Home कविताएं सफेद कबूतर

सफेद कबूतर

0 second read
0
0
785

सफेद कबूतर

मौसम उतना उद्विग्न नहीं करता
जितना कि जलते सवालों का संदर्भ

मैं पार कर लूंगा
देह के चौड़े पाटों में बहती
व्यथा की उद्वेगी नदी

पेंटागन का अध्यादेश
चिपका है यातना शिविर के
लौह कपाट पर

तकाबी की शोभा यात्रा में ओझल है
मेरे अकाल प्रदेश की
फटी बिवाइयां
चौकसी स्तंभों पर तनी संगीनों के बीच
मेरी अभिव्यक्ति के संबल
पार कर लेंगे
कंटीले तारों की बाड़

अपनी मौत बाद
शब्द ही बनेंगे
शहीद स्मारक की ईंटें
आंसू के चंद कतरे
तुम्हारे जीवित मन के सरोकारों में
टूटेंगे एक न एक दिन
उस सफेद कबूतर के अंधे मंसूबे

मेरी मौत की दहशत
उसकी मौत के मजबूत शिकंजे में है
मैं अब भी अपने आकाश के
उसी अराजक कोने में बसना चाहता हूं

जिस दौर ने मुझे सहारा दिया था
सब के सब पीछे छूट गये
सीढ़यों के नाम लिखी जाती रही
उपेक्षा और विस्मृति

  • राम प्रसाद यादव

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • ढक्कन

    बोतल का ढक्कन बहुत मामूली चीज है खोने पर हम इसे खोजते जरूर हैं लेकिन इसके लिए अपना कोई काम…
  • मैं तुम सबको देख रहा हूं –

    मैं तुम सबको देख रहा हूं. मैं तुम्हारा हर झूठ रिकॉर्ड कर रहा हूं. मैं तुम्हारी हर तोड़-मरो…
  • आखिरी सलाम…

    कॉमरेड हम तुम्हें आखिरी सलाम भी नहीं दे पाये तुम भी तो हमारा इंतजार कर रहे होगे अख़बार में…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

ढक्कन

बोतल का ढक्कन बहुत मामूली चीज है खोने पर हम इसे खोजते जरूर हैं लेकिन इसके लिए अपना कोई काम…