'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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कविताएं

यह कैसा समय है भाई ?

यह कैसा समय है भाई ? जब जानते हुए भी आप नहीं कह सकते चोर को चोर. और जो सच कहा तो मचे राष्ट्रद्रोही का शोर. यह कैसा समय है भाई जब चोरी का उत्तर देने के लिए चोरी को ही उदाहरण बनाया जाता है गर्व के साथ. यह कैसा समय है भाई जब बेशर्मी का उत्तर दिया जा रहा …

कोरोना तेरे नाम पर

कोरोना तेरे नाम पर लोगों को मरते देखा. नदियां, हवा, शहर, आसमान, चांद-सितारे को स्वच्छ होते भी देखा. लाखों लाख लोगों को सड़कों पर चलते देखा. पांव में छाले, फफोले, पसीना से लथपथ भूख-प्यास से तड़पते इंसानों को देखा. मजदूरों के पांव के खून से रंगे सड़कों को देखा. एक्सीडेंट में मरे मजदूरों के लाशों को देखा. सरकार के किए …

युद्ध की बात करने से पहले

युद्ध की बात करने से पहले परिंदों के पंख में पलते उजले-धुले, नीले आसमान को देखो ! देखो – पेड़ों के तन-मन में लहराते हरियर समुद्र को !! युद्ध की बात करने से पहले बादलों को पुकारती खेतों की उर्वर मिट्टी को देखो ! देखो – धान की बाली में मोतियों-सी चमकती ओस की बूंदों को !! युद्ध की बात …

मैं भारत के भाल पर एक निर्लज और गलीज कलंक हूं

मैं भी आत्महत्या करता लेकिन मैं पांचवीं माले पर नहीं जमीन पर हूं मैं फिलहाल जिस फूटपाथ पर रहता हूंं उसका किराया कभी कभार पुलिस की मार है सर्दी गर्मी बारिश जैसी आसमानी बेरुखी है मेरे बैंक खाते में भूख है, जहालत है, बीमारी है मेरे सगे संबंधियों में मेरी तरह बीमार और भूखे कुछ कुत्ते हैं मैं भारत के …

कैसे कैसे महापुरुष ?

बहुत साल पहले की बात है, मथुरा वाले बाबा जय गुरुदेव, मेहंदी गंज बाजार में आए थे, और कहा था कि सबको जूट से बने कपड़े पहनने होंगे, एक बीघे में 100 मन अनाज पैदा होगा, चलो भाई उनका कहा तो सच हो गया, खेतों में 100 मन धान पैदा होने लगा. एक महापुरुष का देश में फिर अवतार हुआ …

लॉक-अप में कविता

कविता – कवि कहते हैं, होना चाहिए प्रेम प्रतिज्ञा अपने महबूब के प्रति. वर्णन हो, उसके अंग-प्रत्यंग का. नख से शिख तक का. कलात्मकता निहित हो, उसके सुखमय आलिंगन में ! परन्तु, कविता एक परम्परा भी है, मेहनतकशों के प्रति प्रतिबद्धता का भी है. जहां यह सब नहीं होता. कविता कल्पना में नहीं थाने के लाॅक-अप में भी हो सकता …

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