'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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नफरत की बम्पर फसल काट रहे हैं मोदी…

2001 में एक मामूली पोलिटीकल मैनेजर को अचानक उठाकर गुजरात की गद्दी पर बिठा दिया था. तब उनकी उनकी योग्यता थी – ‘केशुभाई पटेल के विधायक तोड़ना, असन्तोष फैलाना और अपनी ही पार्टी के जीते हुए मुख्यमंत्री की गद्दी में पलीता लगाना !’ मोदी ने जीवन में एक पार्षदी नहीं लड़ी. कभी विधायक नहीं बने, कभी सदन का मुंह नहीं …

जनकल्याणकारी और मुक्तिकारी कार्यक्रम को लेकर जनता के बीच जाना होगा हमें

भारतीय जनता पार्टी एनडीए का गठन करके नौ साल पहले सत्ता में आई थी. उसने विकास का नारा दिया था, जनता की तमाम समस्याओं को सुलझाने का नारा दिया था, मगर आज हकीकत यह है कि वह चंद पूंजीपतियों के हितों को बढ़ाने वाली भारत की सबसे प्रमुख पार्टी बन गई है और उसने जनता के हितों की तिलांजलि दे …

प्रेम का मूल्य : देवयानी का कच को शाप

बृहस्पति छोटे देवताओं का गुरु था. उसने अपने बेटे कच को संसार में भेजा कि शुक्राचार्य से अमर-जीवन का रहस्य मालूम करें. कच शिक्षा प्राप्त करके स्वर्ग-लोक को जाने के लिए तैयार था. उस समय वह अपने गुरु की पुत्री देवयानी से विदा लेने के लिए आया. कच- ‘देवयानी, मैं विदा लेने के लिए आया हूं. तुम्हारे पिता के चरण-कमलों …

आजादी के 75 साल बाद भी भारत में लोकतंत्र को लागू नहीं कर पाए – हिमांशु कुमार

एक शब्द है बहुसंख्यवाद. यह लोकतंत्र का विरोधी शब्द है. कुछ लोग गलती से समझते हैं कि लोकतंत्र का मतलब है जहां बहुसंख्य लोगों की मर्जी से कामकाज चलाया जाए, उसे लोकतंत्र कहा जाता है. लेकिन यह गलतफहमी है. लोकतंत्र का अर्थ है जहां बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक सब का ध्यान रखा जाए. सब के अधिकारों की रक्षा हो. प्रत्येक नागरिक …

‘The Other Son’ : आखिर हमारी पहचान क्या है ?

क्या हो अगर एक दिन आपको पता चले कि आप जीवन भर जिस धर्म को मानते आये हैं, आपका जन्म उसमें नहीं बल्कि उस धर्म में हुआ है, जिससे आप घृणा करते है. उस वक़्त आप किस कदर सामाजिक-सांस्कृतिक-धार्मिक-आध्यात्मिक संकट से गुजरेंगे ? यही कहानी है इस फ्रेंच फिल्म ‘The Other Son’ की. इस कहानी के साथ यह फिल्म इसलिए …

हिटाची के संघर्षरत मज़दूरों के समर्थन में ज़ोरदार प्रदर्शन

तेज़ बारिश और जल-भराव से समतल नज़र आती टूटी सड़कों के ज़ोखिम की परवाह ना करते हुए, 9 जुलाई की शाम 5.30 बजे क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा के मजदूर साथियों ने अपने हाथों में लाल झंडा और गले में तख्तियां लटकाए भारी तादाद में पंजाब रोलिंग चौक पर इकट्ठे होने शुरू हो गए और गगनभेदी नारों से आसमान गूंज उठा. एक …

संविधान की शपथ लेकर सरकार में बैठे हो गुंडे बदमाशों की तरह काम मत करो

आपने कभी शांति को महसूस किया है ? कुत्ता भौंका, आपने ध्यान दिया कि शोर हो रहा है लेकिन कुत्ते के भौंकने से पहले और बाद में जो शांति है, क्या आपने उसका आनंद महसूस किया ? आप बीमार होते हैं तो सबको बताने लगते हैं कि आज मेरी तबियत ठीक नहीं है लेकिन जब आप स्वस्थ होते हैं तो …

प्रभाष जोशी के पुनर्मूल्यांकन की जरुरत

प्रभाष जोशी हिन्दी के बड़े गद्यकार, संपादक और विचारक हैं. उनके गद्य को आधुनिक हिन्दी साहित्य और मीडिया के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने की जरुरत है और उनके लिखे पर नए सिरे से मीडिया, खासकर इंटरनेट और वर्चुअल रियलिटी के नए परिप्रेक्ष्य में गंभीरता से विचार करने, अनुसंधान करने की आवश्यकता है. इस क्रम में साहित्य और मीडिया में गद्य …

पुतिन की दहशत और नाटो शिखर बैठक कराहपूर्ण नतीजों के साथ खत्म

बाल्टिक देशों में से एक जिस लिथुआनिया में नाटो शिखर बैठक के नाम से पूरी दुनिया एक अंजाने डर में घिर गई थी, उस बैठक में ऐसा कुछ नहीं हुआ जिसे कोई बेहद प्रासंगिक कदम कहा जाये. खबरों के मुताबिक लगभग 80 देशों के प्रतिनिधियों से भरा नाटो विलनियस शिखर बैठक एक ऐसी चिल्ल-पौं की भेंट चढ़ गया जहां नाटो …

किस ‘मिलान कुंदेरा’ का ‘शोक मनायें’ और किसका नहीं…!

कल मिलान कुंदेरा की मौत के बाद सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलियों का तांता लग गया था. निश्चित ही कुंदेरा बड़े और बहुआयामी रचनाकार हैं. सर्वसत्तावाद के खिलाफ़ व्यक्तिगत आज़ादी उनकी रचनाओं का आधारभूत दर्शन है. लेकिन बहुत कुछ ऐसा भी है, जिस पर हमारा ध्यान जाना चाहिए. ब्रिटिश लेखिका और पत्रकार जॉन स्मिथ की 1989 में एक मशहूर किताब आयी …

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