Home कविताएं आखिरी सलाम…

आखिरी सलाम…

1 second read
0
0
40
आखिरी सलाम...
आखिरी सलाम…

कॉमरेड
हम तुम्हें आखिरी सलाम भी नहीं दे पाये
तुम भी तो हमारा इंतजार कर रहे होगे
अख़बार में तुम्हारी खुली आंखे देख कर तो यही लगा

लेकिन हम क्या करते
हमारे तुम्हारे बीच सत्ता की लौह दीवार जो खड़ी हो गई

सोचा था कि शायद एक मुट्ठी तुम्हारी राख तो मिल ही जाएगी
फिर मैं उसे मुट्ठी में भरकर लहराऊंगा
तुम्हे आखिरी सलाम दूंगा
और फिर राख को आसमान में बिछा दूंगा

संघर्षों की बारिश के साथ यह पृथ्वी पर आ जाएगी
मिट्टी में बहुत गहरे बहुत गहरे उतर जाएगी
और फिर एक दिन ऐसा आयेगा
कि पृथ्वी पर अनेक ‘बासवा’ लहलहाने लगेंगे

लेकिन उन्होंने हमें राख भी नहीं लेने दी
शायद इसी डर के कारण

थक हार कर हम उस जगह गए
जहां गोलियों की तीखी बौछार के बीच
तुमने अंतिम सांस ली थी
घने जंगल और बांस के झुरमुट के बीच
तुम्हारा और अन्य कामरेडों का बहुत सा सामान पड़ा था
जूते,
पानी की बोतले,
बिस्कुट के पैकेट,
दवाइयां,
कलम,
सूई धागा,
टॉर्च,
बैटरी…
और हां, एक छोटी डायरी भी

गोलियां कामरेडों को ही नहीं,
पेड़ों को भी लगी थी
मुझे देखकर घायल पेड़ थोड़ा सहमे
फिर मेरी नम आंखों में उन्हें न जाने क्या दिखा
वे आश्वस्त से लगने लगे

थोड़ी ही देर बाद
वे घायल पेड़,
गोली के घाव से लचक गए बांस,
लहुलुहान पत्ते, और कुचली गई नन्हीं घास
आहिस्ता आहिस्ता हिलने लगे

और इस सरसराहट में मुझे सुनाई पड़ने लगा-
‘क्या बहादुरी से लड़ा वह ‘उमर मुख्तार’
…हमारी रक्षा में हमारा एक और बेटा शहीद हो गया’

तभी मेरी नज़र उस छोटी डायरी पर पड़ी
पहले पेज पर कुछ हिसाब किताब
दूसरे पेज पर आड़ी तिरछी कुछ रेखाएं
फिर कुछ नोट्स
और अंतिम पेज पर शायद किसी कविता की पंक्ति

‘सूरज के साथ-साथ एक बहुत बड़ा संसार
डूब जाता है
फिर एक नए दिन को जन्म देने के लिए’

मैने यह अंतिम पेज मोड़ कर अपनी जेब में रख लिया
‘आखिरी सलाम’ की अब कोई जरूरत नहीं थी

  • सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की एक कविता का अंश

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लॉग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लॉग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • मैं तुम सबको देख रहा हूं –

    मैं तुम सबको देख रहा हूं. मैं तुम्हारा हर झूठ रिकॉर्ड कर रहा हूं. मैं तुम्हारी हर तोड़-मरो…
  • फटे जूते

    मेरे जुराबों के नीचे कई छेद हैं जिन्हें छुपाने की जद्दोजहद में फट गए हैं जूते मेरे मेरे जू…
  • नून रोटी

    सदाशिव के ध्यान में एक निहित वक्रोक्ति है जिस समय तुम किसी दिशा पटानी के तिर्यक में बरमूडा…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

मैं तुम सबको देख रहा हूं –

मैं तुम सबको देख रहा हूं. मैं तुम्हारा हर झूठ रिकॉर्ड कर रहा हूं. मैं तुम्हारी हर तोड़-मरो…