सरकारी रेल, बसे रोकने और तोड़ने, प्राइवेट लोगों की प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाने और परेशान करने की जगह इनमें से किसी भी ब्रोकली वाले ने अम्बानी-अडानी के पाकिस्तानी व्यवसाय पर प्रश्न खड़ा न किया. एक ने भी एनएसए शौर्य डोभाल के घर में पाकिस्तानी और सऊदी काउंटर इंटेलिजेंस व जासूसों का व्यवसायी के रूप में घुसपैठ होने को प्रश्नगत न किया. इनके मकानों और प्रतिष्ठानों पर एक कंकड़ी तक न फेंकी.
भाजपा के नेताओं और मंत्रियों को जैसे नोटबन्दी का पहले से पता था वैसे ही हमले और शहीदों का भी पता था. नोटबन्दी से पहले रातों रात भाजपा कार्यालय भवन, ज़मीनें, मोटर साइकिलें खरीदी गई, भाजपा के कोषाध्यक्षों ने नोटबन्दी से बिल्कुल पहले रुपया जमा किया या बदलवाया वैसे ही शहीदों से संबंधित पोस्टर्स, बैनर, झंडे, विष्यकस्तु, भाषण, मंच रैलियां पहले से ही तैयार कैसे थे ?
सच्चिदानंद साक्षी किस शहीद की शवयात्रा में शव वाहन पर बैठ कर पोज़ देगा और राज्यवर्धन राठौर किस शव वाहन पर खड़े होकर मीडिया के रूबरू होंगे इसकी फिनिशिंग साबित कर रही है कि कार्यक्रम पहले से तय और स्क्रिप्टेड था, बस गरीब किसानों के निर्दोष बेटों की जान मुफ्त में कुर्बान करा ये ऊनी रोटियां सेंक रहे हैं.
वहीं दूसरी तरफ जो ब्रोकली वाले आज देश के विभिन्न राज्यों के शहरों में कश्मीरी बच्चों, छात्रों और लोगों को मारपीट रहे हैं, उन्हें वहां से भगा रहे हैं, उनसे लूटपाट कर रहे हैं जिसके कारण रक्षा विभाग को उनकी सुरक्षा के लिए एडवाइजरी जारी करनी पड़ी है. यही बहन के पकौड़े 1984 ई. में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश भर में सिक्खों को मारने वाले, क़त्लेआम करने वाले, उन्हें लूटने वाले और गद्दार कहने वाले थे. इसी मानसिकता के लोगों ने तब सिक्खों के नरसंहार देशभक्ति की आड़ में ही किया था. सिक्ख इनके हुलिए, कपड़े, टीके, नारे, शारीरिक भाषा अच्छे से अध्ययन कर लें और अपने बुजुर्गों से टैब के हत्यारों के हुलिए पूछे. उन्हें इसमें एक कुटिल प्रकार की साम्यता मिलेगी.
ये ब्रोकली के संघी मानसिकता वाले तब देश को तोड़ने की ऐसी कोशिश कांग्रेस के झंडे तले कर रहे थे और आज किस झंडे तले कर रहे हैं, आप खुद देख सकते हैं. ये कपड़े की दुकान से कपड़ा खरीद दर्ज़ी से पैसा खर्च कर पाकिस्तान का झंडा बनवाते हैं फिर प्रेस को बुला कर फ़ोटो खिंचवाते हुए उसे जलाते हैं. इनसे पूछा जाना चाहिए कि इससे पाकिस्तान का बाल भी टेढ़ा न होगा. ये इस शोक और गुस्से की घड़ी में भी अपनी राजनीति चमका रहे हैं.
क्या ट्विन्स टावर पर हमले के बाद अमरिकियों को पाकिस्तान, अफगानिस्तान का झंडा जलाते देखा था क्या ? या फिर अमेरिका ने लादेन का क्या हाल किया ? सरकारी रेल, बसे रोकने और तोड़ने, प्राइवेट लोगों की प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाने और परेशान करने की जगह इनमें से किसी भी ब्रोकली वाले ने अम्बानी-अडानी के पाकिस्तानी व्यवसाय पर प्रश्न खड़ा न किया. एक ने भी एनएसए शौर्य डोभाल के घर में पाकिस्तानी और सऊदी काउंटर इंटेलिजेंस व जासूसों का व्यवसायी के रूप में घुसपैठ होने को प्रश्नगत न किया. इनके मकानों और प्रतिष्ठानों पर एक कंकड़ी तक न फेंकी.
इन ब्रोकली वालों से ये पूछा जाना चाहिए कि अब सीमा, बीएसएफ, सेना, इंटेलिजेंस, तटरक्षक केंद्र व राज्य की शक्तियां पांच साल से मोदी जी के हाथ में है, तो आतंकी कैसे अंदर घुसे ? रिज़र्व बैंक से लेकर हवाला पर दिल्ली की सरकार का नियंत्रण है, तो उन्हें नोटबन्दी के बाद भी फण्ड कैसे मिला ? इंटरनेट, फोन, तथा मल्टी-कम्युनिकेशन के सभी संसाधनों पर दिल्ली की केन्द्र सरकार का नियंत्रण है तो आतंकी कैसे इन संसाधनों के माध्यम से पाकिस्तान के नियंत्रण में रहे ? कहीं मोदी की कही बात के अनुसार समस्या सीमा में नहीं दिल्ली की केन्द्र सरकार में तो नहीं है मूर्खों ?
इनसे ये भी पूछा जाना चाहिए कि देश की प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचा, आम जनता को कष्ट में डाल ये उन शहीद जवानों की शहादत को कलंकित करने की जगह उस 56 इंची सरकार से ये क्यों नहीं बोलते कि मसूद अजहर, हाफिज सईद और ज़की उर रहमान लखवी का कटा सिर लाकर दिल्ली में प्रदर्शित करिये ताकि फिर हम सब उसमें सौ जूते मार सके. आखिर व्यापारी सैनिकों से ज़्यादा रिस्क उठाने वाला बन्दा होता है न भाई ! अडानी और अम्बानी व शौर्य डोभाल ही अपने व्यावसायिक रिश्तों की बदौलत तीनो के सिर लेते आएंगे ? आखिर वे क्यों व्यापार कर रहे हैं वहां ?
अगर ये सरकार ऐसा नहीं कर सकती तो इस निकम्मी सरकार की क्या ज़रूरत है देश को ? शहीदों के ताबूतों की संख्या बड़ा कर, उनका ऊंचे से ऊंचा मंच सजाकर, उस पर खड़े होकर चुनावी भाषण देने वाला नेतृत्व हमें नहीं चाहिए, बोल पाओगे ?
- फरीदी अल हसन तनवीर
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