पचहत्तर के बोयाम में पांव घिसते हुए जिस क्षरण से तुम वाक़िफ़ हो सत्य की वह गंगा अब किसी पांच सितारा होटल के नीचे बहते गटर में समा गई है इस शेरवानी और टोपी में तुम एक चलन के बाहर का सिक्का दिखते हो क्या इतना भी नहीं मालूम तुम्हें तुम्हारे दोस्त अब हाईवे के समानांतर बने परित्यक्त, जर्जर पुल …