रोज़ एक ख़ास वक्त पर एक ख़ास तल्ले पर रुकती है लिफ्ट गलियारे के शीशे की खिड़की से झांकता है उस पार मेरा सोता हुआ बच्चा घुटने को छुपाये हुए पेट में कहता है पापा, देखो ना खेलते-खेलते कितना बड़ा हो गया हूँ मैं आपके कंधे क्यों और झुक जाते हैं रोज़, दफ़तर से लौटने के बाद बौने होते जा …
गतानुगतिक
