Home गेस्ट ब्लॉग भीड़ हमेशा साहस से बहुत डरती है

भीड़ हमेशा साहस से बहुत डरती है

6 second read
0
0
652

भीड़ हमेशा साहस से बहुत डरती है

प्रेमकांत ने देखा कि मुस्लिम पड़ोसी का घर जल रहा है तो आग में घुस गए. परिवार में 6 लोगों को बाहर निकाल लिया. बूढ़ी मां बच गई थीं. प्रेमकांत फिर से आग में घुस गए, मां को निकाल लाये लेकिन खुद झुलस गए. झुलस गए तो क्या हुआ ? इस घर पर पेट्रोल बम से हमला करने वाले राक्षस तो हार गए न ? वे हमेशा हारेंगे.

मुस्तफाबाद के एक मोहल्ले में भीड़ हिंदू घरों में घुसने लगी तो आसपास के मुस्लिम युवक आगे खड़े हो गए. बोले मेरी गली में तभी घुस पाओगे जब हमें मार डालो. हमारे रहते हम ये नहीं होने देंगे. भीड़ लौट गई.

भीड़ हमेशा साहस से बहुत डरती है. दंगाई भीड़ बूढ़े कृशकाय गांधी से बहुत डरती थी. दंगाई आज भी बापू से बहुत डरते हैं. सुनील कह रहे हैं कि मेरे ये पड़ोसी न होते तो ये कहानी सुनाने के लिए मैं जिंदा न होता. एक मुहल्ले में मुस्लिमों पर भीड़ हमला करने आई तो दलितों ने कहा भाग जाओ यहां से. यहां कोई हिंदू मुस्लिम नहीं है. पहले मुझसे लड़ना पड़ेगा. भीड़ लौट गई.

एक मोहल्ले से हिंदू परिवार भागने की फिराक में थे. मुस्लिमों को पता चला. सब इकट्ठा होकर आए और बोले, हम वैसे जाहिल नहीं हैं. हम गारंटी देते हैं. आपको कहीं नहीं जाना है. कोई कहीं नहीं गया.

बन्ने खान परिवार के साथ हिंदू मोहल्ले में फंस गए. वहां उनके ताऊ का घर है तो के पड़ोसी हिंदुओं ने सबको घर में करके बाहर से ताला मार दिया. पिछले दरवाजे से खाना-पानी पहुचाते रहे. फिर सब शांत हुआ तो बन्ने के साथ पुलिस आई और सबको वहां से ले गई.

एक युवक ने सोशल मीडिया पर अपील की कि मेरे दोस्त के घर में उसकी मां अकेली है. उसके घर पर अटैक हुआ है. आपसे अपील है कि ऐसा न करें. तीन-चार मुस्लिम युवक गए और उस बुजुर्ग मां को अपने घर ले आए.

जिस मौजपुर में बहुतों का नुकसान हुआ, उसी मौजपुर में अगल-बगल हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदायों की दुकानें थी. दोनों ने मिलकर मोहल्ले भर को इकट्ठा किया और अपने मोहल्ले में किसी को घुसने तक नहीं दिया. इनकी 50 दुकानें सुरक्षित हैं और मोहल्ले के सभी लोग सुरक्षित हैं.

जिन सिक्खों ने विभाजन से लेकर 84 तक अथाह हिंसा झेली, उनकी तरफ देखिए, हिंदुस्तान पर भरोसा बढ़ जाएगा. कल ही सिखों ने अपने सभी गुरूद्वारों को पीड़ितों के लिए खोल दिया है. वहां सबके जान-माल की सुरक्षा भी होगी, खाना खिलाएंगे, सेवा करेंगे.

मंगलवार को जिस दिन हिंसा बेकाबू थी, मुझे सुबह से करीब दर्जन भर से ज्यादा ऐसी सूचनाएं मिलीं जहां हिंदू और मुसलमानों ने एक दूसरे को बचाया या पनाह दी. मेरे एक बहुत प्यारे दोस्त उसी दिन मिलने आये थे. बेरोजगार हैं. मेरे सामने ही 3-4 कश्मीरी युवकों ने उन्हें फोन किया. उन्होंने भरोसा दिया कि चिंता नहीं है, सब मेट्रो ले लो और लोग मेरे घर आ जाओ.

यह देश वारिस पठानों, कपिल मिश्राओं और ऐसे जाहिलों ने नहीं बनाया है, न इनके दम पर यह चल रहा है. यह देश ऐसे करोड़ों हिंदुस्तानियों के दम पर चल रहा है जिनके बारे में लिखने के लिए भाषाएं कम पड़ रही हैं. इंसानों को बचाने वाली उन हथेलियों पर भरोसा रखिये जो आपके आंसुओं से भीगे चेहरे को पोंछ देती हैं. ये लोग आज मुझे मिल जाएं तो शायद मैं कुछ कह न पाऊं, बस रो दूं, लेकिन मेरा रोम-रोम इनका ऋणी महसूस कर रहा है.

यही वे लोग हैं जो देश बनाते हैं. बहुरुपिया हत्यारे देश नहीं बनाते, वे झूठा नारा लगाते हैं. दंगाइयों से कह दो, यह हिंदुस्तान है और हिंदुस्तान कभी नहीं हारेगा.

  • कृष्णा कांत

Read Also –

राजनीति की दुःखद कॉमेडी
दंगों के बहाने गांधी जी का लेख
‘संविधान से प्यार करते हैं अन्यथा तुम्हारी जुबान खींचने की ताकत है हममें’
दुनिया भर में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर हमले

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

एक कामलोलुप जनकवि आलोकधन्वा की नज़र में मैं रण्डी थी : असीमा भट्ट

आलोकधन्वा हिन्दी के जनवादी कविताओं की दुनिया में बड़ा नाम है. उनकी कविताओं में प्रेम की एक…