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अकविता

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उम्मीदें
जंग खाई
कच्चे लोहे के बनी
कीलों जैसी थीं
समुद्र की नमकीन हवाओं से
खोखले हुए दीवारों पर टंगी
मरे हुए, लेकिन स्वनामधन्य
पूर्वजों की तरह

फूलों की घाटी में
तुम्हारी तफ़रीह से
इनका कोई वास्ता हो या न हो
एक हसीन धोखे में
रहने की आदत
उतनी भी बुरी नहीं है
जितना कि तुम समझते हो
ख़ास कर जब
बच्चे इंतज़ार कर रहे हैं कि
ख़ंदकों से बाहर
कोई ताज़ा हवा उड़ा ले जाए
उनसे बहुत दूर
गंधक की महक
और बमों के ख़ाली खोखों में
वे रोप सकें वसंत का राग

दृष्टि दोष की आवृत्ति में
अक्सर डूब जातीं हैं मेरी कविताएं
बरमूडा त्रिकोण में ग़ायब होते
जहाज़ों की तरह
लेकिन मुझे मालूम है कि
इतने भी अनर्थक नहीं हैं शब्द मेरे …

आदमी को आदमी बनाने की कोशिश
शायद तुम्हारे आचार संहिता का उल्लंघन है
लेकिन मेरे लिए अपवाद होना
नियम होने से ज़्यादा ज़रूरी है
क्योंकि मैं उस दूर जाते हुए जहाज़ का
मस्तूल हूं जिसे देख कर
पहली बार तुम्हें पता चला था कि
दुनिया चपटी नहीं गोल है

सारी लड़ाई बस उसी सच की तलाश है
जिसे हम निर्वस्त्र अवस्था में महसूस करते हैं
एक चट्टान की थूक पर
जिस पर उगे हों सब्जां
जीवन के टेढ़े मेढ़े
हस्ताक्षर की तरह दोस्त

  • सुब्रतो चटर्जी

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