Home कविताएं बहुजन कीर्तन

बहुजन कीर्तन

0 second read
0
1
242

बहुजन
बहुजन
के भजन में
गोपाला
बहुजन है कहां

आज भी ये
आदमी नही
राजा के
मदारियों के
बंदर भालू हैं
फ्री की सेना
फ्री के मंजूर
हैं पशु समान
ये आदमी नहीं

ये न आदमी
होना चाहते
न शोषक को
जानना
समझना

न यह समझना
चाहते
शोषित की
कोई जाति
नही होती

ये यह भी
नही मानते
कि इंसान इंसान
बराबर होते हैं

यह भी
नही मानते
वर्ण जाति
ढोंग है

यह भी
नही मानते
पीड़ित पीड़ित
एक समान
शोषित शोषित
एक समान

वे इस तरह
न रहना चाहते
न दिखना चाहते
न मानना चाहते
बंदर भालू
जनावर
पशु समान

जीवन उनका
अपना है
अपने को क्या
उनका सुख
वो जाने
अपना दुख
अपने साथ

बहुत सुखी हैं वे
बंदर भालू होकर
रामराज की
लेकर पताका

  • बुद्धिलाल पाल
    30/08/2022

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

Donate on
Donate on
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • औरत

    महिलाएं चूल्हे पर चावल रख रही हैं जिनके चेहरों की सारी सुन्दरता और आकर्षण गर्म चूल्हे से उ…
  • लाशों के भी नाखून बढ़ते हैं…

    1. संभव है संभव है कि तुम्हारे द्वारा की गई हत्या के जुर्म में मुझे फांसी पर लटका दिया जाए…
  • ख़ूबसूरत कौन- लड़की या लड़का ?

    अगर महिलायें गंजी हो जायें, तो बदसूरत लगती हैं… अगर महिलाओं की मुंछें आ जायें, तो बद…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

एक कामलोलुप जनकवि आलोकधन्वा की नज़र में मैं रण्डी थी : असीमा भट्ट

आलोकधन्वा हिन्दी के जनवादी कविताओं की दुनिया में बड़ा नाम है. उनकी कविताओं में प्रेम की एक…