
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की केंद्रीय कमेटी ने 10 मई, 2025 को अपने पांचवी प्रेस विज्ञप्ति को जारी करते हुए शांति वार्ता का प्रस्ताव पेश किया. माओवादियों ने अपने विज्ञप्ति के माध्यम से अपील करते हुए कहा है कि ऑपरेशन कगार पर रोक लगाने एवं जन समस्याओं का स्थायी समाधान के लिए शांति वार्ता करने हेतु सरकार तैयार हो, इसके लिए प्रयास करें इसके लिए देशवासियों, जनवादीप्रेमियों एवं अंतरराष्ट्रीय क्रांतिकारी व जनवादी शक्तियों से भी पार्टी ने अपील की.
सवाल उठता है कि माओवादी नेता बार-बार शांति वार्ता की अपील क्यों कर रहे हैं ? इसके पीछे मज़बूत कारण यह है कि मोदी सरकार और छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने दर्जनों बार माओवादी संगठन से वार्ता करने की अपील की थी. उसने यहां तक कहा था कि माओवादी चाहे तो किसी एक व्यक्ति को भेजे, समिति बनाकर भेजे यहां तक की वह चाहे तो मोबाइल फ़ोन के ज़रिए भी बात कर सकते हैं.
सरकार की यह अपील इसलिए भी था कि उसे लग रहा था कि माओवादी वार्ता में नहीं आयेंगे और इसका इस्तेमाल कर वह देश की जनता को यह बता सकेंगे कि ‘देखो, माओवादी वार्ता नहीं कर रहा है, कि माओवादी शांति नहीं चाहते.’ इस तरह वह माओवादियों के खिलाफ जनता के बीच माहौल बना पायेंगे. लेकिन हुआ इसका उल्टा. माओवादियों की ओर से तुरंत ही वार्ता की अपील को न केवल स्वीकार ही किया गया, अपितु अपनी ओर से फ़ौरन युद्ध विराम का घोषणा भी कर दिया.
माओवादियों के युद्ध विराम से भौचक्क खूंखार मोदी-शाह की सरकार बौखला गई और माओवादियों पर ताबड़तोड़ हमला संगठित कर नरसंहार करने लगी. यहां तक की सीपीआई माओवादी के महासचिव बासवराज समेत 27 युवाओं की क्रूरता से हत्या कर दी.
इससे दिन की तरह साफ़ हो गया है कि मोदी-शाह की खूंखार सरकार माओवादियों से वार्ता के लिए तैयार नहीं है. माओवादियों ही क्यों, मोदी-शाह की सरकार देश के किसी भी जन समूह, चाहे वह छात्र हो, नौजवान हो, किसान हो, मज़दूर हो, यहां तक कि पत्रकारों से भी बात करने में यक़ीन नहीं करती. वह हर समूह से केवल बंदूक़ की भाषा में बात करती है. जेल, पुलिस, कोर्ट उसका नरसंहार करने का टूल के सिवा कुछ नहीं है.
यहां हम शांति वार्ता और युद्ध विराम पर माओवादियों के ओर से जारी पांचवें प्रेस विज्ञप्ति को प्रस्तुत कर रहे हैं. यह प्रेस विज्ञप्ति सीपीआई-माओवादी के केन्द्रीय कमेटी के प्रवक्ता अभय ने जारी किया था, जिसके बाद भी खूंखार मोदी-शाह की सरकार ने माओवादियों के महासचिव बासवराज की हत्या कर दी. विज्ञप्ति इस प्रकार है –
हमारी पार्टी की केंद्रीय कमेटी की तरफ से मैंने 25 अप्रैल को दूसरा प्रेस बयान जारी कर केंद्र व राज्य सरकारों से यह अपील किया था कि जन समस्याओं का स्थायी समाधान के लिए समय सीमा के साथ युद्ध विराम की घोषणा कर शांति वार्ता चलाएं. इस पर तेलंगाना राज्य सरकार का तुरंत सकारात्मक प्रतिक्रिया देना सराहनीय है. लेकिन केंद्र व छत्तीसगढ़ सरकार से जो प्रतिक्रिया आयी वह चिंताजनक है. उसमें केंद्रीय गृहमंत्रालय के राज्य मंत्री बंडि संजय जी और छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री-राज्य के गृहमंत्री विजय शर्मा जी ने यह घोषणा की कि युद्ध विराम करने का सवाल ही नहीं उठता और हथियार छोडने के बगैर माओवादियों से शांति वार्ता करना संभव नहीं है.
विजय शर्मा जी ने बार-बार यह घोषणा की कि बिना शर्त शांति वार्ता करने के लिए सरकार तैयार है, पर अब इसके विपरीत युद्ध विराम करने के बगैर ही माओवादियों को हथियार छोड़ने का शर्त लगाए हैं. दरअसल हमारी पार्टी के नेतृत्व में क्रांतिकारी आंदोलन तेलंगाना व छत्तीसगढ़ तक ही सीमित नहीं है. देशभर में लगभग 16 राज्यों में हमारी पार्टी कार्यरत है. इसलिए शांति वार्ता के मामले में केंद्रीय गृहमंत्री आदरणीय अमित शाह की प्रतिक्रिया आना चाहिए. उनकी प्रतिक्रिया से ही स्पष्टता आयेगी.
हमारी पार्टी 2002 से ही शांति वार्ता के प्रति अपना रुख स्पष्ट करती आ रही है. 2004 में जनता एवं जनवादीप्रेमियों की मांग को लेकर अविभक्त आंध्रप्रदेश में तत्कालीन कांग्रेस की राज्य सरकार ने हमारी पार्टी के साथ वार्ता की. पर उस वार्ता को उसने अंतिम छोर तक नहीं चलायी, बीच में एकतरफा ही वार्ता से पीछे हट गयी. उस समय यह मामला आंध्रप्रदेश राज्य तक ही सीमित रहा था. लेकिन 2010 में देश के नागरिक समाज एवं जनवादीप्रेमियों की अपील को लेकर हमारी पार्टी की केंद्रीय कमेटी की तरफ से केंद्र सरकार से शांति वार्ता चलाने के लिए गंभीर प्रयास किए गए. लेकिन शांति वार्ता के लिए प्रयासरत हमारी पार्टी के प्रवक्ता कामरेड आजाद को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने षडयंत्र के साथ पकड़ कर हत्या की.
इसी दौरान पश्चिम बंगाल में केंद्र व राज्य सरकारें हमारी पार्टी के पोलित ब्यूरो सदस्य कामरेड रामजी (मल्लोझला कोटेष्वरलू) की हत्या की. शांति वार्ता की प्रक्रिया को कुचल दीं. तबसे लेकर अभी तक शांति वार्ता के मामले में हमारी पार्टी का रुख में कोई बदलाव नहीं है. हमारी पार्टी हमेशा शांति वार्ता के लिए तत्पर है. लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से कभी ऐसे पहल नहीं किया गया, यह चिंताजनक है. आज ऑपरेशन कगार में हमारी पार्टी के नेतृत्व-कैडर समेत बड़ी संख्या में आदिवासियों के नरसंहार किए जा रहे हैं. इससे हमारी पार्टी को और आदिवासियों का अस्तित्व के लिए गंभीर सवाल सामने आया, यह सच है. लेकिन मात्र इस कारण से ही हमारी पार्टी शांति वार्ता पर बयान पर बयान देने की गोदी मीडिया के जहरीली प्रचार में जरा सा भी सच नहीं है.
दरअसल इस बार शांति वार्ता का प्रस्ताव इस देश के जिम्मेदारी नागरिकों की तरफ से आई. इस प्रस्ताव को हमने तहेदिल से स्वीकारते हुए उन्हें धन्यवाद बताते हुए एक संदेश भेजा. मैं ने शांति वार्ता को लेकर पार्टी की रुख को फिर एक बार बताते हुए उन्हें भेजा. इसे ही उन्होंने प्रेस विज्ञप्ति के रूप में मीडिया में दे दिया. यही है 28 मार्च (2025) के प्रेस बयान का सच.
तेलंगाना में विशेष कर कई वामपंथी पार्टियों, जन संगठनों, जनवादीप्रेमियों, शांतिप्रेमियों द्वारा सभाओं, बैठकों एवं संगोष्ठियों के जरिए शांति वार्ता के लिए अनुकूल वातावरण बनाने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं. इनपर अर्बन नक्सल का ठप्पा लगाया जा रहा है. यह सही नहीं है. चूंकि शांति वार्ता के बारे में तेलंगाना सरकार (तेलंगाना अविभक्त आंध्रप्रदेश में एक हिस्सा होने की वजह से) भली-भांति जानती है, इसलिए वह तुरंत शांति वार्ता का प्रस्ताव पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी.
मुख्यमंत्री आदरणीय रेवंत रेड्डी जी ने केंद्र सरकार से यह अपील भी की कि युद्ध विराम घोषित कर, माओवादियों से शांति वार्ता की जाए. संयोगवश उसी समय में आयोजित भारत राष्ट्र समिति (बी.आर.एस.) के रजितोत्सव वर्षगांठ समारोहों में शामिल लाखों जनता से उस पार्टी के मुखिया आदरणीय के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) जी ने यह सवाल पूछा कि केंद्र सरकार माओवादियों से शांति वार्ता करना है या नहीं ?’ उसके जवाब में जनता ने एकसुर में माओवादियों से वार्ता करने का नारा दिया.
आज देश में लाखों जनता इस शांति वार्ता के पक्षधर है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई देशों में विभिन्न माओवादी पार्टियों एवं जनवादी संगठनों समेत मजदूरों, किसानों एवं मध्यम वर्ग की जनता भी हमारे देश में माओवादियों से मोदी सरकार शांति वार्ता करने की मांग कर रहे हैं. ऐसी पृष्ठभूमि में ही मैंने 25 अप्रैल का दूसारा बयान दिया है. शांति वार्ता के लिए मेरे तरफ से जारी किए गए बयानों को हमारी पार्टी की कमजोरी के रूप में गोदी मीडिया में जो जहरीला प्रचार किया जा रहा है, उससे उस मीडिया की कार्पोरेट चरित्र फिर बार पर्दाफाश हो रहा हैं.
मेरे दूसरे बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए बंडी संजय जी व विजय शार्मा जी द्वारा जो प्रतिक्रिया आयीं, वें चिंताजनक है. उनमें थोड़ा सा भी सच नहीं है. जगजाहिर है कि राज्यहिंसा के प्रति एक प्रतिक्रिया के रूप में ही हमारी पार्टी सशस्त्र संघर्ष पर उतरी है. खुद सरकार ही कानून का उल्लंघन करते हुए माओवादियों एवं आदिवासी जनता को सैकड़ों की संख्या में नरसंहार की है और कर रही है.
7 मई को करेंगुट्टा पहाड़ों में सरकारी सशस्त्र बलों द्वारा की गयी पाशविक हत्याकांड में 22 कामरेड अपनी जानें खो दी. इससे करेंगुट्टा ऑपरेशन में शहीद साथियों की संख्या 26 हो गयी है. एक तरफ शांति वार्ता की प्रक्रिया चलने के दौरान ही इस तरह की हत्याकांड को अंजाम देना बेहद निंदनीय है. हम देशवासियों एवं जनवादीप्रेमियों से अपील करते हैं कि इस हत्याकांड की भर्त्सना करें.
दरअसल बंदूक पकड़ने वालों को गोली मार कर हत्या करने का अधिकार सरकार को कोई कानून नहीं दिया है. इस सच्चाई पर परदा डालने एवं सच को झूठ बनाने पर वे क्यों ऐसी तुली हुई हैं, शायद वही जानते हैं. लेकिन इसमें वे कभी सफल नहीं हो पाएंगे.
अब हम हथियार छोड़कर समाज की मुख्यधारा में आने के मामले पर आएंगे. इस विषय पर हमारी पार्टी में कोई भी एक व्यक्ति निर्णय नहीं ले सकता. हमारी पार्टी जनवादी तरीके से काम करती है. ऑपरेशन कगार में 7 लाख से अधिक पुलिस, अर्धसैनिक बल एवं कमांडो बल हमारे आंदोलन के इलाकों की घेराबंदी करने की स्थिति में कोई बैठक आयोजन करने का मौका नहीं मिल रहा है.
ऐसे में मुख्य निर्णय लेने के लिए कम से कम सीसी का कोर बैठक करना जरूरी है. इसीलिए समयसीमा के साथ युद्ध विराम करने का प्रस्ताव मैं ने दिया है और बताया हूं कि जनता या हमारी पार्टी के कैडर को अब कोई सुरक्षा नहीं है. ऐसी परिस्थिति में हथियार छोड़कर सरकार से वार्ता करना असंभव है. इसलिए दोनों तरफ से युद्ध विराम की घोषणा की जाए.
जब हमारी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व / कोर की बैठक होगी, तब चर्चा कर तमाम विषयों पर निर्णय लेने का अवसर मिल सकता है. केंद्र व राज्य सरकारों से मेरा अनुरोध है कि इस मामले को समझिए, समयसीमा के साथ युद्ध विराम की घोषणा कर हमारी पार्टी के साथ शांति वार्ता करने पर सहमति जताएं, इस विषय को हमारी पार्टी के दंडकारण्य के उत्तर-पश्चिम सबजोनल ब्यूरो के प्रभारी कामरेड रूपेश ने प्रेस बयानों एवं पत्रों के जरिए छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा जी को लिखा है. समय-समय पर इसका ब्रीफिंग केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह जी भी कर ही रहा है.
फिर भी आदरणीय मोदी जी सरकार ने हमारी पार्टी को किसी भी सूरत पर 31 मार्च, 2026 तक उन्मूलन करने के लक्ष्य से ऑपरेशन कगार चला रही है. लेकिन मैं फिर एक बार स्पष्ट करना चाहता हूं कि आदरणीय मोदी जी सरकार इस लक्ष्य को हासिल करना संभव नहीं है. आदरणीय मोदी जी सरकार एवं गोदी मीडिया मिलकर ऐसा प्रचार कर रही हैं कि युद्ध विराम करने से इस अवसर को माओवादियों ने फिर मजबूत होने के लिए इस्तेमाल करेंगे. इसमें कोई सच्चाई नहीं है.
किसी भी देश में हो, सरकार की जनविरोधी नीतियों से ही क्रांतिकारियों को ताकत मिलता है. समाज में जमीन समस्या, भुखमरी, गरीबी, सामाजिक आर्थिक असमानताएं, बेरोजगारी, महिला सवाल, दलितों का सवाल (छूआछूत), जाति सवाल, राष्ट्रीयताओं का सवाल आदि मौलिक समस्याएं जब तक रहेगी, तब तक इसके लिए बुनियाद रहेगी. सरकार की नीतियां जन अनुकूल होने से क्रांतिकारियों को ताकत नहीं मिलेगी.
हमारी पार्टी ने जिस जन समस्याओं को सामने लायी है, उन्हें ईमानदारी से हल करने का रुख अपनाने से. शांति वार्ता चलाकर, समस्याओं का सही समाधान ढूंढ निकालने से, क्रांतिकारी इलाकों में राज्यहिंसा और हमारे सशस्त्र संघर्ष के लिए कोई बुनियाद नहीं रहेगा. पर शांति वार्ता के जरिए समस्याओं का स्थायी समाधान के लिए आदरणीय मोदी जी सरकार तैयार है या नहीं, इसे स्पष्ट करना अभी बाकी है.
इस अवसर पर देशवासियों, क्रांतिकारी, प्रगतिशील, जनवादीप्रेमियों, पत्रकारों, सामाजिक संस्थाओं, कार्यकर्ताओं एवं आदिवासी हितैषों तथा अंतरराष्ट्रीय शक्तियों से हमारी पार्टी अपील करती है कि ऑपरेशन कगार पर रोक लगाने एवं जन समस्याओं का स्थायी समाधान के लिए शांति वार्ता चलाने पर आदरणीय मोदी जी सरकार राजी होने लायक प्रयास करें !
माओवादियों ने अपनी पांचवी प्रेस विज्ञप्ति में खूंखार मोदी-शाह की मादरणीय सरकार के लिए भी ‘आदरणीय’ कहकर सम्बोधित करते हुए वार्ता की अपील की है लेकिन यह मादरणीय सरकार अपने नागरिकों के खून की प्यासी है. यह केवल माओवादियों के ही खून की प्यासी नहीं है बल्कि हर उस नागरिकों के खून की प्यासी है, जो कोई इसके कुकृत्यों पर सवाल उठाती है. साढ़े सात सौ से ज़्यादा किसानों का खून पी चुकी है, हज़ारों मज़दूरों, छात्रों, नौजवानों, औरतों का खून हर दिन पी रही है या जेलों में डाल रही है.
देश के लोग इस आततायी खूंखार मोदी-शाह की सरकार से पीड़ित है. कोई भी पार्टी, दल या छुटभैया लोगों के दर्द का इलाज नहीं कर रही. वह केवल अपनी रोटी सेंकने की जुगत में है. ऐसे में देश के मेहनतकश लोगों की एकमात्र उम्मीद माओवादी ही है, जिन्होंने लोगों की पीड़ाओं को मज़बूत आवाज़ दिया है.
अब जब मोदी-शाह की सरकार ने माओवादियों यानी देश की जनता के खिलाफ पूर्ण युद्ध का ऐलान कर दिया है. न तो ख़ुद के बनाये संविधान को भी मान रही है और न ही जेनेवा सम्मेलन के प्रस्ताव पर ही अमल कर रही है, ऐसे में यह ज़रूरी है कि देश की मेहनतकश स्वाभिमानी जनता युद्ध के ज़रिए इसका माकूल जवाब दे क्योंकि युद्ध को केवल और केवल युद्ध के ज़रिये ही ख़त्म किया जा सकता है.
Read Also –
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लॉग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लॉग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]