Home गेस्ट ब्लॉग ‘केवल मरा हुआ भारतीय ही अच्छा भारतीय है.’

‘केवल मरा हुआ भारतीय ही अच्छा भारतीय है.’

9 second read
0
0
91
मनीष आज़ाद

न्यूज चैनल पर मारे गए नक्सलियों/आदिवादियों के शवों के साथ जश्न मनाते सुरक्षा बलों की तस्वीरों ने विचलित कर दिया. वे पटाखे फोड़ रहे थे, होली खेल रहे थे, महिलाएं उनकी आरती उतार रही हैं. कहा जाता है कि ईसा मसीह को जब सूली पर चढ़ाया गया तो उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की थी कि ‘प्रभु इन्हें माफ करना, ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे है.’

लेकिन आज माओवादियों/आदिवासियों को सूली पर चढ़ाने वाले लोग भली भांति जानते हैं कि वे क्या कर रहे है. वे एक ‘नए भारत’ का निर्माण कर रहे हैं. इस नए भारत के नए संविधान की प्रस्तावना में लिखा होगा कि मरे हुए आदिवासी सबसे अच्छे आदिवासी हैं. जिन्हें जीते जी कभी हवाई चप्पल भी नसीब नहीं हुई, उनके शव को हेलिकाप्टर में लाया गया.

अमेरिका के मूलनिवासियों के बारे में यह बयान थियोडोर रूजवेल्ट ने दिया था-  ‘The Only Good Indians Are the Dead Indians.’ इसी रूजवेल्ट ने एक अन्य बयान में कहा कि सबसे बुरा गोरा भी एक अमेरिकी मूल निवासी से नैतिक तौर पर अच्छा है.

भारत अपने ‘विकास’ के लिए शुरू से ही अमेरिकी आयात पर निर्भर रहा है. यह विचार भी उसने अमेरिका से ही आयात किया है. इस आयातित विचार के बिना भारत का ‘विकसित राष्ट्र’ का सपना कैसे पूरा हो सकता है ?

जैसे आज माओवादियों/आदिवासियों के सर पर लाखों/करोड़ों का इनाम होता है, ठीक वैसे ही एक समय अमेरिका में भी यह नियम था कि मूलनिवासियों का सर लाओ और पैसे घर ले जाओ.

1755 में यह रकम 50 पाउंड वयस्क सिर के लिए, 25 पाउंड वयस्क महिला सिर के लिए और 20 पाउंड बच्चों के सिर के लिए था.
सिर काटकर लाने के बाद गोरे अमरीकी भी इनाम के लालच में इसी तरह जश्न मनाया करते थे.

सोनी सोरी ने एक साक्षात्कार में बताया कि पुलिस के एक बड़े अधिकारी ने उनसे कहा कि तुम लोग फालतू आबादी हो. तुम लोगों को तो खत्म होना ही है, जैसे अमेरिका से वहां के मूलनिवासी खत्म हो गए (खत्म कर दिए गए). इसे और गहराई से समझने के लिए Ranendra Ranendra का महत्वपूर्ण उपन्यास ‘गायब होता देश’ पढ़ा जा सकता है।

बहरहाल, इतिहास फिर से दोहराया जाएगा या माओवादी/आदिवासी धूल झाड़कर फिर से खड़े हो जाएंगे और एक नया इतिहास बनाएंगे, यह तो अभी इतिहास के गर्भ में हैं. लेकिन एक बार जब मैंने अपने आदिवासी दोस्त को अमेरिका की यह दुःखद कहानी सुनाई तो उसने धीमे से मुस्कुराते हुए कहा था कि उनके पास माओवाद नहीं था.

नक्सलबाड़ी आंदोलन शायद दुनिया का पहला क्रांतिकारी आंदोलन है, जिसके पहले शहीद महिलाएं और बच्चे थे. आज ही के दिन नक्सलबाड़ी में पुलिस की गोली से 9 महिलाएं और इन आंदोलनकारी महिलाओं में से एक की पीठ पर बंधा 2 साल का बच्चा शहीद हुआ था.

‘बसंत के इस बज्रनाद’ के बाद दुनियां पहले जैसी कभी नहीं रही.
‘पाब्लो नेरुदा’ से शब्द उधार लेकर कहें तो, इसके बाद बसंत को रोकने के लिए फासीवादी शासक खिलते हुए फूलों को अपने बूटों से लगातार कुचल रहा है लेकिन क्या वह बसंत को आने से रोक पायेगा ???

‘तुम रौंद सकते हो सभी फूलों को,
मगर तुम बसंत को आने से नहीं रोक सकते.’ – पाब्लो नेरुदा

Read Also –

 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लॉग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लॉग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

विकास दिव्यकिर्ती संघी संस्कारों को इस तरह नग्न करके पेश करने से परहेज करें !

ज्यादातर UPSC हिस्ट्री पढ़ाने वाले यू-ट्यूब चैनल इस्लामोफोबिया और गांधी नेहरू पर कीचड़ उछालन…