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छात्रों पर हमला : पढ़ाई करने और पढ़ाई न करने देने वालों के बीच

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मोदी-शाह ने किया छात्रों पर हमला, दुनिया भर में हुई थू-थू

शिक्षा से मोदी-शाह के नफरत का अंदाजा जेएनयू के छात्रों पर अपने नकाबपोश गुंडों को भेजकर किये गये हमलों में साफ दिखाई दिया है. इससे पहले जामिया मिल्लिया के छात्रों पर बकायदा पुलिस भेजकर हमला करवाया गया था, ये अलग बात है कि पुलिस के भेष में संघी गुंडे ज्यादा थे, जिसकी दुनिया भर में थू-थू होने के बाद जेएनयू में पुलिस को न भेजकर नकाबपोश गुंडे भेजे गये और पुलिस का उपयोग इन नकाबपोश गुंडों के सुरक्षित आने, छात्रों को पीटने में किसी भी बाधा को रोकने और फिर सुरक्षित निकल जाने के लिए किया. और इससे भी आगे देश भर के विश्वविद्यालयों में छात्रों पर लगातार हमले चाहे वह जादवपुर विश्वविद्यालय हो, छेड़खानी के विरोध करने पर बीएचयू के छात्राओं पर रात के अंधेरे में हाॅस्टल में घुसकर पुलिसिया तांडव हो, तमाम विश्वविद्यालयों को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया है.

पिटाई खाने वाले जेएनयू के इन छात्रों की मांग क्या थी: मोदी-शाह के रखैल कुलपति के द्वारा पढ़ाई में लगने वाले फीस को बढ़ा दिया, जिस कारण कैम्पस में पढ़नेवाले 40 प्रतिशत छात्र को पढ़ाई छोड़ना पड़ता क्योंकि कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि वाले उनके परिजन इस बढ़ी हुई फीस को चुकाने में असमर्थ थे. यही कारण है कि जेएनयू के छात्र इस फीस बढ़ोतरी के खिलाफ लगातार आन्दोलनरत थे. इसमें गौर करने की बात यह है कि ये छात्र मुफ्त शिक्षा की बात नहीं कर रहे थे, केवल फीस बढ़ोतरी का विरोध कर रहे थे, और मोदी-शाह की आपराधिक जोड़ी इन छात्रों को देशद्रोही, अर्बन नक्सली वगैरह कह रहे हैं.

प्रेमचंद जैसे गांधीवादी लेखक तमाम तरह की शिक्षा को मुफ्त करने की बात रहे थे. उनके मुताबिक, ‘मैं चाहता हूं ऊंची से ऊंची तालीम भी सबके लिए मुफ्त हो ताकि गरीब से गरीब व्यक्ति भी ऊंची से ऊंची लियाकत पा सके और ऊंची से ऊंची औहदा हासिल कर सके. विश्वविद्यालय के दरवाजे सबके लिये खुले होना चाहिए. सारा खर्च सरकार पर पड़ना चाहिए. मुल्क को तालीम की उससे कहीं ज्यादा जरूरत है जितनी फौज की.’ हम समझ सकते हैं कि महज फीस बढ़ोतरी का विरोध करने वाले छात्रों को देशद्रोही, अर्बन नक्सल कहने वाली गुंडों की यह सरकार मुफ्त शिक्षा की मांग करने वाले प्रेमचंद को न जाने किस श्रेणी में रखते !!

असल में देश की तमाम विश्वविद्यालयों को पुलिस छावनी में बदल देने वाली देश की सत्ता पर काबिज मोदी-शाह की यह आपराधिक जोड़ी शिक्षा को आम लोगों, जिसमें शुद्र, दलित, आदिवासी, औरतों की पहुंच से दूर करना चाह रही है, परन्तु इसके लिए वह अभी जातिगत तरीकों को नहीं अपना सकती क्योंकि विगत 70 सालों से देश के अंदर संविधान के द्वारा शासित होने के कारण इन दमित तबकों की कई पीढियां शिक्षित हो चुकी है अथवा शिक्षित हो रही है. यही वह पहला ‘गड्ढा’ है जिसे मोदी-शाह 70 सालों में बनने की बात करता है.

70 सालों में बने इस ‘गड्ढे’ के कारण इन तबकों को फिर से अशिक्षा और गुलाम बनाए जाने के लिए प्रयास इन गुंडों ने शुरू कर दिया है, जिसका पहला चरण है फीसों में बढ़ोतरी. इस फीस बढ़ोतरी के द्वारा इन दमित तबकों को शिक्षित होने से रोकना क्योंकि आज भी इन तबके के अधिकांश लोग आर्थिक के साथ-साथ सामाजिक समस्याओं से भी जूूूझ रहे हैं (इसका एक स्पष्ट उदाहरण राष्ट्रपति के पद पर बैठे दलित राष्ट्रपति रामनाथ कोबिन्द तक को इन ब्राह्मणवादियों ने धक्के मार कर मंदिर से बाहर निकाल दिया था), इस आबादी की बड़ी संख्या को अशिक्षित बनाने के लिए तत्काल फीस बढ़ोतरी भर कर देने से ही ये लोग शिक्षा की पहुंच से महरुम हो जायेंगे.

70 साल के इस ‘गड्ढे’ को पाटने, यानी इस विशाल आबादी को अशिक्षित और गुलाम बनाने के लिए मोदी सरकार 50 साल मांग रहा है, क्यों ? सीधा सा जवाब है. अमूमन 20 साल में एक पूरी पीढ़ी बदल जाती है, जो अगली दो पीढ़ी बाद खत्म हो जायेगी. यानी आज की पढ़ी-लिखी जवान पीढ़ी अगले 50 साल बाद मर-खप या नकारा बन जायेगी. अगर आज की पीढ़ी को शिक्षा से वंचित कर दिया जाये तो अगले 50 सालों में देश की शुद्र, दलित, आदिवासी, महिलाओं की विशाल आबादी पैदा हो जायेगी, जो शिक्षा से दूर होगी. हम जानते हैं ऐसे अनपढ़-अशिक्षित लोग न तो सवाल पूछ सकते हैं और न ही अपने अधिकारों के लिए लड़.ही सकते हैं. वह बस जिंदा रहने के लिए चंद टुकड़े को ही अपनी दुनिया मान लेते हैं.

मोदी-शाह की यह आपराधिक जोड़ी इस काम में जुट गई है. एक ओर फीस में बेतहाशा बढ़ोतरी कर दी तो वहीं दूसरी ओर पूरे देश भर में लाखों की तादाद में स्कूलों को बंद कर दिया है. लाखों स्कूलों में शिक्षकों के रिक्त पदों को खत्म कर दिया है. स्थायी शिक्षकों की जगह अस्थायी शिक्षकों को तात्कालिक तौर पर रखा जा रहा है, जिसे कभी भी हटाया जा सकता है. प्रयोगशालाओं और पुस्तकालयों को खत्म किया जा रहा है. पढ़ने वालों को अपराधी और अर्बन नक्सल कह कर बदनाम किया जा रहा है. पढ़ाई-लिखाई को अपमान की बात बताया जा रहा है.

जिस देश में यह कहा जाता था कि पढ़ने और सीखने की उम्र नहीं होती, अब वहां पढ़ने की उम्र तय की जा रही है. अब अनपढ़ रहकर चंद पैसों में काम करने को महान बताया जा रहा है. देश की सीमाओं पर चंद पैसे के लिए मर जाने को महान बनाया जा रहा है, परन्तु, ज्यों ही वह पढ़ने की बात करता है, कोई भी सवाल उठाता है, चाहे यह सवाल सीमाओं पर मर रहे सेना के जवान उठाये, या देश के भीतर के छात्र नौजवान तुरन्त देशद्रोही, अर्बन नक्सल का तगमा मिल जाता है. उसकी हत्या की जाती है, पुलिस और नकाबपोश गुंडों द्वारा जानलेवा हमला करवाया जाता है, फर्जी मुकदमा दर्ज कराया जाता है.

सवाल पूछने के लिए पढ़ना जरूरी है, अगर पढ़ाई ही बंद हो जाये तो सवाल स्वतः बंद हो जायेगा. यही कारण है कि भाजपा-संघी देश की विशाल आबादी को अनपढ़ बनाये रखना चाहती है क्योंकि अनपढ़ या अशिक्षित कोई सवाल नहीं करता. वह बेहतर गुलाम होता है. ( सवालों से देश की आपराधिक जोड़ी मोदी-शाह को कितनी नफरत है कि मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद कभी पत्रकारों के सवालों का जवाब नहीं दिया. जिस पत्रकारों ने गंभीर सवाल पूछने शुरू किये, उनको नौकरी से निकलवाने, हत्या करने, या संघी गुंडों द्वारा धमकाने जैसे कुकृत्य किये जाने लगे हैं). चंद रुपयों के लिए मालिकों खातिर जान गवां देने वाला मूर्ख होता है. और सबसे बढ़कर वह अपनी इस मूर्खता पर गर्व भी करता है. यह हम आये दिन मरने वाले सेना के जवानों में खूब देखते हैं, जहां वे पूंजीपतियों के मुनाफा के लिए बलि चढ़ते हैं, या अपने ही समान भाई-बंधुओं की हत्या करते हैं. मनुस्मृति इसकी बेहतर व्यवस्था करता है.

मनुस्मृति स्पष्ट रूप से शुद्रों, दलितों, आदिवासियों, महिलाओं को शिक्षा देने के खिलाफ है. संविधान लिखे जाने से पहले संविधान और संवैधानिक अधिकारों के लिए तत्कालीन राजनेताओं की विचार बेहद भयावह थे –
1. लोकमान्य तिलक के अनुसार, ‘ये तेली, तंबोली, कुर्मी, कुम्हार, चमार संसद में जाकर क्या हल चलाएंगे.’
2. महात्मा गांधी का विचार था, ‘अगर अंग्रेज शूद्रों को भी आजादी देते हैं, तो मुझे ऐसी आजादी नहीं चाहिए. मैं शूद्रों को आजादी देने के पक्ष में नहीं हूं.’ वहीं वे शुद्रों को पृथक आरक्षण देने के खिलाफ थे.
3. सरदार पटेल डॉ अंबेडकर के खिलाफ थे. वे कहते थे, ‘डाॅ. अम्बेदकर के लिए संविधान सभा के दरवाजें ही नहीं, खिड़कियां भी बंद कर दी है, देखता हूं, डॉ अंबेडकर कैसे संविधान सभा में आता है.’
4. आरएसएस ने डॉ अंबेडकर साहब के द्वारा भारत का संविधान लिखने के बाद संविधान को लागू नहीं करवाने के लिए डॉ अंबेडकर साहब के पूरे देश में पुतले जलाये गये.

ये तो संविधान लिखे जाने के पहले तत्कालिक राजनेताओं के विचार थे. 70 सालों के ‘गड्ढ़े’ बनने के बाद भी राजनेताओं के विचार नहीं बदले हैं, जो आज देश की सत्ता पर काबिज हैं –

1. प्रधानमंत्री मोदी जी कहते हैं, ‘दलित मंदबुद्धि होते हैं.’
2. संघ प्रमुख मोहनभागवत कहते हैं, ‘आरक्षण जाति आधारित नहीं होना चाहिए, अतः आरक्षण की समीक्षा की जाएं.’

3. केन्द्रीय मंत्री वी. के. सिंह कहते हैं, ‘दलित कुत्ते होते हैं.’
4. भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी कहते हैं, ‘हम यानि भाजपा आरक्षण को निर्रथक कर देंगे.’
5. भाजपा के केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े ऐलान करते हुए कहते हैं, ‘हम यानि भाजपा सत्ता में संविधान बदलने आये हैं.’
6. केन्द्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े साफ कहते हैं, ‘व्यक्ति की पहचान जाति से होनी चाहिए.’
7. धर्मगुरु स्वरूपानंद सरस्वती साफ करते हैं, ‘हम संविधान को नहीं मानते हैं.’

विदित हो कि देश के संविधान को बनाने में अंग्रेजों का योगदान था, जिसका प्रमुख उस समय डाॅ. अम्बेदकर को बनाया गया था. इस संविधान के लिखे जाने वक्त समूचा आवाम एकजुट था अंग्रेजों के खिलाफ जंग ने लोकयुद्ध का स्वरूप ग्रहण कर लिया था. तमाम जाति के लोग इस युद्ध में शामिल हो गया था. शुद्र, दलित, आदिवासी, महिलाओं सहित अधिकांश लोग शामिल थे. इस संविधान को लिखने वक्त तक देश में भगत सिंह, आजाद का खून इस देश की मिट्टी में सन चुका था, जिस कारण लोग जागरूक हो गये थे, प्रगतिशील सोच हर जगह विद्यमान था, जिस कारण संविधान में भी अनेक प्रगतिशील चीजें जोड़ दी गई थी, परन्तु अब जब देश की सत्ता पर झूठ बोल-बोलकर गद्दार आरएसएस और उसकी अनुषांगिक शाखा भाजपा ने देश की सत्ता हथिया लिया है, तब वह मनुस्मृति को एक बार फिर लागू कर रही है. देश की विशाल आबादी शुद्र, दलित, आदिवासियों, महिलाओं को अनपढ़ बनाने की योजना में जुट गई है. यही कारण है कि आज देश के तमाम शिक्षण संस्थानों को बंद करने, छात्रों-बुद्धिजीवियों को खत्म करने, विश्वविद्यालयों के नाम पर जियो जैसी फर्जी विश्वविद्यालयों को स्थापित किया जा रहा है और संविधान को ही खत्म करने का प्रयास शुरू हो गया है.

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ROHIT SHARMA

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