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मैं किसान हूंं

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मैं किसान हूंं

मैं किसान हूं
तुम्हारे खाने के लिए
रोटी उगाता हूं
क़र्ज़ में डूबता हूं
बाबुओं की गाली,
पुलिस की गोली खाता हूं
बैंक और साहूकार के डर से
फिनायल पी जाता हूं

क़र्ज़ से नहीं मरूंंगा
तो बैंक मार देगा
लहसुन मार देगा
प्याज मार देगा
टीबी से बच गया तो
शिवराज मार देगा

मेरी जान, मेरा जवान
और मेरी गाय
तीनों का ख़ून पीकर
जवान हुई सियासत
तीनों की लाशों से खेल रही है
किसानों और जवानों की विधवाएं
ख़ामोशी से ‘भारत माता’ नाम का
उन्मादी नाटक देख रही हैं.

गाय मेरी मां हैं लेकिन दिल्ली में
एक खौफ़नाक प्रतीक
गाय शब्द आदमखोर भीड़ को मिला
सरकारी लाइसेंस है
अब समूचे देश में
गोरक्षकों का आतंक है
किसी की हत्या कर देना
सबसे राष्ट्रवादी काम.

शहर चुक गया है
पानी मर गया है
नदियों में और आंखों में भी
मराठवाड़ा, विदर्भ या बुंदेलखंड
या क़र्ज़ के लालक़िले पर लटकी
सवा तीन लाख लाशें
किसी को परेशान नहीं करतीं.

राजा योगासन में व्यस्त है
और प्रजा आत्महत्याओं में
अब आत्महत्या न अपराध है
न ही राष्ट्रीय शर्म
किसी को भी छूट है
क़र्ज़ से, भूख से, तंगी से, बजरंगी से
उकता कर फिनायल पी लेने की.

चलो कुछ दिन ऐसा करें
मैं अनाज उगाना छोड़ दूं
तुम अनाज खाना छोड़ दो
मैं शहर आना छोड़ दूं
तुम गांव आना छोड़ दो.

प्रधानमंत्रीजी !
आप योगी हैं
सिंहासन के भोगी हैं
क्या आप भी रोटी खाते हैं ?
आप रोटी क्यों खाते हैं ?
आप कुछ दिन मेक इन इंडिया का शेर
या अडाणी का कोयला, बारूद क्यों नहीं खाते ?
टाटा की कार क्यों नहीं खाते ?
मेरे मज़दूर बेटे की तरह
गोरक्षकों की मार क्यों नहीं खाते ?
आप रोटी क्यों खाते हैं ?

मेरे देशवासियों !
बहुत ख़ूबसूरत लगता होगा तुम्हें
हमारी मौत पर तुम्हारा नौकरिहा मौन
मुबारक हो !
अपनी दीवारों को मज़बूत बनाए रखना
न्यायाधीश बनी आवारा भीड़ से
क़र्ज़ और कंपनियों से
हमारे घर जब मौत आई,
सरकारी चोले में मददगार होकर आई थी
अपने बच्चों को इन सबसे बचाए रखना
अपने पाखंड को नारों में बनाए रखना.

  • कृष्णकांत

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