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106वीं विज्ञान कांग्रेस बना अवैज्ञानिक विचारों को फैलाने का साधन

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106वीं विज्ञान कांग्रेस बना अवैज्ञानिक विचारों को फैलाने का साधन

जजों, विधायकों, मंत्रियों, प्रधानमंत्रियों के एक से बढ़कर एक अवैज्ञानिक प्रचार-प्रसार को जनता ने खारिज कर दिया, चाहे जरखरीद मीडिया ने कितना भी जोर क्यों न लगाया हो मसलन, मोर सम्भोग नहीं करता, मोरनी, मोर से आंसू से गर्भवती होती है, नाली के गंदे दुर्गन्ध से चायवाला चुल्हा जलाकर चाय बनाता है, डार्विन थ्योरी गलत है … ब्लां-ब्लां, इसीलिए सत्ताधीशों ने अब समाज के बीच सबसे ज्यादा स्वीकार्य वैज्ञानिकों को अब इस निकृष्ट कर्मों में उतारा है.

देश में लोगों को खासकर मेहनतकश लोगों की गाढ़ी कमाई को लूटने के लिए एक से बढ़कर तरकीबें भिड़ाई गई है, जिसे खासकर अध्यात्मिक नाम दिया है. शोषण का यह अध्यात्मिक तरकीब अंग्रेजों की गुलामी के दौर में नया स्वरूप ग्रहण कर लिया और देश में पूंजीवादी शोषण प्रणाली ने जड़ जमा लिया. परन्तु वक्त बीतने के साथ अंग्रेजी शासन प्रणाली ने यह महसूस किया कि शोषण की पूंजीवादी शैली के वजाय सामंती-अध्यात्मिक तरीके को मिला दिया जाय तो यह चिरस्थायी शोषण को कायम रख सकेगी. यही कारण है भारत के आजादी के दरमियान और उसके बाद भी शोषण के इस सामंती-अध्यात्मिक शैली को बरकरार रखा गया, जो आज तक लगातार प्राणवायु सत्ता के संरक्षण में पाता जा रहा है.




1947 के आजादी के दौर में फैली में जनजागृति ने शोषण के पूंजीवादी शैली को आगे बढ़ाया, परन्तु अब जैसे-जैसे देश की सत्ता पर सामंती ताकतें जड़ जमाती जा रही है, वैसे-वैसे देश के मेहनतकश तबकों के बीच पनपे वैज्ञानिक जागरूकता को खत्म करने के लिए बजाप्ता सत्ता की ओर से घोर अवैज्ञानिक विचारधारा को देश के सामने परोसा जा रहा है. पहले यह काम देश के सत्ता पर विराजमान मंत्रियों, प्रधानमंत्रियों, विधायकों, जजों, पुलिस महकमों के माध्यम से फैलाया गया, इसमें टीवी वगैरह में धार्मिकता का प्रवाह ने भरपूर योगदान दिया. परन्तु देश की आम मेहनतकश तबके के बीच इन तमाम तथाकथित लोगों की स्वीकार्यता लगभग शून्य के बराबर है, इसके उलट इन तमाम मंत्रियों, प्रधानमंत्रियों, विधायकों, जजों, पुलिस महकमों को आम समाज में लोग गुंडों की परिभाषा में रखते हैं. यही कारण है कि जजों, विधायकों, मंत्रियों, प्रधानमंत्रियों के एक से बढ़कर एक अवैज्ञानिक प्रचार-प्रसार को जनता ने खारिज कर दिया, चाहे जरखरीद मीडिया ने कितना भी जोर क्यों न लगाया हो मसलन, मोर सम्भोग नहीं करता, मोरनी, मोर से आंसू से गर्भवती होती है, नाली के गंदे दुर्गन्ध से चायवाला चुल्हा जलाकर चाय बनाता है, डार्विन थ्योरी गलत है … ब्लां-ब्लां, इसीलिए सत्ताधीशों ने अब समाज के बीच सबसे ज्यादा स्वीकार्य वैज्ञानिकों को अब इस निकृष्ट कर्मों में उतारा है.




1914 में पहली बार भारत में वैज्ञानिकों का कांग्रेस का आयोजन किया गया, जिसे प्रतिवर्ष देश में आयोजित किया जाता है. इस कांग्रेस में देश-विदेश के वैज्ञानिक समुदाय हिस्सा लेते हैं, अपने-अपने शोध-पत्र पढ़ते हैं. इन अंधविश्वासी सामंती ताकतों ने अंधविश्वास को फैलाने के लिए अपने चाटुकार-चापलूसों को इन वैज्ञानिक समुदाय के बीच में डालकर चाटुकारिता का नया अध्याय लिख डाला है. विदित हो कि केन्द्र की सत्ता में विराजमान मोदी सरकार इन चाटुकारों को बड़े-बड़े पदों पर विराजमान कर रखा है, ताकि अंधविश्वासों को बड़े पैमाने पर फैलाने का माध्यम बनाया जा सके. सबसे मजेदार तथ्य तो यह है कि न तो इस चाटुकार को किसी प्रकार की लज्जा है और न ही इसके सत्ताधीशों को देश की गरिमा का ख्याल है कि विश्व समुदाय के सामने देश की क्या हास्यास्पद स्थिति बनने जा रही है. आइये रिपोर्ट को देखते हैं.

पंजाब की लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में 106वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस (आईएससी-2019) में एक वैज्ञानिक ने न्यूटन और आइंस्टाइन को न केवल पूरी तरह गलत बताया है बल्कि इसे धोखा भी बताया है. वहीं गुरुत्वाकर्षण तरंगों का नाम नरेंद्र मोदी तरंगें किए जाने की भी बात कही गई है. इसके साथ-साथ रावण के समय श्रीलंका में एयरपोर्ट होने का दावा भी यहां किया गया है. तमिलनाडु के वर्ल्ड कम्यूनिटी सर्विस सेंटर के वैज्ञानिक कानन जगथला कृष्णन ने साइंस कांग्रेस में न्यूटन और आइंस्टीन की खोजों को खारिज करते हुए उनकी थ्योरी को गलत बताया. उन्होंने कहा कि न्यूटन को गुरुत्वाकर्षण बल की कोई जानकारी नहीं थी. वहीं अपनी सापेक्षता के सिद्धांत के जरिये आइंस्टीन ने दुनिया को सिर्फ धोखा दिया है.




हर्षवर्धन कलाम से भी बड़े वैज्ञानिक साथ ही उन्होंने दावा किया कि केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री हर्षवर्धन कलाम से भी बड़े वैज्ञानिक हैं. उन्होंने ग्रैविटेशनल लेंसिंग इफेक्ट को हर्षवर्धन इफेक्ट करने का ऐलान तक कर डाला. इसके बाद उन्होंने ग्रैविटेशनल वेब्स को मोदी नरेंद्र मोदी वेब्स किए जाने का भी ऐलान किया. 106वीं विज्ञान कांग्रेस में आंध्र यूनिवर्सिटी के कुलपति जी. नागेश्वर राव ने दावा किया कि रावण के पास पुष्पक विमान सहित 24 तरह के विमान थे. उनको उड़ाने और लैंडिंग के लिए श्रीलंका में तब एयरपोर्ट भी थे. पंजाब के जालंधर में लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में तीन जनवरी से सात जनवरी तरक इंडियन साइंस कांग्रेस का आयोजन हो रहा है. इसमें देश विदेश के वैज्ञानिक अपनी बात रख रहे हैं. पांच दिन चली साइंस कांग्रेस में डीआरडीओ, इसरो, डीएसटी, एम्स, यूजीसी, के अलावा विदेशों के कई प्रमुख यूनिवर्सिटी के प्रख्यात वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया है.

पंजाब यूनिवर्सिटी के एक भूविज्ञानी ने भगवान ब्रह्मा को ब्रह्मांड का सबसे महान वैज्ञानिक बताया है. इस भूविज्ञानी का कहना है कि भगवान ब्रह्मा डायनासोर के बारे में जानते थे और इसका उन्होंने उल्लेख वेदों में भी किया है. बता दें कि ये भूविज्ञानी करीब 25 सालों से भारत में डायनासोर की उत्पत्ति और उनकी मौजूदगी पर शोध कर रहे हैं. असिस्टेंट प्रोफेसर अंशु खोसला के अनुसार इस दुनिया की हर चीज के बारे में ब्रह्मांड निर्माता जानते हैं.




भूविज्ञानी अंशु खोसला ने लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के 106वें भारतीय विज्ञान कांग्रेस में डेक्कन ट्रैप से संबंधित दृश्यों के बायोटिक असेंबलीज पर शोध पत्र पेश किया, उसी दौरान उन्होंने ये बातें भी कहीं. उन्होंने कहा कि ऐसी कोई चीज दुनिया में नहीं जिसके बारे में ब्रह्मांड के निर्माता को जानकारी न हो. वे डायनासोर की उत्पत्ति और उनकी मौजूदगी के बारे में भी जानते थे. इसका उल्लेख उन्होंने वेदों में भी किया है.

भूविज्ञानी ने कहा कि डायनासोर 6.5 करोड़ साल पहले ही विलुप्त हो गए थे लेकिन भगवान ब्रह्मा को आध्यात्मिक शक्तियों के जरिए उनके बारे में मालूम हो गया होगा. उन्होंने कहा कि डायनासोर ही नहीं, हर चीज की उत्पत्ति के बारे में वेदों में बताया गया है. डायनासोर शब्द की उत्पत्ति भी संस्कृत शब्द डिनो से हुई जिसका मतलब होता है भयानक और इसका अनुवाद डायन शब्द से किया गया जबकि सोर का मतलब छिपकली होता है और जिसका संबंध असर (राक्षस) से होता है.




इससे साफ होता है कि हर चीज का जिक्र वेदों में मौजूद है. अंशु खोसला ने कहा कि भगवान ब्रह्मा ने धरती पर किसी के जानने से डायनासोर की खोज की थी. उन्होंने कहा कि विलुप्त होने से पहले डायनासोर के प्रजनन और विकास का केंद्र भारत ही था. यहीं नहीं उन्होंने कहा कि ब्रिटिश और अमेरिकियों ने वेदों के जरिए ही डायनासोर के बारे में जाना और समझा.




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