Home गेस्ट ब्लॉग आगामी लोकसभा चुनाव में जीत के लिए फासिस्ट इतना बेताब क्यों है ?

आगामी लोकसभा चुनाव में जीत के लिए फासिस्ट इतना बेताब क्यों है ?

6 second read
0
0
231
आगामी लोकसभा चुनाव में जीत के लिए फासिस्ट इतना बेताब क्यों है ?
आगामी लोकसभा चुनाव में जीत के लिए फासिस्ट इतना बेताब क्यों है ?
विनोद शंकर

लालकृष्ण आडवाणी के रथ यात्रा रोकने और उन्हें गिरफ़्तार करने के लिए लालू प्रसाद यादव को इतिहास हमेशा याद रखेगा लेकिन लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न मिलने पर मीडिया उन्हें भारतीय राजनीति को छद्म धर्मनिरपेक्षता से मुक्त करने का श्रेय दे रहा है, इसका मतलब क्या है ?

साफ़-साफ़ क्यों नहीं बता रहे हो कि लालकृष्ण आडवाणी ने भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता को स्थापित कर दिया और उन्हें भारत रत्न दंगा यात्रा (रथ यात्रा) और बाबरी मस्जिद गिराने के लिए इनाम के तौर पर दिया जा रहा है. और कोई महान काम तो इस महापुरुष ने किया नहीं है ! इसी बहाने नौजवानों को भी संदेश दिया जा रहा है कि उन्हें भी भारत रत्न पाने के लिए क्या करना होगा ?

राम मंदिर को बाबर ने ढहा कर, बाबरी मस्जिद बनाया, इसका कोई प्रमाण नही है. लेकिन बाबरी मस्जिद को किन लोगों ने ढहाया और वहां किसने राम मंदिर बनाया, इसका तो प्रमाण है. करोड़ो लोग इसके गवाह है. अब क्या कहते हो ? सुप्रीम कोर्ट के जज से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने जघन्य अपराध किया है, जिसके लिए इन सब को कभी माफ़ नहीं किया जा सकता है.

जब मैं इस पर सोचता हूं तो मेरी आंखों की नींद उड़ जाती है. एक धार्मिक समुदाय के अस्तित्व पर इतना बड़ा हमला, वो भी एक लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए प्रधानमंत्री द्वारा ! जिसने खुद धर्मनिरपेक्ष संविधान का शपथ लिया हैं. एक स्वतंत्र नागरिक के लिए ये सब बर्दाश्त के बाहर है.

न्याय तो तब होता जब बाबरी मस्जिद की जगह फिर से मस्जिद बनाया जाता और इसे गिराने वाले सभी लोगों को जेल में डाला जाता लेकिन यहां तो अन्याय पर अन्याय होते जा रहा है और पुरा देश चुप है. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर के पक्ष में फ़ैसला दे दिया. ये सुप्रीम कोर्ट कौन होता है देश के गंगा-जमुनी तहजीब पर हमला करने वाला ?

और ये कौन लोग होते है मस्जिद ढहा कर मंदिर बनाने वाला ? क्या देश में इनके बाप का राज्य आ गया है ? क्या देश में हिंदुओं की जनसंख्या सब से अधिक है तो अब बहुमत देख कर फ़ैसला दिया जाएगा ? इस तरह तो इस देश की न्यायपालिका और सरकार हिंदुओं को खुली छुट दे रही है गैर हिंदुओं पर कोई भी जुल्म और अत्याचार करने के लिए.

अरे तुमलोग नौजवानों को रोजगार नहीं दे सकते, देश से गरीबी खत्म नहीं कर सकते, फिर भी कोई बात नहीं लेकिन देश में साम्प्रदायिकता का जहर मत फैलाओ. गंगा-जमुनी तहजीब को मत खत्म करो, धार्मिक उन्माद मत फैलाओ. यह सब तो रोक ही सकते हो और रोको नहीं तो तुम सब इतिहास में नायक नहीं बहुत बड़े खलनायक के तौर पर याद किए जाओगे. जिस तरह आज हिटलर के कुकर्म को लेकर पुरा जर्मनी शर्मिंदा है, वैसे ही एक दिन भारत भी तुमलोगों के कुकर्म को लेकर शर्मिंदा होगा.

और विपक्षी पार्टियों, तुम लोगो का जमीर मर गया है क्या ? किसलिए पार्टी बनाएं हो ? सिर्फ़ सत्ता का सुख भोगने के लिए ! संविधान पढ़े हो या नहीं ? पता है न कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है, जिसका मतलब है राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है. राज्य के पदों पर बैठे लोग किसी भी धर्म का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं. फिर देश का प्रधानमंत्री कैसे किसी खास धर्म के मंदिर में जा कर प्राण-प्रतिष्ठा कर सकता है ? वो भी ऐसे मंदिर में जिसे मस्जिद ढहा कर बनाया गया है.

दरअसल तुम लोग के अंदर भी हिंदुओं के खिलाफ़ जाने का साहस नही बचा है और न ही संविधान के साथ खड़ा होने की हिम्मत ! अगर ऐसा होता तो तुम लोग उसी दिन सड़क पर उतर गए होते, जब सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आया था. तब आज वहां मंदिर नहीं मस्जिद बन रहा होता. खैर तुम सब से अब कोई उम्मीद करना भी बेकार है. अब जो उम्मीद है वो जनता से ही है.

‘रघु कुल रीत सदा चली आई, प्राण जाई पर वचन न जाई !!’ तुलसीदास के रामचरितमानस का यह लोकप्रिय दोहा लगता है. हमारे महान रामभक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी और गृहमंत्री अमित शाह जी भूल गए हैं ! सोचा उन्हें याद दिला दूं ! आखिर वे दोनों राम भक्त जो ठहरे ! और अभी हाल ही में तो उन्होंने अपने राम लला का प्राण-प्रतिष्ठा किया है ! भला वे अपने आराध्य के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण बात कैसे भूल सकते हैं ? वैसे हमारे माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी तो इस चीज की परवाह ही नहीं करते हैं.

अपने बातों से पलट जाने वाले ये महान लोग क्या आदर्श रख रहे हैं हमारे बच्चों के सामने ? ये सोचने वाली बात है. जब भी कोई बच्चा इन्हें सुनता होगा तो सोचता होगा, जब हमारे प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ही झूठ बोल रहे है तो फिर मेरा झूठ बोलने में क्या है ?

ये महाभ्रष्ट, अनैतिक और सिद्धांतविहीन लोग ही जब देश चला रहे हैं तो देश का हाल क्या होगा ? खुद तो ये लोग गिरे हुए हैं ही, अपने स्वार्थ में देश को भी गिरा रहे हैं. और ये सब इतने बेशर्म है कि इन्हें इसका एहसास भी नहीं है. पर जनता को तो एहसास करना होगा कि ये झूठे और मक्कार लोग उनके लिए कुछ नहीं करने वाले हैं. जो अपनी बात पर नहीं कायम है, वो जनता के लिए क्या करेगा ?

मुझे संसदीय राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है इसलिए मैं न तो किसी चुनाव पर नजर रखता हूं और न ही किसी चुनाव परिणाम पर ध्यान देता हूं क्योंकि मुझे पता है, इनमें कोई जीते या हारे जनता के जीवन में कोई खास फ़र्क पड़ने वाला नहीं है. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा जिस तरह से अपने विरोधियों को निपटा रही है, उन्हें चुनाव से पहले ही अपने रास्ते से हटा रही है, उसने मुझे भी सोचने पर विवश कर दिया है कि आखिर भाजपा ऐसा क्यों कर रही है ? आखिर वो किसी भी हाल में चुनाव क्यों जितना चाहती है ? जिसके लिए वो कोई रिस्क नही लेना चाहती है, इसका करण मुझे निम्नलिखित लगता है –

  1. पहला करण यह है कि 2025 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्थापना का 100 साल पूरे हो रहा है इसलिए भाजपा किसी भी हाल में केंद्र में सत्ता में रहना चाहती है ताकी आरएसएस के स्थापना दिवस को भी राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा की तरह राष्ट्रीय आयोजन का रूप दे सके और भारत को हिन्दू राष्ट्र का औपचारिक घोषणा कर सके. वैसे व्यवहारिक रूप से तो भारत हिन्दू राष्ट्र बन ही गया है.
  2. दूसरा कारण यह है कि हर तानाशाह की तरह नरेंद्र मोदी की भी अपनी महत्वाकांक्षा है. भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने का श्रेय जितना आरएसएस लेना चाहता है, उस से कही ज्यादा नरेंद्र मोदी खुद लेना चाहते हैं. इसलिए वो किसी भी हाल में 2024 के लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत के साथ सत्ता में आना चाहते हैं और इसकी पक्की गारंटी वे चुनाव से पहले ही कर लेना चाहते हैं.
  3. तीसरा कारण आर्थिक है. जिस तरह अपने दो कार्यकाल में नरेंद्र मोदी ने अपने पसंदीदा पूंजीपति मित्रों को आगे बढ़ाया है, इसे वे अपने तीसरे कार्यकाल में भी जारी रखना चाहते हैं. उनके मुनाफे के लिए देश के बाकी बचे संसाधन भी सौंप देना चाहते हैं.

अब इसका क्या परिणाम होगा ? अभी तो बस इसका अनुमान ही लगाया जा सकता है।लेकिन इतना तो तय है अभी देश में जितनी भी समस्या है, ये सब कम होने की बजाएं बेतहाशा बढ़ने वाला है. जाहिर है अगर 2024 का लोकसभा चुनाव देश का आखिरी चुनाव हुआ, तो फिर पूरे देश में गृहयुद्घ होनेवाला है. वैसे यह आदिवासी इलाकों खासकर छत्तीसगढ, झारखंड, उड़ीसा, महाराष्ट्र, तेलंगाना आदि राज्यों में हो ही रहा है.

और देश में एक बड़ा तूफान आनेवाला है, जिसमें देश की 75 साल की संवैधानिक उपलब्धि उड़ जाएगी या फासिस्ट उड़ जाएंगे. दोनों में से कोई एक होने वाला हैं. फासिस्ट सारी संवैधानिक उपलब्धियों को मिट्टी में मिला देने के लिए तैयार है. क्या देश के सभी शोषित, उत्पीडित जनता इसे बचाने और फासिस्टो को ही मिट्टी में मिलाने के लिए तैयार है ? यही देखना वाली बात है.

Read Also –

 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

‘नाटो सैन्य संगठन को पुतिन जूती की नोक से मसल देने की बात करते हैं’ – एडरिफ गोजा

पृथ्वी की दो महाशक्तियों की ये मित्रता पूरे विश्व की आर्थिक सेहत तय करने जा रही है. चूंकि …