Home कविताएं भूखों को नींद कहां आती है

भूखों को नींद कहां आती है

2 second read
0
0
281

भूखों को नींद कहां आती है

अब
इस शहर में कोई
भूखा नहीं सोएगा
सबको मिलेगी
दो वक्त की रोटी
सिर पर छत
हाथों को रोजगार
आंखों को सपने
साफ-सुथरी सड़कों पर
हवा से बातें करेंगी गाड़ियां
फ्लाइओवर ब्रिज जोड़ेंगे
शहर के एक छोर को दूसरे से
धरती, आसमान, पानी पर दौड़ेंगी कारें
मिनटों में पहुंचेंगे
एक सिरे से दूसरे तक
अस्पताल होंगे सुसज्जित, सुविधा संपन्न
स्कूल गोलमटोल स्वस्थ बच्चों से भरेपूरे
बगीचे फूलों से खिलखिलाते
तालाब कमलों से गदराए
फुटपाथ भिखारियों से खाली
रेलवे स्टेशन चमचमाते
बस अड्डे जगमगाते
सुंदरियां बाज़ारों में इठलाती
बालाएं रैम्प पर बलखाती
गलियां कुत्तों-गायों से मुक्त
मंदिर-मस्जिद भक्तों से भरे
भक्त भक्तिभाव से भरे
बैंक धन से भरे
सेंसेक्स अंकों से भरे
कहीं भी
अभव, गंदगी, विपन्नता का
नामोनिशान नहीं
यह बीसवीं सदी का
सड़ा गला शहर नहीं
इक्कीवीं सदी का
ग्लोबलाइज़्ड शहर है
अब
इस शहर में
कोई भूखा
नहीं सोएगा
क्योंकि भुखों के लिए
इस शहर के बाहर
एक दूसरा शहर
बसाया जा रहा है
वैसे भी
भूखों को नींद कहां आती है

  • हूबनाथ पाण्डेय

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • औरत

    महिलाएं चूल्हे पर चावल रख रही हैं जिनके चेहरों की सारी सुन्दरता और आकर्षण गर्म चूल्हे से उ…
  • लाशों के भी नाखून बढ़ते हैं…

    1. संभव है संभव है कि तुम्हारे द्वारा की गई हत्या के जुर्म में मुझे फांसी पर लटका दिया जाए…
  • ख़ूबसूरत कौन- लड़की या लड़का ?

    अगर महिलायें गंजी हो जायें, तो बदसूरत लगती हैं… अगर महिलाओं की मुंछें आ जायें, तो बद…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

एक कामलोलुप जनकवि आलोकधन्वा की नज़र में मैं रण्डी थी : असीमा भट्ट

आलोकधन्वा हिन्दी के जनवादी कविताओं की दुनिया में बड़ा नाम है. उनकी कविताओं में प्रेम की एक…