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सबसे उपयुक्त समय…

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सबसे सहज बातों से
जब वे असहज हो जाते हैं
वही समय सबसे उपयुक्त होता है
सहज सत्य को सरल तरीक़े से कहना

आदमी को पिसते हुए देख कर
गेहूं के साथ घुन की याद आ जाना
पुरानी कहावत के रूह में
कुछ अलग तरीक़े से उतरना है
सहज और सरल

ठीक इसके विपरीत
आदमी को उसके आवरण से समझना
बौद्धिक विलास है
जिसके पीछे आपकी घृणा भी हो सकती है
और मूर्खता भी

समय है कि हम
दिन को दिन कहें
और रात को रात
और दोनों के बीच जो पलता है
उसे संक्रांति कहें

विष धर बहुरूपिया है
तुम्हें डंसने से पहले
तुम्हें उसे चुनने का मौक़ा देता है
जगराता की चौकी की तरफ़
उठे हुए क़दम
जब पोलिंग बूथों तक जाते हैं
तब उंगलियों के पोरों से
भले ही सत्ता को डंसने का अभिनय होता है
लेकिन, वस्तुतः वह खुद को ही डंस कर लौटता है

इसी क्रम में
विख्यात होने की चाहत
हमें सोचने नहीं देता कि
किन लोगों के बीच हम विख्यात होते हैं
और क्या मंदबुद्धि लोगों के बीच की ख्याति
प्राप्त आदमी कुख्यात नहीं होता

यह समय कुछ दिनों के लिए
आईने से दूर रहने का है
अपने चेहरे को आईने में मत देखो
अपने से प्रेम से मुक्ति का यही
एकमात्र पथ है

सहज और सरल सत्य
स्वतः तुम्हें खड़ा कर देगा
बाघ और मेमने की लड़ाई में
मेमने के पक्ष में

  • सुब्रतो चटर्जी

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