Home कविताएं वह मैं हूंं !

वह मैं हूंं !

4 second read
0
1
1,810

वह मैं हूंं !

वह मैं हूंं !
मुंह-अंधेरे बुहारी गई सड़क में
जो चमक है..
वह मैं हूंं !

कुशल हाथों से तराशे
खिलौने देख कर
पुलकित होते बच्चे
बच्चे के चेहरे पर जो पुलक है..
वह मैं हूंं !
खेत की माटी में
उगते गन्ने की ख़ुशबू
मैं हूंं !

जिसे झाड़-पोंछ कर भेज देते हैं वे
उनके घरों में
भूल कर अपने घरों के
भूख से बिलबिलाते बच्चों का रुदन
रुदन में भूख है..
वह मैं हूंं !

प्रताड़ित-शोषित जनों के
क्षत-विक्षत चेहरों पर
घावों की तरह चिपके हैं
सन्ताप भरे दिनउन चेहरों में शेष बची हैं
जो उम्मीदें अभी
वह मैं हूंं !

पेड़ों में नदी का जल
धूप-हवा में
श्रमिक-शोषित गंध
बाढ़ में बह गई झोंपड़ी का दर्द
सूखे से दहकती धरती का बांझपन
वह मैं हूंं !
सिर्फ मैं हूंं !

  • ओम प्रकाश वाल्मीकि

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • औरत

    महिलाएं चूल्हे पर चावल रख रही हैं जिनके चेहरों की सारी सुन्दरता और आकर्षण गर्म चूल्हे से उ…
  • लाशों के भी नाखून बढ़ते हैं…

    1. संभव है संभव है कि तुम्हारे द्वारा की गई हत्या के जुर्म में मुझे फांसी पर लटका दिया जाए…
  • ख़ूबसूरत कौन- लड़की या लड़का ?

    अगर महिलायें गंजी हो जायें, तो बदसूरत लगती हैं… अगर महिलाओं की मुंछें आ जायें, तो बद…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

एक कामलोलुप जनकवि आलोकधन्वा की नज़र में मैं रण्डी थी : असीमा भट्ट

आलोकधन्वा हिन्दी के जनवादी कविताओं की दुनिया में बड़ा नाम है. उनकी कविताओं में प्रेम की एक…