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जनसंख्या कानून : राष्ट्रवादी सिलेबस का अगला चैप्टर

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जनसंख्या कानून : राष्ट्रवादी सिलेबस का अगला चैप्टर

ध्यान भटकाऊ राष्ट्रवादी सिलेबस का अगला चैप्टर जनसंख्या कानून है, उससे पहले कि आप इसके झांसे में आएं, इस पूरे खेल को समझ लीजिए –

देशभक्ति सिलेबस का ‘जनसंख्या कानून’ एक ऐसा चैप्टर है जिससे अच्छे से अच्छा मोहित हो जाए. विपक्ष के पास भी इसके विरोध में खास तर्क नहीं हैं. ये ऐसा एकमात्र ऐसा मुद्दा है जिसमें मोदी-शाह की इकतरफा जीत तय है. लेकिन इसके लागू होने पर होने वाली गड़बड़ियों से आप परिचित नहीं हैं. सरकार इसकी टेक्निकेलिटीज को जानती है, लेकिन फिर भी वह इसे देश पर थोपने के लिए एकदम रेडी ही है, क्योंकि डीमोनेटाइजेशन की तरह इस मुद्दे से भी नरेंद्र मोदी की नायक वाली छवि गढ़ने में संघ-भाजपा को मदद मिलेगी. अमित शाह भाषण में कहेंगे कि ये देशहित में है, कार्यकर्ता आपस में व्हाट्सएप पर भेजेंगे कि मुसलमानों को मोदी जी ने मजा चखा दिया. अंततः मुद्दा देश बनाम देशद्रोही हो जाना है. असली मुद्दे देशभक्ति के सॉफ्ट वातावरण में जलमग्न हो जाएंगे.

लेकिन इससे जुड़ी टेक्निकेलिटीज पर शायद ही कोई टीवी एंकर आपसे चर्चा करे, इसके पीछे क्या टेक्निकेलिटीज हैं ये जानने के लिए पूरा सब्र चाहिए –

1. सबसे पहले ‘प्रजनन दर’ क्या है, ये समझना जरूरी है. प्रजनन दर से मतलब है- अपने जीवनकाल में एक औरत कितने बच्चों को जन्म दे सकती है. यदि किसी देश की प्रजनन दर 3 है तो इसका मतलब ये है कि वहां की औरतें अपने जीवनकाल में औसतन तीन बच्चे पैदा करती हैं.

2. इस कानून से रिलेटेड एक टर्म और समझने की जरूरत है, जिसे ‘रिप्लेसमेंट रेट’ कहते हैं, इसका सादा-सा अर्थ है जन्म और मृत्यु की संख्या का बराबर होना, यानी रिप्लेसमेंट रेट एक तरह से ऐसी प्रजनन दर है जिस पर आने के बाद, जनता न बढ़ेगी, न घटेगी. तकनीकी तौर जब किसी देश की प्रजनन दर 2.1 होती है तब उसे रिप्लेसमेंट रेट कहा जाता है. ऐसे देश में एक औरत औसतन दो बच्चों को जन्म देगी, और उस देश की जनसंख्या स्थिर रहेगी. प्रजनन दर 2 से मोटामाटी मतलब है कि एक लड़का होगा, एक लड़की होगी, जो भविष्य में अपने माता-पिता की जगह ले लेंगे. इस तरह दुनिया चलती रहेगी. दोनों ही अगली पीढ़ी के प्रजनन के लिए आवश्यक हैं. इनमें से कोई भी एक कम हुआ तो उस देश की डेमोग्राफी गड़बड़ा सकती है.

3. अब आते हैं भारत पर, भारत जब आजाद हुआ था तब प्रजनन दर औसतन 6 हुआ करती थी, यानी भारत में एक औरत लगभग 6 बच्चों को जन्म दिया करती थी. लेकिन अब वह घटकर 2.2 हो चुकी है, यानी भारत रिप्लेसमेंट रेट के काफी करीब पहुंच चुका है. इसके आगे देश की जनसंख्या स्थिर हो जाएगी, और एक वक्त वह भी आएगा जब देश की जनसंख्या घटने लगेगी. भारत के बहुत से प्रदेश तो ऐसे हैं जो जनसंख्या दर को एक हद तक नियंत्रित कर चुके हैं, वहां रिप्लेसेबल रेट 2 से भी कम है, जैसे केरल, कर्नाटक, पंजाब, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल. असल में जनसंख्या पर नियंत्रण पाना, नार्थ इंडिया के कुछ प्रदेशों की प्रॉब्लम है, न कि पूरे देश की. नार्थ में भी जनसंख्या दर पिछले सालों में पर्याप्त रूप से घटी है, वह भी बिना किसी कैपिंग के.

4. इसका मतलब है कि बिना कोई खास कानून लाए भी जनता को जागरूक करके जनसंख्या पर नियंत्रण पाया जा सकता है. जैसे निरोध बांटकर, जैसे कि स्त्री-पुरुषों को ऑपरेशन के लिए प्रोत्साहित कर.

5. अब आते हैं कि कानूनी रूप से बच्चों की संख्या पर कैप लगाने के क्या परिणाम आते हैं. इसके लिए हमें चीन के उदाहरण को समझना होगा. चीन जिसकी नजीर देते हुए ही इस देश में जनसंख्या कानून लाने की बात की जा रही है. उसके बारे में आपको ये तो बताया जाता है कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए वहां कोई नीति लाई गई है. लेकिन आपको ये कभी नहीं बताया जाता है कि इस नीति के दुष्परिणामों के चलते चीन को भी अपने यहां उस नीति को 2015 में ही खत्म करना पड़ा है. चीन ने भी अपना जनसंख्या कानून वापस ले लिया है, जबकि चीन पूरी दुनिया में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है.

6. चीन ने 1979 में ‘एक बच्चे की नीति’ लागू की थी, इससे हुआ ये कि चीन में लड़कियों की संख्या गिर गई. चूंकि लोगों के पास एक ही बच्चे का ऑप्शन होता था इसलिए लोग उसके लिए ‘लड़के’ को प्रियॉरिटी देने लगे, इसका परिणाम ये हुआ कि चीन में लड़के ज्यादा हो गए, लड़कियां कम रह गईं. लिंगानुपात बुरी तरह से प्रभावित हुआ.

7. भारत जैसे देश में यदि बच्चों की संख्या पर कैप लगाई गई तो उसका सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव स्त्रियों पर ही पड़ेगा, एबॉर्शन की संख्या तेजी से बढ़ जाएगी. बेटी होने पर भ्रूण को कोख में मार दिया जाया करेगा क्योंकि भारत जैसे पितृसत्तात्मक देश में ‘पुत्रों’ को ही प्राथमिकता दी जाती है. यदि एक या दो बच्चे पैदा करने की ही अनुमति दी जाती है, तब तो सिर्फ और सिर्फ पुत्रों को ही प्राथमिकता दी जाएगी.

8. जिन देशों में जनसंख्या पर आर्टिफिशियल कैप लगाई जाती है, वहां देखा गया है कि काम करने वाले युवाओं की संख्या घट जाती है, यानी वहां बड़े-बूढ़ों की संख्या बढ़ जाती है. आज भारत में नौजवानों की संख्या ज्यादा है, जिसे रोजगार देकर देश के विकास के काम में लगाया जा सकता है. अंग्रेजी में इसे डेमोग्राफिक डिविडेंड कहते हैं. लेकिन सरकार रोजगार पैदा करने, इंडस्ट्रीज खड़ी करने जैसे उपायों पर काम करने के बजाय जनसंख्या को ही नियंत्रण करने के हवाबाजी उपायों में अधिक रुचि रखती है.

9. भारत जैसे गरीब देश में जहां आज भी निरोध (कंडोम) को लेकर पर्याप्त जानकारी नहीं है, अगर जानकारी है भी, तो लोग सहज रूप से उपयोग ही नहीं करते, या प्रतिदिन निरोध यूज करना उनके लिए आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं है. इस कारण अक्सर अनुचित गर्भधारण ठहर जाता है. इस तथ्य से हम सब वाकिफ हैं. यदि जनसंख्या के लिए सख्त कानून होगा तो अंततः गरीबों को ही प्रभावित करेगा. क्योंकि एबॉर्शन कराना उनके लिए तो बिल्कुल भी आसान नहीं है.

10. संवैधानिक रूप से भी ऐसा कोई भी कानून जो व्यक्ति के ‘जीवन जीने के अधिकार’ को संकुचित करता है, ऐसा कोई भी कानून, औरत की आजादी पर भी प्रतिबंध लगाता है कि उसे कितने बच्चों को जन्म देना है, कितने नहीं. एक आधुनिक समाज में, राज्य या राजा, नागरिकों की आजादी में इतना दखल दे, ये बिल्कुल भी प्रगतिशील विचार नहीं है. ये राज्य तय नहीं करेगा कि बैडरूम में क्या करना है, कितने गर्भ धारण करने हैं, ये तय करने का अधिकार व्यक्ति के विवेक पर छोड़ देना चाहिए, उस औरत पर छोड़ देना चाहिए. ये बात भी सरकार बताएगी कि कितने बच्चे पैदा करने है, ये अपने-आप में कितना रिग्रेसिव थॉट है. एक परिपक्व लोकतंत्र में राज्य की शक्तियां सीमित होती हैं, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता विस्तृत होती है. लेकिन जनसंख्या नियंत्रण जैसा कोई भी कानून, नागरिकों के व्यक्तिगत अधिकारों पर संसद के नियंत्रण को बड़ा कर देगा, जो लोकतंत्र के मूलभूत आईडिया के ही एकदम खिलाफ है, हम जनसंख्या नियंत्रण के उपायों के लिए चीन का उदाहरण देते हैं, लेकिन हम चीन नहीं हैं न ! हम एक लोकतंत्र हैं, हमारे यहां व्यक्तिगत आजादी का अपना महत्व है, यहां नागरिकों के विवेक का सम्मान किया जाता है. उसे क्या पहनना है, क्या खाना है, क्या करना है ये नागरिक के अधिकारों में आता है. सरकार का काम रोड बनाना है, अस्पताल बनाना है, स्कूल बनाना है, बच्चे पैदा करने के लिए इंस्ट्रक्शन देना नहीं है.

11. बच्चों की संख्या पर कृत्रिम कैप प्रकृति विज्ञान की दृष्टि से भी अनुचित है, चीन में ‘वन चाइल्ड पॉलिसी’ से जनसंख्या नियंत्रण करने में मामूली-सी मदद तो जरूर मिली थी, लेकिन वहां लिंगानुपात, और कामगारों की कमीं जैसी और अधिक बड़ी समस्याएं पैदा हो गईं है.

बूढ़ी होती जनसंख्या और काम करने वाले नौजवानों की कम होती जनसंख्या के कारण चीन में अब Wage बढ़ रहे हैं, वहां की लेबर मार्केट संकट में आ गई है, Wage बढ़ने के कारण ही चीन का वस्त्र उद्योग और चमड़ा उद्योग विश्व बाजार में कम्पीटीटिव नहीं रहा है. यही कारण है कि इन दोनों क्षेत्रों में चीन का ‘वैश्विक बाजार’ वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देशों ने हथियाना शुरू कर दिया है, जहां काम करने वाले नौजवानों की अधिक संख्या है, इसका अर्थ है कि वहां काम करने के लिए लेबर सस्ती है.

12. सरकार जनसंख्या के वाजिब उपायों पर काम न करके, नौजवान नागरिकों को रोजगार न देकर, जनसंख्या कानून जैसी हवाबाजी में आपको उलझाए रखना चाहती है. जो अपने आप में एक असफल मॉडल है. लेकिन सरकार जानती है कि उसके हाथ एक ऐसा फॉर्मूला है जिसे आसानी से हिन्दू-मुसलमान किया जा सकता है. इससे पूर्व में भी जनसंख्या नियंत्रण के लिए उपाय किए जाते रहे हैं. लेकिन कैपिंग नहीं लगाई गई. गांव में नियुक्त आशाओं के थ्रू गांव में निरोध की व्यवस्था की जाती रही है, हम सबने अपने बचपन में, हर स्कूल-कॉलेज की दीवारों पर ‘हम दो हमारे दो’ के पोस्टर देखे होंगे, पहले टीवी पर जनसंख्या नियंत्रण पर जागरूक करने के लिए खूब सारे एड आते थे. इसका परिणाम ये हुआ कि आज भारत की प्रजनन दर स्थिर होने को है. भारत की प्रजनन दर, रिप्लेसेबल रेट के लगभग पास है. बिना कानून भी भारत की जनसंख्या एक समय के बाद स्थिर होने वाली है.

लेकिन ये सरकार एकदम निराली है, इसे हर मुद्दे को भुनाना है, हर मुद्दे के बाद एक नायक बनाना है, जिससे लगे कि भारत को ऐसा प्रधानमंत्री मिला है, जो ठोस निर्णय लेने में बिल्कुल भी पीछे नहीं हटता. लेकिंन आप एक बार दिमाग पर जोर डालकर याद करिए कि पिछले 6 सालों में इस सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए कौन-कौन से वाजिब उपाय किए हैं ?

सिवाय हवाबाजी के आपको कुछ याद नहीं आएगा, ये हवाबाजी भी अंततः हिन्दू-मुस्लिम डिबेट में बदलने के लिए ही लाई जा रही है. (आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने जनसंख्या नियंत्रण पर कानून लाने की बात कही थी, जल्द ही साल-महीने में इस पर कानून आएगा, इसकी पूरी संभावनाएं हैं).

  • श्याम मीरा सिंह

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