'यदि आप गरीबी, भुखमरी के विरुद्ध आवाज उठाएंगे तो आप अर्बन नक्सल कहे जायेंगे. यदि आप अल्पसंख्यकों के दमन के विरुद्ध बोलेंगे तो आतंकवादी कहे जायेंगे. यदि आप दलित उत्पीड़न, जाति, छुआछूत पर बोलेंगे तो भीमटे कहे जायेंगे. यदि जल, जंगल, जमीन की बात करेंगे तो माओवादी कहे जायेंगे. और यदि आप इनमें से कुछ नहीं कहे जाते हैं तो यकीं मानिये आप एक मुर्दा इंसान हैं.' - आभा शुक्ला
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सेना का राजनीतिकरण !

पिछले तीन चार साल से सेना के राजनीतिकरण करने, सेना को भगवा चोला पहनाने, सेना के ईश्वरीकरण कर उसे प्रजातांत्रिक देशों के प्रश्नगत करने के नागरिक अधिकारों से परे बनाने के कुचक्र पर पोस्ट लिख रहा था. एक प्रजातांत्रिक देश के लिए ये एक अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दा है. मेरे कई क्रांतिकारी प्रकृति के मित्र और भाई भी जो किसी भयानक …

बुलंदशहर : मॉब-लिंचिंग का नया अध्याय

गिरीश मालवीय : कल बुलंदशहर में जो लोहमर्षक घटनाक्रम सामने आया है, उसके लिए मोब-लिंचिंग बड़ा सॉफ्ट सा शब्द लग रहा है. अब भीड़ किसी मुसलमान दलित को निशाना नहीं बना रही है. अब उसके हाथ इन्स्पेक्टर रैंक के अधिकारियों तक पुहंच गए हैं. सारा घटनाक्रम सिर्फ दो घण्टे में ही निपट गया. साफ है कि गोकशी की अफवाह फैलाकर रास्ता …

लुम्पेन की सत्ता का ऑक्टोपस

लुम्पेन जब शासन में आते हैं तब सिर्फ संवैधानिक संस्थाऐं ही नहीं, संवैधानिक ज़िम्मेदारी को निभाने वाले भी उनकी ज़द में आ जाते हैं. जस्टिस लोया से लेकर इंस्पेक्टर सिंह तक इसके उदाहरण हैं. याद रखिए गौ रक्षक दल, सनातन संस्था, संघ, विहिप इत्यादि सरकार संपोषित संस्थाएं नहीं हैं, ये सरकार उनके द्वारा संपोषित है. जब लोकतंत्र का क्षय एक …

छल-प्रपंच के आवरण में लिपटी आस्था का चुनावी ब्रह्मास्त्र

साम, दाम, दण्ड, भेद के जनक चाणक्य की नीति में छल-प्रपंच का समावेश करने के लिए आस्था को छल-प्रपंच के आवरण में लपेट कर इस्तेमाल करने के प्रयोग की सफलता से राजनेता पस्त तो दिख रहे हैं, पर इसकी काट उनके लिए अभी दूर की कौड़ी ही बनी हुई है. राजनीति की चाणक्य एकेडमी के शिक्षक जानते हैं कि राष्ट्रीय …

हिन्दुत्व की भागवत कथा और हिन्दुस्तान का सच

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सर-संघचालक मोहन भागवत का यह वक्तव्य निश्चय ही स्वागतयोग्य है कि अगर भारत में मुस्लिम नहीं रहेंगे, तो हिन्दुत्व नहीं रहेगा, लेकिन कई वाक्यों की तरह यह एक आदर्श वाक्य भर है – या संघ परिवार के दर्शन और व्यवहार में इसकी कोई वास्तविक-लोकतांत्रिक झलक भी मिलती है…? यह सवाल इसलिए अहम है कि पिछले …

1918 में पहली बार इस्तेमाल हुआ ‘हिन्दू-धर्म’ शब्द

1918 में पहली बार इस्तेमाल हुआ हिन्दू धर्म शब्द, ब्राह्मण नहीं हैं इस देश का निवासी. तुलसीदास ने रामचरित मानस मुगलकाल में लिखी, पर मुगलों की बुराई में एक भी चौपाई नही लिखी ? क्यों ? क्या उस समय हिंदू-मुसलमान का मामला नहीं था ? हां, उस समय हिंदू-मुसलमान का मामला नहीं था क्योंकि उस समय हिंदू नाम का कोई धर्म …

अयोध्या भारत की साझी विरासत

कहते हैं अयोध्या में राम जन्मे. वहीं खेले कूदे बड़े हुए. बनवास भेजे गए. लौट कर आए तो वहां राज भी किया. उनकी जिंदगी के हर पल को याद करने के लिए एक मंदिर बनाया गया. जहां खेले, वहां गुलेला मंदिर है. जहां पढ़ाई की वहां वशिष्ठ मंदिर हैं. जहां बैठकर राज किया, वहां मंदिर है. जहां खाना खाया वहां …

अपनी लड़ाई फिर वही से शुरू करनी होगी, जहां से छूट गई

बीजेपी जाएगी कांग्रेस आ जायेगी. सिर्फ एक चीज से राहत मिलेगी और वह है लुटेरे खुद को राष्ट्रभक्त कह देशभक्ति को बदनाम तो नहीं करेंगे और जबरन अपने मन की बात पर हामी भराने पर मजबूर नहीं करेंगे.कांग्रेस को जम कर कोसने पर गाली-गलौज करने तो नहीं आएंगे और सबसे अधिक मुस्लिम, दलित समुदाय खुश होगा, क्योंकि उनको बाकी देशवासियों …

कांग्रेस और भाजपा एक सिक्के के दो पहलू

कांग्रेस, आरएसएस का अपना पुराना घर है. कांग्रेस, आरएसएस का पहला प्यार है. जैसा कि आप सभी जानते हैं कि पहला प्यार कभी भूलता नहीं है. भारतीय राजनीति में पर्दे के पीछे रहते हुए आरएसएस हमेशा अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाया है. अपने पुराने और नये घर या प्रेम के जरिए संघ अपने राजनीतिक हस्तक्षेप को छुपाते हुए सांस्कृतिक संगठन के रूप में …

हिंदी दिवस की तरह ही संविधान दिवस भी मुबारक

भारतीय संविधान पूरी दुनिया में शायद इकलौता ऐसा संविधान है, जिसका सीधा टकराव अपने ही सामाजिक मूल्यों से रहा है. जैसे हमारा संविधान सभी को बराबर मानता है लेकिन समाज एक दूसरे को छोटा-बड़ा मानता है. संविधान छुआछूत को अपराध मानता है लेकिन समाज उसे अपनी प्यूरिटी को बचाये रखने के लिए ज़रूरी मानता है. संविधान वैज्ञानिक सोच विकसित करने …

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