Home कविताएं जब हिसाब मांगता है समय

जब हिसाब मांगता है समय

0 second read
0
0
245

एक वक्त आता है
जब कुछ भी काम नहीं आता
न कोई बहाना
न कोई चालाकी
न तर्क न कुतर्क
न भाषण न संभाषण
न गोली न बंदूक
न फौज न चाटुकार
राजदंड से लिपटा हुआ
तुह्मारा अजगर सा अस्तित्व
सबकुछ लील जाने की व्यग्रता
संविधान के पन्नों को
थूक सने ऊंगलियों से पलट कर
आत्मरक्छा के प्रावधानों को
ढूंढ़ने की कोशिश
कुछ भी काम नहीं आता
क्योंकि उस वक्त
हिसाब मांगने वाला
तुह्मारी बनाई हुई
जाँच एजेन्सियां नहीं
अदालतें और गले में पट्टा डाले
पुलिस नहीं
उस वक्त
हिसाब मांगता है
बस समय
अविचलित, अक्षय
निर्मम समय

  • सुब्रतो चटर्जी
    2016 मेंं रचित.

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • ढक्कन

    बोतल का ढक्कन बहुत मामूली चीज है खोने पर हम इसे खोजते जरूर हैं लेकिन इसके लिए अपना कोई काम…
  • मैं तुम सबको देख रहा हूं –

    मैं तुम सबको देख रहा हूं. मैं तुम्हारा हर झूठ रिकॉर्ड कर रहा हूं. मैं तुम्हारी हर तोड़-मरो…
  • आखिरी सलाम…

    कॉमरेड हम तुम्हें आखिरी सलाम भी नहीं दे पाये तुम भी तो हमारा इंतजार कर रहे होगे अख़बार में…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

ढक्कन

बोतल का ढक्कन बहुत मामूली चीज है खोने पर हम इसे खोजते जरूर हैं लेकिन इसके लिए अपना कोई काम…