Home लघुकथा राजा का मूड

राजा का मूड

0 second read
0
0
262

राजा का मूड उखड़ा हुआ था. उसने मंत्री को तलब किया.

मंत्री: क्या हुआ महाराज ?
राजा: कुछ मजा नहीं आ रहा !

मंत्री: भाषण देंगे महाराज ?
राजा: उहूं !

मंत्री: कोई नया परिधान बनवाया जाए महाराज ?
राजा: उहूं !

मंत्री: आखेट पर चलेंगे महाराज ?
राजा: उहूं !

मंत्री: जासूसी हेतु कोई नया सॉफ्टवेयर खरीदा जाए महाराज ?
राजा: उहूं !

मंत्री: विदेश से कोई फल या जानवर मंगवाया जाए महाराज ?
राजा: उहूं !

मंत्री: विरोधियों द्वारा दीं गईं गालियों का हिसाब लगाएंगे महाराज ?
राजा: उहूं !

मंत्री: फिर कोई नया सिक्का चलवाया जाए महाराज ?
राजा (मुंह बिचकाते हुए): नहीं ! इस बार कुछ नया होना चाहिए ! तूफानी टाइप !!!

मंत्री (सोचते हुए): प्रेस कांफ्रेंस महाराज…?
राजा (घूरते हुए): ऐसा करो !

मंत्री (तनते हुए): आदेश करें महाराज !
राजा: कुछ दिनों पहले जो सिक्का चलवाया था न…

मंत्री: जी महाराज !
राजा: उसे बंद करवा दो !

मंत्री (चौंकते हुए): वाकई ये नया है महाराज !
राजा (खुश होते हुए): अब कुछ मजा आया !

मंत्री: फिर चलूं महाराज सरकारी कलमधारी तंत्र के पास…
राजा: क्यों ?

मंत्री: इस योजना का औचित्य, लाभ, ऐतिहासिकता वगैरहा लिखवाने के लिए…
राजा (मुस्कुराते हुए): तुम्हें लगता है इसकी आवश्यकता है !

मंत्री: कदापि नहीं महाराज ! अब तो आप का सिक्का हर जगह चल रहा है ! परंतु महाराज यदि आप की आज्ञा हो तो एक प्रश्न पूछूं ?
राजा: पूछो !

मंत्री: ऐसे युगांतकारी विचार आपके दिमाग में आते कैसे हैं ? (क्रांतिकारी की जगह मंत्री ने जानबूझकर युगांतकारी कहा)
राजा: इसका कनेक्शन दिमाग से नहीं तशरीफ से है !

मंत्री (हंसी रोकते हुए): महाराज !
राजा (गर्व से): जैसे ही तशरीफ गद्दी पर रखता हूं, स्वत: विचारों का ओवर फ्लो होने लगता है !

मंत्री: महाराज की जय हो !

राजा: प्रजा को खाली नहीं रखना चाहिए ! उसको कोई न कोई नया टास्क देते रहना चाहिए ! ताकि कुछ और सोचने-समझने में वह अपना समय बर्बाद न करे.

मंत्री (मुस्कुराते हुए): सही कह रहे महाराज ! समय की बर्बादी से ही राज्य में समस्याएं अपना सिर उठाने लगती हैं.

अगले दिन लोगों को राजा के नये आदेश का पता चल गया. जैसाकि राजा और मंत्री को विश्वास था, वही हुआ.

राजा के नये आदेश से लोगों को तकलीफ नहीं हुई, क्योंकि उनको आंखें मूंदकर सब करने की आदत पड़ चुकी थी.

अलबत्ता, वे खुश थे कि राष्ट्र निर्माण में उनको योगदान देने का एक सुअवसर (अवसर नहीं) और मिला !

  • अनूप मणि त्रिपाठी

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In लघुकथा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

गंभीर विमर्श : विभागीय निर्णयों की आलोचना के कारण पाठक ने कुलपति का वेतन रोक दिया

बिहार के एक विश्वविद्यालय के कुलपति का वेतन शिक्षा विभाग ने इसलिए रोक दिया कि वे विभाग और …