Home कविताएं ‘लो मैं जीत गया…’

‘लो मैं जीत गया…’

4 second read
0
0
260
'लो मैं जीत गया...'
‘लो मैं जीत गया…’

सुदूर जंगल से लगा एक कस्बा
एक खाली इमारत, चन्द कुर्सियां
गहरी रात का पहर
पांच वाट की पीली रोशनी

कुर्सी के पीछे बंधे हाथ
दो चमकती आंखे और
पसीने से तरबतर शरीर
उसे घेरकर खड़े कुछ
वर्दी वाले रोबोट

एक कड़कती हुई आवाज-
‘यहां किसके कहने पर आए ?’

कुएं से निकलती एक धीमी मगर दृढ़ आवाज-
‘अपनी अंतरात्मा की आवाज पर आया’

तेरी अंतर्रात्मा की…
चटाख…
मुंह के कोने से खून रिसने लगा

बहुत दिनों बाद उसे
अपने गर्म लहू का स्वाद मिला
वह चीखा- ‘यह लड़ाई हम सबकी है,
महज आदिवासियों की नहीं’

इस बार सीधी लाठी उसके पेट पर
उसने लगभग उल्टी कर दी

लेकिन आवाज और बुलंद हो गयी,
रात के सन्नाटे को चीरती-
‘तुम लोग जितने क्रूर होते जाओगे,
उतना ही हारते जाओगे और
अंत मे हम ही जीतेंगे’

मां की गाली के साथ इस बार
ज़ोरदार मुक्का उसकी नाक पर
अच्छा ! ये अकड़ !
वो चिल्लाकर उसकी आंखों मे आंख डालकर,
नफरत से बोला-
‘अब दिखा जीतकर…’

उसका वाक्य खत्म ही हुआ था कि
उसकी नफरत उगलती एक आंख पर
छप से गीला सा कुछ पड़ा
और सफेद मकड़ी सा छप गया…

कुर्सी पर बंधे उस बुजुर्ग ने
मुश्किल से सांस लेते हुए कहा-

‘लो मैं जीत गया.’

  • मनीष आजाद

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
G-Pay
G-Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • औरत

    महिलाएं चूल्हे पर चावल रख रही हैं जिनके चेहरों की सारी सुन्दरता और आकर्षण गर्म चूल्हे से उ…
  • लाशों के भी नाखून बढ़ते हैं…

    1. संभव है संभव है कि तुम्हारे द्वारा की गई हत्या के जुर्म में मुझे फांसी पर लटका दिया जाए…
  • ख़ूबसूरत कौन- लड़की या लड़का ?

    अगर महिलायें गंजी हो जायें, तो बदसूरत लगती हैं… अगर महिलाओं की मुंछें आ जायें, तो बद…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

एक कामलोलुप जनकवि आलोकधन्वा की नज़र में मैं रण्डी थी : असीमा भट्ट

आलोकधन्वा हिन्दी के जनवादी कविताओं की दुनिया में बड़ा नाम है. उनकी कविताओं में प्रेम की एक…