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आईएएस : भारतीय नौकरशाही के सामंती ढांचे

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आईएएस : भारतीय नौकरशाही के सामंती ढांचे

अपवाद किसी देश, समाज या ढांचे का चरित्र निर्धारित नहीं करते हैं. चरित्र मेजारिटी तय करती है. अपवाद संख्या में सुलझे व संवेदनशीक आईएएस अधिकारियों के होने के बावजूद, भारत के नौकरशाही ढांचा सामंती है, लोगों के प्रति गैर-जिम्मेदार व गैर-जवाबदेह है, तथा अति-विशिष्ट/अति-योग्य/अति-मेधावी इत्यादि जैसे मिथकों के द्वारा प्रतिष्ठित है, इस तथ्य से बिलकुल भी नकारा नहीं जा सकता है.

भारतीय नौकरशाही के ढांचे, अधिकारों व सुविधाओं में आमूलचूल परिवर्तन करने की सबसे अधिक प्राथमिकता के साथ जरूरत है. नौकरशाही को ऐसा कोई भी अधिकार नहीं होना चाहिए जो उन्हें आम-आदमी पर सत्ता देता हो या आम-आदमी से श्रेष्ठ साबित करता हो.

मेरी नजर में भारत को पहली बार सबसे योग्य गवर्नर साहब मिले हैं. गवर्नर साहब पहले आईएएस थे. भारत का आईएएस, दुनिया का सबसे अद्वितीय जीव होता है. मानव सिर्फ एक मामले में होता है कि भारत के आईएएस का भी मनुष्य की तरह देहावसान होता है. यदि देहावसान को अलग रखा जाए तो भारत का आईएएस मनुष्य होता ही नहीं है. वह ईश्वर से भी ऊपर होता है. गवर्नर साहब के आईएएस होने से भारत को होने वाले लाभ –

भारत के आईएएस को भारत के चप्पे-चप्पे के बारे में बिलकुल आथेंटिक जानकारी होती है क्योंकि हर जिले में कई-कई आईएएस होते हैं. एक आईएएस को तो वैसे ही भारत के चप्पे-चप्पे की आथेंटिक जानकारी प्राप्त होती है, यह योग्यता आईएएस में चयन होते ही अपने आप आ जाती है. फिर भी यदि किसी चप्पे में दो-चार सेकंड पहले यदि कोई परिवर्तन हुआ हो तो उस चप्पे की आथेंटिक जानकारी के लिए वहां नियुक्त आईएएस से बात करके उस क्षण की बिलकुल आथेंटिक जानकारी प्राप्त कर लेते हैं.




इसलिए गवर्नर साहब को जब भी भारत के किसी चप्पे के बारे में जानने की इच्छा हुई तो आंख बंद करके अपनी दिव्यदृष्टि से देखकर जान लेंगे. फिर भी मान लीजिए कोई कमी रह गई तो उस चप्पे के आईएएस से बतिया-बुतिया कर कमी पूरी कर लेंगे.

भारत का आईएएस, ब्रह्मांड का सबसे ईमानदार, चरित्रवान व प्रैक्टिकल जीव होता है इसीलिए सबको ईमानदारी व चरित्र का प्रमाणपत्र बांटते रहते हैं, प्रैक्टिकलिटी का मानदंड निर्धारित करते हैं. आईएएस रह चुके हैं इसलिए गवर्नर साहब को भारत के चप्पे-चप्पे की आथेंटिक जानकारी है ही. ईमानदार हो ही गए, चरित्रवान हो ही गए, प्रैक्टिकल हो ही गए. गवर्नरगिरी के लिए और अधिक क्या चाहिए ? अब कोई भी घोटाला करके विदेश भागना तो दूर, घोटाला तक न कर पाएगा.

भारत का आईएएस, दुनिया के हर उन देशों के बारे में भी पक्की व आथेंटिक जानकारी रखता है, जहां-जहां भारत के आईएएस / आईएफएस राजनयिक के रूप में पोस्टिंग पाते हैं. जिस भी देश के किसी चप्पे की जानकारी लेनी हुई, उस देश में भारत के राजनयिक से बतिया लिए, मिल गई आथेंटिक जानकारी.




मान लीजिए, गवर्नर साहब कभी दो-चार पलों की झपकी लग गई और कोई बहादुर घोटाला करके विदेश घूमने-फिरने चला गया, तो गवर्नर साहब तुरंत उस चप्पे की आथेंटिक जानकारी भारत के विदेश में पदस्थ आईएएस /आईएफएस से लेंगे, तुरंत उस घोटालेबाज को भारत लेकर आएंगे.

जब आपने तब सवाल नहीं किया, जब गवर्नर साहब कई वर्षों तक भारत के आर्थिक मामलों के सचिव थे, तब अब सवाल खड़ा करने का औचित्य क्या है ? देश के लोगों के लिए आर्थिक मामलों का सचिव गवर्नर की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण होता है. विरोध के लिए विरोध नहीं करना चाहिए. गवर्नर साहब आईएएस थे, इससे बड़ी योग्यता, मेधाविता, ईमानदारी, समझ, दृष्टि, चरित्र और क्या हो सकता है भला ? अभी तक तो धरती में मानव इतिहास में इससे अधिक विशिष्ट जीव हुआ ही नहीं है.

मेरी नजर में भारत को पहली बार सबसे योग्य, सबसे विशिष्ट व अद्वितीय गवर्नर साहब मिले हैं. यह तो हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि हमारे देश में आईएएस विश्व के सबसे योग्य तकनीकी व विज्ञान विशेषज्ञ भी होते हैं, इस बात की आथेंटिसिटी के लिए भारत के चुनाव आयोग से बेहतर कसौटी हो ही नहीं सकती.

विशेष क्षमायाचना – जो आईएएस अपवाद चरित्र व मानसिकता के हैं, मैं उनसे करबद्ध क्षमायाचना करता हूं. एक निवेदन कि यह पोस्ट आप लोगों के ऊपर बिलकुल भी नहीं है. सादर प्रणाम.




जैसे हर विधायक/सांसद भ्रष्ट व असंवेदनशील नहीं होता, कुछ अपवाद भी होते हैं. जैसे हर पत्रकार/संपादक प्रेस्टिट्यूट नहीं होता, कुछ अपवाद भी होते हैं. जैसे हर डाक्टर पैसों के लिए अपने प्रोफेशनल इथिक्स को धता नहीं बताता, कुछ अपवाद भी होते हैं. जैसे भारत का हर पुरुष पुरुषवादी मानसिकता से ग्रस्त नहीं है, कुछ अपवाद भी होते हैं, इत्यादि-इत्यादि. उसी तरह हर आईएएस भ्रष्ट व असंवेदनशील नहीं होता, कुछ अपवाद भी होते हैं.




कुछ आईएएस ऐसे भी होते हैं जो अपनी शादी में तीस लाख, बत्तीस लाख, पैंतीस लाख, करोड़, दो करोड़, पांच करोड़, दस करोड़, बीस करोड़ या अधिक व अचल संपत्तियों इत्यादि का दहेज नहीं लेते हैं. कुछ आईएएस ऐसे भी होते हैं जो कमाऊ जिलों के जिलाधिकारी या मलाईदार पदों पर रहने या जाने के लिए करोड़ों रुपए का चढ़ावा नहीं चढ़ाते हैं. कुछ आईएएस ऐसे भी होते हैं जो अपने आपको क्रांतिकारी दिखाने के लिए आम लोगों के घरों को तोड़कर अत्याचार नहीं करते हैं. कुछ आईएएस ऐसे भी होते हैं जो समाज के भले के लिए अच्छा काम करते हैं और बदले में वास्तव में किसी अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार इत्यादि के भोग की मंशा रखते हुए अच्छे होने का ढोंग नहीं करते हैं. कुछ आईएएस ऐसे भी होते हैं जो वास्तव में ईमानदार होते हैं, भ्रष्टाचार के नेक्सस के बाहर के लोगों के सामने ईमानदार होने का ढोंग नहीं करते हैं. कुछ आईएएस ऐसे भी होते हैं जो अंदर से संवेदनशील होते हैं, संवेदनशीलता की नौटंकी नहीं करते हैं. कुछ आईएएस ऐसे भी होते हैं जो अपने काम को नौकरी के रूप में लेते हैं, आईएएस होने को महानता, विशिष्टता, विद्वता व श्रेष्ठता इत्यादि के रूप में लेते हुए अहंकार की तासीर में नहीं जीते हैं. कुछ आईएएस ऐसे भी होते हैं जो मूल्यों का ढोंग नहीं करते हैं, सरलता, सहजता, भाव-संप्रेषण इत्यादि का ढोंग नहीं करते हैं.




भारत के कई राज्यों में सामाजिक मुद्दों पर कार्य व प्रयोगों को करने के कारण, विभिन्न स्तर पर बहुत से आईएएस अधिकारियों के साथ संवाद, व्यवहार व लंबी चर्चाएं करने का अवसर प्राप्त होता आया है. भारत का तंत्र व नेक्सस कैसे काम करता है इसकी जानकारियां हैं.

यह मेरा अपना अनुभव है कि भारत के हर ढांचे में अच्छे लोग भी हैं भले ही उनका प्रतिशत अपवाद-प्रतिशत ही होता है. मुझे अपने जीवन में अच्छी सोच के आईएएस अधिकारियों से भी मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है.

मैंने अपनी किताब मानसिक, सामाजिक, आर्थिक स्वराज्य की ओर में अपने संपर्क में आए सुलझी हुई मानसिकता व सामाजिक सोच के आईएएस अधिकारियों के बारे में जमकर लिखा भी है.

आने वाली किताब जो बस्तर के ऊपर है, उसका बहुत बड़ा हिस्सा केवल उन कार्यों पर ही आधारित है जिन्हें आईएएस व आईपीएस अधिकारियों ने बस्तर को रचनात्मक-समाधान की ओर चलने/बढ़ाने के लिए किया है.




केवल आईएएस बनने वाले ही योग्य नहीं होते हैं. वे सभी लोग योग्य होते हैं जो आईएएस की ही तरह स्नातक, परा-स्नातक, पीएचडी इत्यादि किए होते हैं. नौकरी पाना योग्यता का मानदंड नहीं होता.

एक इंजीनियर जो बीटेक के बाद आईएएस बना वह अधिक योग्य है या वह इंजीनियर जो बीटेक के बाद एमआईटी अमेरिका, हावर्ड अमेरिका, ऑक्सफोर्ड, कैंब्रिज व इन जैसी अति-प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में उच्च-शिक्षा के बाद स्कॉरशिप पाता है. बीए करके आईएएस बनने वाला अधिक योग्य है या जेएनयू से एमएस, एमफिल, पीएचडी करके किसी गांव में जाकर लोगों के लिए काम करने वाला या किसी बेहतर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर बनने वाला.

आईएएस के प्रति आकर्षण रखने वालों में अधिकातर प्रतिशत मध्य-वर्ग के लोगों व छुटभैये व्यापारी टाइप के घरानों (पांच सौ हजार करोड़ वालों को छुटभैया व्यापारी ही समझिए) का ही होता है, क्योंकि आईएएस सामंती अधिकारों का भोग करवाता है, भ्रष्टाचार की ऊंची व विशालकाय सुरसा जैसे मुंह वाली समुद्री लहरों के नियंत्रक यही होते हैं.




अपवाद किसी देश, समाज या ढांचे का चरित्र निर्धारित नहीं करते हैं. चरित्र मेजारिटी तय करती है. अपवाद संख्या में सुलझे व संवेदनशीक आईएएस अधिकारियों के होने के बावजूद, भारत के नौकरशाही ढांचा सामंती है, लोगों के प्रति गैर-जिम्मेदार व गैर-जवाबदेह है, तथा अति-विशिष्ट/अति-योग्य/अति-मेधावी इत्यादि जैसे मिथकों के द्वारा प्रतिष्ठित है, इस तथ्य से बिलकुल भी नकारा नहीं जा सकता है.

भारतीय नौकरशाही के ढांचे, अधिकारों व सुविधाओं में आमूलचूल परिवर्तन करने की सबसे अधिक प्राथमिकता के साथ जरूरत है. नौकरशाही को ऐसा कोई भी अधिकार नहीं होना चाहिए जो उन्हें आम-आदमी पर सत्ता देता हो या आम-आदमी से श्रेष्ठ साबित करता हो.

  • सामाजिक यायावर





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