'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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जनता के अधिकारों के लिए सत्ता से लोहा लेने वाले हबीब जालिब

समय के हर कालखण्ड में जनता के अधिकारों के लिए सत्ता की आंखों में आंखें डालकर सवाल पूछने और उससे सत्ता से लोहा लेने वाले बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, लेखकों, कवियों की मौजूदगी रही है और उनकी यही मौजूदगी आम जनता में अपने अधिकारों के लिए सत्ता के आतंक का डटकर सामना करने के साहस का संचार करता है. यह दौर उस …

‘मैल्कम एक्स’ के जन्मदिन पर – ‘स्वतंत्रता की कीमत मृत्यु है’

दुनिया जितना ‘मार्टिन लूथर किंग’ को जानती है, उतना उन्हीं के समकालीन ब्लैक लीडर ‘मैल्कम एक्स’ को नहीं जानती जबकि आज उनके विचार कहीं ज्यादा प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हैं. 1966 में शुरु हुआ ब्लैक पैंथर आन्दोलन सीधे-सीधे ‘मैल्कम एक्स’ के विचारों और उनके व्यक्तित्व से प्रभावित रहा है. ब्लैक पैंथर की स्थापना के ठीक एक साल पहले 21 फरवरी 1965 …

सोया युवामन और कचड़ा संस्कृति

गुंडे इतिहास तय कर रहे हैं और भारत गौरवशाली महसूस कर रहा है. अमृत काल वर्ष की महान उपलब्धि. विगत कई दशकों से बहुराष्ट्रीय कंपनियों का युवाओं के खिलाफ विश्वयुद्ध चल रहा है. अफसोस की बात यह है कि विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में पढ़ने वाले अधिकांश युवा इस युद्ध से अनभिज्ञ हैं. कभी-कभी तो इस युद्ध के औजार के रुप …

भारत धार्मिक मदांधता के सबसे भीषण दौर से गुजर रहा है !

भारत धार्मिक मदांधता के सबसे भीषण दौर से गुजर रहा है. मेरे जानते अबतक के भारतीयों के जीवन में ऐसा त्रासदपुर्ण भयानक संभावनाओं वाला मंजर इससे पहले कभी भी उपस्थित नहीं हुआ था. भारत के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन में आया यह भयावह परिदृश्य कोई अचानक आज ही नहीं सामने उपस्थित हो गया है. अगर हम गौर …

‘अलेक्स्ज़ान्द्र कोलंताई’ : मातृत्व का ‘राष्ट्रीयकरण’ करने वाली बोल्शेविक क्रांतिकारी…

आपने अपने इर्द गिर्द अनेकों ‘मुक्त’ महिलाओं को देखा होगा जो नौकरी करती हैं और खुद मुख्तार हैं. लेकिन परिवार घर और बच्चों की जिम्मेदारियां, उन्हें इस कदर चूस लेती हैं कि वे कुछ रचनात्मक नहीं कर पाती और इसका ‘फ्रस्ट्रेशन’ उन्हें परेशान करता रहता है. दूसरी ओर बच्चों की भी ठीक से देखभाल नहीं हो पाती क्योंकि मां-पिता लम्बे …

बिहार में भाजपा की जमीन तैयार करने में जुटा ‘बाबा’

नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के एक मंच पर आने से बिहार की राजनीतिक जमीन भाजपा के लिए बेहद सख्त हो गई है. इस सख्त जमीन को तोड़ना है, अधिक से अधिक वोटों की फसल उगानी है. बिहार में भाजपा की जमीन तैयार करने में जुटा ‘बाबा’. बाबा ने जोर से कहा, ‘भारत हिन्दू राष्ट्र बनेगा…’, लाखों की भीड़ उत्साहित …

लुगदी साहित्य से ज़्यादा ज़रूरी है गालियों की पढ़ाई

अगर लोकप्रियता कोर्स में लगाने का पैमाना है तो यह हर लोग मानेंगे कि गुलशन नंदा या ओमप्रकाश शर्मा जैसे लेखकों के मुकाबले गालियां कहीं ज़्यादा लोकप्रिय हैं. इसलिए उनकी जगह गालियों को कोर्स में लगाया जाना चाहिए. वैसे भी गालियों पर बात करना ज़्यादा जरूरी है. देखा जाए तो गालियां सिर्फ लोकप्रिय ही नहीं हैं बल्कि इनका एक इतिहास …

गंगा के भीमगोड़ा में बैराज : ब्रिटिश इंजीनियर थामस कॉटली का संघर्ष और अगड़ा ब्राह्मण समाज का विरोध

साल 1837 की बात है. उस साल उत्तर भारत में मानसून समय से नहीं आया. जिसके चलते गंगा यमुना दोनों नदियों में पानी कम हो गया. ऐसा सूखा पड़ा कि 8 लाख जानों को लील गया. लोग घरबार छोड़कर जाने लगे. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी अपने शासनकाल में ऐसे अकाल पहली बार नहीं देख रही थी. लोग अपनी जमीनें छोड़ …

प्रेम की बायोकेमिस्ट्री और उसका प्रोटोकॉल…

फ़िल्म शक्ति (1982) में सदी के महानायक नायिका से फरमाते हैं – ‘जाने कैसे कब और कहां इकरार हो गया हम सोचते ही रह गए और प्यार हो गया…’ ऐसा ही होता है जब किसी के मिलने पर हमारे ब्रेन के ‘प्लेज़र सेंटर्स’ एक्टिवेट होते हैं और उनमें से कुछ रसायनों जैसे डोपामाइन, एड्रेनलिन, नोरएपिनेफरीन, फिरामोन्स और सेरोटोनिन का स्राव …

सिंधु घाटी बनाम हिन्दू घाटी…और नाककटा दाढ़ीवाला

तो पहले बताइये कि सिंधु घाटी के अवशेषों को जब आपने बचपन में पढ़ा, तो क्या समझा था ? आपने सवाल भी परीक्षा में हल किया होगा- सिंधु घाटी के शहरों के प्रमुख गुण बताइये. उत्तर लिखा- यहां अन्न के गोदाम थे, बंदरगाह थे, समकोण पर काटती सड़कें, उनके किनारे दोनों तरफ जल निकासी की नाली, स्नानागार थे, बाजार थे, …

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