मौसम उतना उद्विग्न नहीं करता जितना कि जलते सवालों का संदर्भ मैं पार कर लूंगा देह के चौड़े पाटों में बहती व्यथा की उद्वेगी नदी पेंटागन का अध्यादेश चिपका है यातना शिविर के लौह कपाट पर तकाबी की शोभा यात्रा में ओझल है मेरे अकाल प्रदेश की फटी बिवाइयां चौकसी स्तंभों पर तनी संगीनों के बीच मेरी अभिव्यक्ति के संबल …
सफेद कबूतर
