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संसदीय राजनीति में आम आदमी पार्टी ही देश का भविष्य है

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अमृत का विष के साथ अन्योनाश्रय सम्बन्ध होता है. यही कारण है कि प्रचीन कथाओं में वर्णित समुद्र मंथन के बाद अमृत के साथ-साथ विष भी निकला था. कहा जाता है अमृत देवताओं ने हड़प लिया तो वहीं निकले विष को भगवान शंकर ने अपने गले में उतार बौरा गये और गली-गली भटकने लगे. मानवता का गीत गाते फिरने लगे क्योंकि विष का इतना भयानक असर था कि सारी सृष्टि में उथल-पुथल मच गया था. समुद्र मंथन यानी आन्दोलन. अगर हम एक दशक पहले ही चलाये गये अन्ना आन्दोलन को गौर से देखे तो इस दौरान भी निकले अमृत को देवता भाजपाईयों ने हड़प लिया और देश की सत्ता पर काबिज होकर हनीमून मनाने लगा. उसके हनीमून का लोग विरोध नहीं करें इसके लिए लोगों से शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं को छीनने लगा और मीडियाओं को खरीद कर शिक्षा को बदनाम करने और नाम बदलने की मुहिम पर निकल पड़ा.

वहीं इसी अन्ना आन्दोलन से निकले विष को अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी ने अपने गले में उतार लिया और गली-गली, मुहल्ले-मुहल्ले घूमने लगे, नारे लगाने लगे और शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं को आम जनता को मुफ्त देने, अनिवार्य तौर पर देने के सपनों को यथार्थ बनाने निकल पड़े. लोगों इन इसे समझा और जल्दी ही आम आदमी पार्टी भी सरकार में आ गई और तभी से संघ-भाजपाई और आम आदमी पार्टी को एक दूसरे का सहयोगी समझा जाने लगा, लेकिन दोनों में उतना ही अन्तर है जितना अमृत का विष के साथ होता है. एक साथ निकलने के बाद भी एक जहां जीवन को हर लेता है तो वहीं दूसरा जीवन को सदाबहार बनाता है.

चूंकि भाजपाई खुद को देवता समझता है इसीलिए इस अमृत को पीकर अमर हो गया. वह इस लोकतंत्र को खत्मकर अपनी अमरता साबित करना चाहता है. वहीं विष धारण किये आम आदमी पार्टी ने खुद को शिक्षा-स्वास्थ्य को सभी जनों तक मुफ्त उपलब्ध करवाने के अभियान पर निकले एक के बाद किले जीतते जा रहा है. इससे देवताओं (भाजपाईयों) में हड़कम्प मचा हुआ है. उसकी अमरता को खतरा पैदा हो गया है. इसलिए आजकल उसने अपने सारे सांप-बिच्छू, जिसे आधुनिक भाषा में ईडी, सीबीआई ब्लां-ब्लां कहा जाता है, उसके खिलाफ छोड़ दिया है. लेकिन जब इससे भी बात नहीं बन पा रही है तब वह बड़े ही दुःख से ‘स्कूल’ की बात करने लगी है. भाजपा अच्छी तरह जानती है कि स्कूल यानी शिक्षा उसकी अमरता के लिए घातक है. जिस दिन इस देश के सभी लोग शिक्षित हो जायेंगे, संघ-भाजपा उसी दिन मर जायेगी क्योंकि तब उसके पुरखे बुलबुल के पंख पर बैठकर अंडमान से ‘मातृभूमि’ की सैर करने नहीं आ सकेंगे. लेकिन अब अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के कारण भाजपाईयों को भी ‘शिक्षा’ की बात करनी पड़ रही है.

पत्रकार रविश कुमार लिखते हैं – आम आदमी पार्टी के कारण स्कूल राजनीति के केंद्र में कभी-कभी आ जाता है. आम आदमी पार्टी के विधायक दिल्ली नगर निगम के स्कूलों का दौरा करने लगे और वीडियो बनाकर ट्विट करने लगे. क्या इसके दवाब में गृह मंत्री अमित शाह चार और पांच सितंबर को अहमदाबाद और मुंबई में स्कूल के उदघाटन में शामिल होते हैं और पांच सितंबर को प्रधानमंत्री स्कूल से संबंधित तीन ट्विट करते हैं ?

‘आज, Teachers Day पर मुझे एक नई पहल की घोषणा करते हुए खुशी हो रही है – प्रधानमंत्री स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया (पीएम-श्री) योजना के तहत पूरे भारत में 14,500 स्कूलों का विकास और उन्नयन, ये मॉडल स्कूल बन जाएंगे, जो एनईपी की समग्र भावना को समाहित करेंगे. ‘पीएम-श्री स्कूलों में शिक्षा प्रदान करने का एक आधुनिक, परिवर्तनकारी और समग्र तरीका होगा. इसमें खोज उन्मुख, ज्ञान-प्राप्ति केंद्रित शिक्षण पर जोर दिया जाएगा. नवीनतम तकनीक, स्मार्ट कक्षा, खेल और आधुनिक अवसंरचना पर भी विशेष ध्यान दिया जाएगा.’

इस घोषणा को लेकर कुछ सवाल हैं. दुनिया का कौन सा ऐसा स्कूल है जो यह दावा नहीं करता है कि वह ज्ञान, खोज, चिंतन को बढ़ावा नहीं देता है ? हर स्कूल ये सब बातें करते हैं. सरकारें भी अपने खराब स्कूलों के संसार में कुछ स्कूलों को अच्छा बनाने का एलान कर देती हैं, जिससे लगने लगता है कि चलो कुछ सौ स्कूलों में सुधार होगा तो बाकी का भी हो जाएगा और फिर शुरू होता है अलग-अलग नामों वाले स्कूलों के विकास और उन्न्यन का एलान. इनका नाम आम तौर पर पहले आदर्श स्कूल, प्रतिभा स्कूल हुआ करता था, फिर मॉडल स्कूल होने लगा और बाद में स्मार्ट स्कूल होने लगा.

हमारे पास अलग से सर्वे नहीं है. अब एक नया नाम आया है प्रधानमंत्री स्कूल फॉर राइज़िंग इंडिया. प्रधानमंत्री ने कल इसे नई पहल बताया जबकि ऐसे स्कूल की घोषणा पिछले साल के बजट भाषण में हो चुकी थी. फरवरी 2021 के बजट भाषण में निर्मला सीतारमन ने 15000 स्कूलों के बारे में एलान किया था. कहा था कि नई शिक्षा नीति के जितने भी गुण हैं, उन सभी से इन स्कूलों को लैस किया जाएगा. यह फरवरी 2021 की घोषणा है.

फरवरी 21 की घोषणा के बाद एक साल बीत जाता है. उस समय भी आशा का संचार हुआ होगा कि कुछ होने वाला है. कहां तो प्रधानमंत्री को यह बताना चाहिए था कि डेढ़ साल में कितने पीएम श्री स्कूल बने हैं, इसकी जगह वे ट्विट करते हैं कि अभी बनाएं जाएंगे. आखिर एक ही खबर की हेडलाइन कितनी बार छपेगी ? हेडलाइन ही छपती रहेगी या स्कूल भी नज़र आएगा ?

यह सारी खबरें जून 2022 की हैं. केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का बयान छपा है कि देश भर में 15,000 पीएमश्री स्कूल स्थापित किए जाएंगे. 15 महीने बीत गए हैं मगर अभी भी शिक्षा मंत्री ‘किए जाएंगे’ की बोली बोल रहे हैं. किए गए हैं, यह नहीं बता रहे हैं. 5 सितंबर 2022 को भी प्रधानमंत्री ट्टिट करते हैं कि पीएम श्री के तहत 14,500 स्कूल बनाए जाएंगे. एक तो संख्या 15,000 से 14,500 कैसे हो गई ? 500 स्कूल क्यों कम हो गए, इसी का जवाब नहीं है लेकिन जो खबर फरवरी 2021 में और जून 2022 में हेडलाइन बन कर छप जाती है उसी खबर को छह सितंबर 2022 के दिन हेडलाइन के रुप में छापा जाता है, ताकि आशा का संचार होता रहे.

2 जून को शिक्षा मंत्री खुद बता रहे हैं कि भारत में जितने स्कूल हैं उसका एक प्रतिशत स्कूल पीएम श्री स्कूल में बदला जाएगा. एक प्रतिशत के बदलाव को अखबार सौ प्रतिशत के बदलाव के रूप में हेडलाइन बना रहे हैं. राज्यों के शिक्षा मंत्रियों के सम्मेलन में शिक्षा मंत्री कह रहे हैं कि पीएम श्री स्कूल लेकर आ रहे हैं. वो स्कूल कैसा होगा, उसका पता नहीं है. मंत्री जी ही कह रहे हैं कि परामर्श से बनाएंगे तो किस आधार पर इसका एलान 2021 के बजट में हो गया ? और क्या एक साल में यह भी खाका तैयार नहीं हुआ कि पीएम श्री स्कूल कैसा होगा ?

एक चीज़ समझिए. इस साल केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए एक प्रवेश परीक्षा कराने की नीति लागू हुई है. जुलाई और अगस्त परीक्षा होने में ही बीत गया. सितंबर के छह दिन बीत गए हैं. इस परीक्षा का रिज़ल्ट कब आएगा, कोई बात नहीं कर रहा है. किसी तारीख का एलान नहीं हुआ है. छात्रों को अभी तक पता नहीं कि उनका नामांकन किस कालेज में होगा. प्राइवेट कालेजों में पढ़ाई भी शुरू हो चुकी है. दबाव में आकर छात्र प्राइवेट कालेजों में एडमिशन ले रहे हैं जबकि उन्हें पढ़ना था सरकारी कालेज में. इस पर प्रधानमंत्री का बयान नहीं आएगा कि पढ़ाई के तीन महीने जो बर्बाद हुए हैं, उसकी भरपाई पीएम श्री योजना के तहत होगी या बर्बादी श्री का माला पहनकर छात्रो को अकेले घूमना होगा। ?

2021 के केंद्रीय बजट में पीएम श्री के तहत 15,000 स्कूलों के बनाए जाने का एलान होता है, डेढ़ साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी प्रधानमंत्री एलान ही करते हैं. उसमें भी 500 स्कूल कम हो जाते हैं. स्कूल अभी बनेंगे, बने नहीं हैं, सब कुछ हवा में है, उसमें भी 500 स्कूल घट जाते हैं. डेढ़ साल के दौरान कहीं तो यह काम शुरू हुआ होगा, उसी की तस्वीर ट्विट हो जाती तो पता तो चलता कि काम चल रहा है.

अगर आपको लगता है कि विपक्ष के सांसदों की नज़र नहीं थी, तो आप गलत हैं. इस साल राज्य सभा सांसद विवेक तनखा ने पीएम श्री को लेकर सवाल पूछा कि क्या ये स्कूल अलग से बन रहे हैं या केंद्रीय विश्वविद्यालयों के अलावा बन रहे हैं ? अगर ऐसा है तो उनकी संख्या बताएं ? ध्यान रहे कि जून में धर्मेंद्र प्रधान पीएम श्री का नाम लेते हैं और कांग्रेस सांसद विवेक तनखा भी पीएम श्री स्कूल का नाम लेते हैं. प्रधानमंत्री इस तरह से नई पहल लिखते हैं जैसे यह फैसला 5 सितंबर के दिन हुआ हो ?

ये सारे स्कूल इस दावे के साथ बनाए जा रहे हैं कि नई शिक्षा नीति के तहत इन्हें सक्षम किया जा रहा है. क्या नई शिक्षा नीति कुछ स्कूलों के लिए है ? वो भी एक प्रतिशत स्कूलों के लिए ? हर दौर में सरकारी स्कूलों को खत्म होने के लिए छोड़ दिया जाता है. उसके बाद सपना दिखाने के लिए कुछ स्कूलों का चुनाव होता है, जिन्हें कभी मॉडल तो कभी आदर्श, तो कभी प्रतिभा तो कभी आत्मानंद स्कूल होता है. आखिर सरकार की नीति सभी स्कूलों के लिए होती है, फिर कैसे सरकारी स्कूलों के भीतर नई-नई कैटगरी के मॉडल स्कूल बनाए जाते हैं ? आदर्श और मॉडल पुराना होने लगा है, इसलिए इन दिनों स्मार्ट स्कूल का चलन चालू हो गया है. मध्य प्रदेश में ही भांति-भांति के मॉडल स्कूल हैं. उनकी एक सूची देख लेंगे तो आपका जीवन धन्य हो जाएगा. एकलव्य नाम की संस्था से हमें यह सूची मिली है.

यह सिर्फ मध्यप्रदेश का है. स्कूलों के इन वर्गीकरण से हमें क्या मिलता है ? पहले ही क्या कम हैं जो अब पीएम श्री और सीएम श्री आ रहा है. पबाकी राज्यों से भी इस तरह की सूची बनाई जा सकती है और फिर पूछा जा सकता है कि इस सूची में आप सीएम श्री या पीएम श्री स्कूल जोड़कर ऐसा क्या क्रांतिकारी हासिल करने वाले हैं ? क्या इसके पहले यह नहीं बताना चाहिए कि इन अलग-अलग वर्गीकरण वाले मॉडल स्कूलों से क्या लाभ हुआ ?

प्रथम नाम की संस्था की ही कई साल से सालाना रिपोर्ट आ रही है कि सातवीं पास छात्र गणित के बुनियादी प्रश्न हल नहीं कर पाते हैं. मध्य प्रदेश में जो सीएम राइज़ बन रहा है, वह पीएम श्री से अलग होगा या उसी योजना का विस्तार है ? अगर यही श्रेष्ठ स्कूल हैं तो सभी स्कूलों को एक साथ सीएम राइज़ या पीएम राइज़ क्यों नहीं बनाया जाता है ?

घर से स्कूल ले जाने और घर छोड़ने बस आएगी, यह भी कोई क्रांतिकारी बात है ? यह काम तो दुनिया के स्कूलों में जाने कब से हो रहा है. हर स्कूल में बस होती है. अगर नहीं है तो होनी चाहिए. लाइब्रेरी, प्रयोगशाला, इमारत, खेल के मैदान होने को इस तरह से बताया जा रहा है, जैसे अभी पिछले रविवार को भारत ने स्कूलों के लिए इन खूबियों का आविष्कार किया है.

यह खबर दैनिक भास्कर की है. बड़े आकार में लिखा है कि मध्यप्रदेश में 30,000 शिक्षकों की कमी है. देखिए एक बात समझ लीजिए, स्मार्ट स्कूल नए एंबुलेंस हैं. जिस तरह नेता एंबुलेंस का उदघाटन कर यह उम्मीद बांट देते हैं कि कुछ हो रहा है और जनता समझ लेती है कि अस्तपाल बन गया, उसी तरह से स्मार्ट स्कूलों के साथ हो रहा है. बिना शिक्षकों के न तो स्कूल हो सकता है और न बिना डाक्टरों के कोई अस्पताल. अस्पताल में डाक्टर नहीं होंगे तो एंबुलेंस किसी काम की नहीं है. जब शिक्षक ही नहीं है तो शिवराज सिंह चौहान बताएं कि इन बच्चों को कौन नए भारत के निर्माण के लिए गढ़ रहा है ?

एक बात की उद्घोषणा खड़े होकर करता हूं. शिक्षक नौकर नहीं निर्माता है. आपका काम वो नौकरी का काम नहीं है, आप भूल जाओ कि कोई नौकरी करने वाले शासकीय सेवा है. आप बच्चों का भविष्य गढ़ने वाले गुरु हैं. मैं अच्छी तरह जानता हूं. आप जैसा भविष्य गढ़ेंगे उसी तरह से बच्चे नया भारत गढ़ देंगे, मध्य प्रदेश बनाकर दे देंगे.

क्या हमारे शिक्षक इन बातों से कभी नहीं ऊबेंगे कि वे राष्ट्र निर्माता हैं तो पता नहीं क्या-क्या हैं ? फिर शिक्षा की हालत इतनी खराब कैसे हैं ? इसके लिए केवल शिक्षक ही तो ज़िम्मेदार नहीं ? क्या शिक्षकों को यह हकीकत नहीं मालूम कि उन पर चुनाव से लेकर तमाम सरकारी योजनाओं के सर्वे का काम लाद दिया जाता है. उनका समय पढ़ाने पर कितना और इन कामों पर कितना खर्च होता है ? अगर देश के भविष्य के लिए उनका होना इतना ही ज़रूरी है तो देश के हज़ारों सरकारी स्कूलों में शिक्षक क्यों नहीं है ? शिक्षकों को अब ऐसी बातों से दूर रहना चाहिए.

अनुराग द्वारी ने रिपोर्ट की थी कि मध्य प्रदेश में 21,000 से अधिक स्कूल ऐसे हैं जो केवल एक शिक्षक के बूते चल रहे हैं. बताइये टीचर नहीं हैं, लेकिन स्कूलों को लेकर भाषण ऐसे दिए जा रहे हैं जैसे स्कूल आज ही धरती पर उतरे हैं. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने भाषण में जिस भाषा का प्रयोग किया है वह है तो हिन्दी लेकिन अगर आप समझ सकें तो अच्छा रहेगा. भाषण इसी चार सितंबर का है, अर्थात नवीनता से ओत प्रोत है. बासी नहीं हुआ है.

‘मैं यह उद्घोषणा करता हूं भौतिकता की अग्नि में दग्ध विश्व मानवता को शाश्वत शांति के पथ का दिग्दर्शन अगर कोई कराएगा तो अपना भारत कराएगा, अपना देश कराएगा. उसके लिए मध्यप्रदेश तैयार करना है और उसके लिए बच्चे तैयार करने हैं. आपसे यही निवेदन है इस काम में परिश्रम की पराकाष्ठा करते हुए अपने आप को झोंक कर लगाएं. मैं फिर आपको शुभकामनाएं देता हूं और एक विश्वास आपको दिलाता हूं, आपके मान-सम्मान पर कभी आंच ना आए, इसके लिए सरकार कटिबद्ध रहेगी. बहुत-बहुत शुभकामनाएं !’

इस भाषण को मध्य प्रदेश के शिक्षक समझने की क्षमता रखते हैं, इतने से ही मुझे गर्व हो रहा है. भौतिकता की अग्नि में दग्ध विश्व मानवता को शाश्वत शांति के पथ का दिग्दर्शन अगर कोई कराएगा तो अपना भारत कराएगा, अपना देश कराएगा. परिश्रम की पराकाष्ठा करते हुए अपने आप को झोंक कर लगाएं. मुख्यमंत्री के इस भाषण के बाद न जाने कितने शिक्षक प्रेरित हो गए होंगे. भौतिकता की अग्नि में दग्ध विश्व मानवता को शाश्वत शांति के पथ का दिग्दर्शन कराने निकल पड़े होंगे लेकिन इस कार्यक्रम में आए शिक्षकों की नज़र उस अग्नि पर थी जो सैलरी नहीं बढ़ने के कारण भड़कती जा रही थी. जिन्हें जल कर खाक हो जाना है ताकि विश्व मानवता को शाश्वत शांति मिले. ऐसे ईश्वर रूपी मानव प्रजाति जिसे शिक्षक कहते हैं, मैं चाहता हूं कि आप भी उनका दर्शन करें. प्राइम टाइम के दर्शकों से अपील है कि हाथ जोड़ लें और पुष्प वर्षा करें. एक-एक बात को ध्यान से सुनिए. जगत का कल्याण होगा.

प्रशिक्षण के नाम पर भोपाल बुलाया गया हमारे नवनियुक्त भाइयों को काफी अपेक्षा थी. उनकी वेटर वेतन में जो कटौती की गई थी उनकी वेतन को बढ़ाना था. उनकी परिवीक्षा जो 3 वर्ष की की गई थी उसे 2 वर्ष में – था इसी आशा और अपेक्षाओं के साथ हमारी माता-बहनें अपने बच्चों को लेकर भोपाल में आई थी और प्रसिद्ध प्रशिक्षण के नाम पर सरकार भोपाल बुलाकर उनके साथ में क्रूर मजाक करने का काम किया है. यह एक तरह से देखा जाए तो शिक्षकों के साथ बहुत बड़ा मजाक है. आपको शिक्षकों का सम्मान करना ही था तो आप व्यवस्थित तरीके से अपने हाउस में बुलाते, सम्मेलन के नाम पर बुलाते. आपने प्रशिक्षण के नाम पर यहां बुलाया और करोड़ों रुपए की बर्बादी की. इसमें प्रदेश के लाखों लाख शिक्षक में आक्रोश व्याप्त गया.

आज इसी पंडाल में एक वेटिंग में एक बहन का मेरे पास फोन आया. वह 11 मार्च से नियुक्त हुई है उसके बाद से उन्हें वेतन नहीं मिला है. आप कौन से सम्मान की बात कर रहे हैं ? आप कौन से गुरुओं को सम्मान देने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं ? केवल और केवल इस सरकार ने शिक्षा जगत का और शिक्षा का जितना सत्यानाश किया, उतना और किसी ने नहीं किया.

यदि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री को यदि शिक्षकों का सम्मान करना था, इन्हें प्रशिक्षण देना था तो ऑनलाइन प्रशिक्षण भी दे सकते हैं. आज पूरी दुनिया में डिजिटल डिजिटाइजेशन हुआ है. डिजिटल दुनिया है तो बहुत सारे प्रशिक्षण ऑनलाइन होते हैं. ऑनलाइन प्रशिक्षण दे सकते थे. किसी भी प्रकार की एक भी प्रशिक्षण की बात नहीं कही गई. माननीय मुख्यमंत्री जी ने मीठी मीठी बातें कहीं और अच्छी अच्छी कहानियां सुनाएं. नर्मदा जी अमरकंटक के बजाय विंध्याचल से ₹500 में निकलती थी. वेतन बढ़ाने का तो काम किया लेकिन जो छोटी-छोटी समस्याएं थी उसकेे समाधान के लिए सरकार ने एक भी कदम नहीं उठाया.

इसे सुनकर सुकून पहुंचा कि ये शिक्षक खुद को भगवान की तरह नहीं देखते. सामान्य इंसान की तरह उन्हें भी सैलरी और महंगाई वगैरह का दर्द होता है. इन शिक्षकों ने सही प्रश्न किया कि प्रशिक्षण के नाम पर मध्य प्रदेश के 52 ज़िलों से शिक्षक बुलाए गए, हर ज़िले से तीन सौ शिक्षक बुलाए गए, इतनी लंबी यात्रा करके आए. एक दिन में किस तरह का प्रशिक्षण हुआ होगा, आप समझ सकते हैं.

प्रधानमंत्री ने पीएम श्री के तहत 14,500 स्कूलों के विकास और उन्नयन की बात की है. जवाहर नवोदय विद्यालय भी इसी तरह के उद्देश्यों के साथ बनाया गया था, उसकी क्या हालत की जा रही है, इस पर भी विचार कर लेना चाहिए. पिछले पांच साल में केवल 55 जवाहर नवोदय विद्यालय खुले हैं. सांसद पी. बी. रेड्डी के पूछे सवाल के जवाब में शिक्षा राज्य मंत्री ने 4 अप्रैल 2022 को लोकसभा में बताया था कि देश भर में 650 जवाहर नवोदय विद्यालय हैं. पिछले पांच साल में 55 नवोदय स्कूल खुल हैं. पिछले पांच साल में 19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एक भी नया जवाहर नवोदय विद्यालय नहीं खुला है.

जवाहर नवोदय विद्यालय की स्थापना के पीछे जो मकसद थे, क्या पीएम श्री स्कूलों को उनके बिल्कुल अलग मकसद के आधार पर बनाया जाएगा ? मार्च 2022 में संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट है कि 116 नवोदय विद्यालयों में प्रिंसिपल ही नहीं हैं. 23 प्रतिशत स्कूलों में वाइस प्रिंसिपल ही नहीं हैं. 1900 के करीब पीजीटी और टीजीटी टीचर नहीं हैं. जो स्कूल हैं उन्हें बेहतर नहीं किया जा रहा लेकिन नई-नई कल्पना पेश की जा रही है, वो भी डेढ़ साल तक कल्पनाएं ही पेश की जा रही हैं. हमने प्राइम टाइम के पिछले एपिसोड में बताया था कि किस तरह गृह मंत्री अमित शाह नई शिक्षा नीति को लेकर सक्रिय हो गए हैं. अच्छी बात है, हर किसी को होना चाहिए.

मुंबई के पवई के एक स्कूल में गृहमंत्री को देखना सुखद आश्चर्य इसलिए लगा कि वे हमेशा सख्त राजनीति के केंद्र में देखे जाते हैं. इस स्कूल के उदघाटन के मौके पर अमित शाह ने कहा कि स्कूलों में पंचतंत्र की पढ़ाई होनी चाहिए ताकि वे जीवन की दुविधा से निकल सकें. निःसंदेह भारतीय कथा संसार पर ज़ोर होना ही चाहिए मगर क्या यह कोई नई बात है ? पुरानी बात कहने से कोई रोक नहीं है लेकिन इससे यह न लगे कि हमारे स्कूलों में पंचतंत्र की कथा पढ़ाई नहीं जाती है. मेरा बस इतना सा आग्रह है. अमित शाह इन कहानियों के ज़रिए छोटी उम्र के बच्चों पर दुविधाओं से निकलने और निर्णय की क्षमता हासिल करने की ज़िम्मेदारी डाल देते हैं. इसे सुनकर किंचित ध्यान आया कि ये स्कूल हैं, अपनी-अपनी राजनीति के हिसाब से नेता पैदा करने की फैक्ट्री नहीं हैं.

समाज की हर कमी का समाधान स्कूल के सिलेबस में जोड़ कर नहीं निकाला जा सकता है. लोकतंत्र में निर्णय के लिए स्वतंत्र संस्थाओं का होना ज़रूरी है. पारदर्शी प्रक्रिया का होना ज़रूरी है. अभी तो उनके ध्वस्त होने के ही आरोप लग रहे हैं और कई साक्ष्य हमारे सामने हैं. इन संस्थाओं के नहीं होने से आप पंचतंत्र की कहानी पढ़कर निर्णय की क्षमता हासिल नहीं कर सकते हैं. वैसे भी यह बच्चों के खेलने कूदने की उम्र है.

अमित शाह कहते हैं कि पंचतत्र की कहानी के रुप में स्वभाव को मोडिफाई करने, हीरे को शेप देने का काम कहानियों की तरह किया गया है. यही नहीं चार सितंबर को अहमदाबाद में अमित शाह ने चार-चार स्मार्ट स्कूलों के उद्घाटन किए हैं. जैसे शहर स्मार्ट हो गए उसी तरह स्कूल स्मार्ट होने लगे हैं. 2019 में अहमदाबाद निगम स्कूल बोर्ड ने 83 अनुपम स्मार्ट स्कूल बनाने का खाका तैयार किया था. पिछले साल दिव्य भास्कर में खबर छपी थी कि ‘आप के रास्ते पर बीजेपी.’ अहमदाबाद नगर निगम हर वार्ड में एक स्मार्ट स्कूल बनाएगा. तब खबर छपी थी कि 51 स्मार्ट स्कूल बनेंगे, अब डेक्कन हेरल्ड ने लिखा है कि 83 स्मार्ट स्कूल बनेंगे. मगर उदघाटन चार का हो रहा है. इन स्मार्ट स्कूलों में ऐसा क्या लगा है जो एक साथ सभी तैयार नहीं हो सकते हैं.

इस मौके पर अमित शाह ने कहा कि गुजरात में जब कांग्रेस की सरकार थी तब स्कूल की पढ़ाई छोड़ने वाले छात्रों की दर 37 प्रतिशत थी, लेकिन नरेंद्र मोदी उसे शून्य पर ले आए. मीडिया में छपे बयानों से यह स्पष्ट नहीं है कि उन्होंने सभी प्रकार के स्कूलों के लिए कहा है या केवल प्राइमरी स्कूल के लिए कहा है कि वहां ड्राप आउट रेट ज़ीरो हो गया है. लेकिन सच्चाई क्या है ? क्या वाकई गुजरात के सरकारी स्कूलों में छात्र पढ़ाई नहीं छोड़ते हैं ?

10 फरवरी 2020 में इंडियन एक्सप्रेस मेें ऋतु शर्मा की रिपोर्ट है कि 2018 में शिक्षा विभाग ने राज्य में 121 तालुका की पहचान की थी, जहां पर 8 वीं से लेकर 9 वीं क्लास में ड्राप आउट रेट 20 प्रतिशत से अधिक है. तब तय हुआ था कि सभी स्कूलों में 18 साल की उम्र तक के बच्चों में ड्राप आउट रेट का अध्ययन किया जाएगा. इसमें बकायदा गुजरात के समग्र शिक्षा अभियान के राज्य योजना निदेशक पी. भारती का बयान छपा है कि सेंकेंड्री स्कूलों में ड्राप आउट रेट बहुत ज़्यादा है.

ये खबर बताती है कि आठवीं के बाद से ड्राप आउट रेट 20 प्रतिशत से ज्यादा है. तब यह ज़ीरो प्रतिशत कैसे हो सकता है ? पिछले साल 17 सितंबर को स्क्रोल में एक रिपोर्ट छपी थी. प्रधानमंत्री ने 11 सितंबर 2021 को बयान दिया था कि गुजरात में स्कूल ड्राप आउट रेट घट कर 1 प्रतिशत से कम हो गया है. कार्ति चिदंबरम और अन्य सांसदों के सवाल के जवाब में इस साल 8 अगस्त 2022 को केंद्र सरकार का दिया आंकड़ा भी देख सकते हैं. इसके अनुसार 2019-20 में प्राइमरी में ड्राप आउट रेट 1 प्रतिशत है, अपर प्राइमरी में 5.2 प्रतिशत है और सेकेंड्री में 23.7 प्रतिशत है. लेकिन आंध्र प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र, केरल, पंजाब, सिक्किम, तेलंगाना में भी प्राइमरी में ड्राप आउट रेट ज़ीरो प्रतिशत है. यानी केवल गुजरात ही नहीं देश के 7 राज्यों में प्राइमरी में ड्राप आउट रेट ज़ीरो है.

अपर प्राइमरी स्कूलों में ड्राप आउट रेट आंध्र प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु में तो गुजरात से भी काफी कम हैं. सेकेंड्री स्कूलों में ड्राप आउट रेट देख लीजिए. बिहार में 21.4 प्रतिशत है, यूपी में 14.4 प्रतिशत और गुजरात में 23.7 प्रतिशत है. सेकेंड्री स्कूलों में गुजरात का रेट काफी खराब है. गुजरात से भी खराब केवल असम, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश का है. अलग-अलग वर्गीकरण के इन स्कूलों का सार्वभौमिक शिक्षा पर क्या असर पड़ता है, इसी प्रोसेस पर हमारा प्राइम टाइम है और शुभांगी ने अनिल सदगोपाल से इस बारे में बात की है.

भारत एक लोअर मिडिल क्लास देश है. प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति का ये कहना है – निम्न मध्यमवर्गीय देश, जहां कोई 25,000 कमाता है तो चोटी के दस प्रतिशत में आ जाता है. इतने गरीब देश में सरकारी स्कूलों का अच्छा होना बहुत ज़रूरी है लेकिन मॉडल के नाम पर नौटंकी नहीं होनी चाहिए. जैसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट खत्म कर आप केवल फ्लाइओवर बनाकर ट्रैफिक जाम की समस्या से मुक्ति नहीं पा सकते हैं. साधारण घरों के बच्चों को नौकरी नहीं मिल रही है. नौकरी की चाह में वे तरह-तरह की ठगी के शिकार होते जा रहे हैं.

जितने भी दावे कर लिए जाएं या ध्यान भटकाने के नए-नए टापिक आ जाएं, लेकिन बेरोज़गारी का आंकड़ा आ ही जाता है. राजपथ का नाम कर्तव्य पथ हो रहा है. क्या इसे आप दूसरे नज़रिए से देखना चाहेंगे ? सोचना चाहेंगे कि इससे क्या हो जाएगा ? सत्य पथ, कर्तव्य पथ, नीति, न्याय पथ. दिल्ली में पथों की कमी नहीं हैं, लेकिन इसी दिल्ली में नीति और न्याय से लेकर सत्य तक का बुरा हाल है. हर पथ ही कर्तव्य पथ है, जिससे होकर आप काम पर जाते हैं. कुछ करना ही था तो सरकार एक आराम पथ बना देती जिस पर लोग आराम करने जाते. अगर आप इससे सहमत हैं तो एक झूठ पथ भी होना चाहिए, जिसके दोनों किनारे सरकार के बड़े-बड़े झूठ की पट्टी लगाई जाए ताकि लोगों को याद रहे कि सरकार झूठ भी बोलती है. भोजपुरी में इसका नाम लबरा रोड टॉप क्लास होगा. ब्रेक ले लीजिए.

रविश कुमार की पंक्तियां यहां समाप्त हो जाती है ताकि आप ब्रेक ले सके और केन्द्र की मोदी के टॉप क्लास लबरा रोड का सैर कर पाईये. सत्ता की अमृत का अमरता हासिल कर खुद को ईश्वर से भी महान बन जाने वाले इन लबराओं के बरअक्स आप आम आदमी पार्टी की शिक्षा के प्रति समर्पण को देख लीजिए. मोदी की शिक्षा को लेकर दिया गया यह लबरा टाईप बयानबाजी केवल आम आदमी पार्टी के दवाब का नतीजा है, वरना वह तो अपनी अमरता सुनिश्चित करने के लिए समूचे देश को अनपढ़ों, मूर्खों और धार्मिक पाखंडियों का देश बना देना चाहता है, जहां से होमी जहांगीर भाभा भले ही न निकले आशा राम, राम रहीम, चिंम्यानन्द, सेंगर जैसे बलात्कारियों की लम्बी कतार निकलेगी और गुजरात में जेल से निकाले गये बलात्कारियों को माला पहनाकर और मिठाई खिलाकर स्वागत-सम्मान ही किया जायेगा.

यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि आम आदमी पार्टी जिस तरह शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को अपने कांधों पर उठाकर आगे बढ़ रही है, ऐसे में केवल आम आदमी पार्टी ही भारत का भविष्य बनेगी. अन्य किसी भी राजनीति दल यहां तक कि तथाकथित संसदीय वामपंथी दलों का भी इस देश में कोई भविष्य नहीं है और न ही उसके पास इस देश के लिए कोई भविष्य की योजना है, सिवाय लूट-लूट और लूट के.

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