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कब्जा

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मेरा साया
मेरे सपने
मेरी सोच
मेरे तन मन के हिस्से हैं
मेरा वायवीय विस्तार
पहले वे मेरी झोपड़ी पर काबिज हुए
फिर मेरी रोटी, पानी पर
अब वो चाहते हैं
मेरा साया, सोच और सपनों पर
काबिज होना
ईलाका दखल की लड़ाई
उनका राजधर्म है
वजूद बचाने की जंग
मेरी जंग है
पीठ जब दीवार से लगी हो तो
आप सिर्फ आगे बढ़ सकते हैं.

  • सुब्रतो चटर्जी

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