकाली योनी
ना, कहीं कुछ भी नहीं !
कुछ भी नहीं दिमाग में, रीढ़ में, पीठ में, पेट में
दो अदद आंतें पड़ी रही उदास, दोनों ओर
उसे भी खोलकर देखा गया
सब खाली बेकार !
लेकिन दिल पर हाथ पड़ते हीं
हां, पड़ते ही हाथ दिल पर
उनलोगों को साफ-साफ समझ में आ गया
वाकई इसमें कुछ है !
राक्षसी दांतों और नाखूनों से चीरकर देखा,
अन्दर बसा था – एक देश बंगलादेश !

  • तसलीमा नसरीन
    (‘मुझे घर ले चलो आत्मकथा-5’ से बी. पी. सिंह द्वारा अनुदित)

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • औरत

    महिलाएं चूल्हे पर चावल रख रही हैं जिनके चेहरों की सारी सुन्दरता और आकर्षण गर्म चूल्हे से उ…
  • लाशों के भी नाखून बढ़ते हैं…

    1. संभव है संभव है कि तुम्हारे द्वारा की गई हत्या के जुर्म में मुझे फांसी पर लटका दिया जाए…
  • ख़ूबसूरत कौन- लड़की या लड़का ?

    अगर महिलायें गंजी हो जायें, तो बदसूरत लगती हैं… अगर महिलाओं की मुंछें आ जायें, तो बद…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

एक कामलोलुप जनकवि आलोकधन्वा की नज़र में मैं रण्डी थी : असीमा भट्ट

आलोकधन्वा हिन्दी के जनवादी कविताओं की दुनिया में बड़ा नाम है. उनकी कविताओं में प्रेम की एक…