Home कविताएं इकहरे शब्द

इकहरे शब्द

0 second read
0
0
239

इकहरे शब्द
नगाड़ा पीट रहे हैं
ढोलकिया की पुकार सुनकर
माँदर की थाप पर
नाच उठता है
झरते हुए अमलतास का जंगल

कुछ नया नहीं है इस बसंत में
पेट और पीठ का अंतर
लगातार कम हो रहा है
वह दिन दूर नहीं जब
आदमी पेट की प्रताड़ना से
मुक्ति पा लेगा
और बच जाएगा बस पीठ

नगाड़े की इकहरी काठी
चाबुक सा चलेगी पीठ पर उसके
और हरक्यूलिस की तरह
आदमी उठा लेगा
अपने कंधों पर पृथ्वी का बोझ
और चल पड़ेगा
झरे हुए अमलतासों के
दूधिया रास्ते पर

फिर सोचेगी पनिहारिन
ख़ाली पड़े गांव में
कोई नहीं बचा पानी का तलबगार
इसी तरह मर जाएगी एक दिन
दुनिया की सारी कविताएँ
सारी भाषाएं
अब भी समय है
बचा लो शब्दों को
इकहरा बनने से.

  • सुब्रतो चटर्जी

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • औरत

    महिलाएं चूल्हे पर चावल रख रही हैं जिनके चेहरों की सारी सुन्दरता और आकर्षण गर्म चूल्हे से उ…
  • लाशों के भी नाखून बढ़ते हैं…

    1. संभव है संभव है कि तुम्हारे द्वारा की गई हत्या के जुर्म में मुझे फांसी पर लटका दिया जाए…
  • ख़ूबसूरत कौन- लड़की या लड़का ?

    अगर महिलायें गंजी हो जायें, तो बदसूरत लगती हैं… अगर महिलाओं की मुंछें आ जायें, तो बद…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

एक कामलोलुप जनकवि आलोकधन्वा की नज़र में मैं रण्डी थी : असीमा भट्ट

आलोकधन्वा हिन्दी के जनवादी कविताओं की दुनिया में बड़ा नाम है. उनकी कविताओं में प्रेम की एक…