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किसी भी स्तर की सैन्य कार्रवाई से नहीं खत्म हो सकते माओवादी

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किसी भी स्तर की सैन्य कार्रवाई से नहीं खत्म हो सकते माओवादी

यदि सचमुच भारत सरकार सीपीआई (माओवादी) के सैन्य इकाई पीएलजीए के खिलाफ सीधा युद्ध छेड़ती है तो इस आशंका से कतई इंकार नहीं किया जा सकता कि सीपीआई (माओवादी) देश में छिड़े गृहयुद्ध में अपनी सैन्य ईकाई पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी की मदद से देश की सत्ता पर कब्जा कर ले और अंबानी-अदानी की यह सरकार जमींदोज कर दिया जाये.

माओवादी हमले में 23 ‘जवानों’ की हत्या के बाद जगदलपुर पहुंचे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि ‘नक्सलियों को उनकी मांद में घुसकर मारेंगे.’ वहीं, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी कहा है कि ‘अब आर या पार होगा.’ वहीं माओवादियों ने एक पर्चा जारी कर कहा – ‘किस-किस को मारोगे ? तुमने हमारे योद्धाओं को घायल किया है, बदला लेंगे.’

इस सबसे इतर जो सवाल भारतीय सत्ता के खिलाफ जाता है वह यह है कि अब तक क्या हो रहा था छत्तीसगढ़ समेत पूरे भारत में फैले माओवादियों के खिलाफ ? भारत सरकार की खूंख्वार पुलिस माओवादियों के नाम पर छत्तीसगढ़ समेत पूरे देश की जनता के साथ क्या कर रही थी ?

इससे भी महत्वपूर्ण सवाल है कि आखिर वह कौन-सी ताकत है, जिसके बल पर भारत सरकार की अर्द्ध सामंती-अर्द्ध औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष चला रही भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की सत्ता इतनी दृढ़ता और अजेय ताकत बन कर खड़ी है कि भारत सरकार के द्वारा भेजे जाने वाले हजारों की तादाद में बर्बर और खूंख्वार फौज को माओवादी मौत की घाट उतार देती है और एक प्रबल चुनौती पेश कर रही है.

तत्कालीन 23 बर्बर और खूंख्वार ‘कोबरा’ जैसे घृणित और भयावह लगते नामों से गठित भारतीय फौज के 23 लोगों को माओवादी की गुरिल्ला आर्मी ने मार गिराया है, 31 को घायल कर दिया है और 1 को गिरफ्तार कर लिया है. मालूम हो कि सीपीआई (माओवादी) एक राजनीतिक पार्टी है, जिसका कार्य राजनीतिक दिशा-निर्देशन देना है, न कि फौजी कार्रवाई करना. तमाम फौजी कार्रवाई ‘पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी’ यानी ‘पीएलजीए’ करती है, अथवा अंजाम तक पहुंचाती है. इसलिए यह कहना कि ‘माओवादियों ने 23 ‘जवानों’ को मारा है’, तकनीकी तौर पर बिल्कुल ही गलत है.

अब आते हैं सीपीआई (माओवादी) के सैन्य संगठन ‘पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी’ के उपर. यह आर्मी बेहद ही संगठित और जनता का अपार समर्थन लिये हुए होती है. यह आर्मी अगर हम अभी के सरकारी आंकड़ों पर भरोसा करें तो एक साथ 250 से 350 गुरिल्लों से मिलकर बनता है. तब सवाल उठता है कि आखिर 250 से 350 गुरिल्लों से मिलकर बना यह सैन्य संगठन आखिर दो हजार से तीन हजार के सरकारी फौज पर भारी कैसे पड़ जाता है ? तो इसका जवाब बेहद आसान है – जनता का अपार जनसमर्थन.

कहा जाता है कि पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी के 250 से 350 के सैन्य दलों को चलायमान रखने के लिए कम से कम 5 करोड़ लोगों के दृढ़ और मजबूत समर्थन की जरूरत पड़ती है. अगर पीएलजीए की अगर पांच टुकड़ी भी अगर भारत में चलायमान है तो 20 करोड़ की विशाल आबादी इसके समर्थन में होगी. विदित हो कि पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी के लिए यह मजबूत अपार जनसमर्थन हासिल करती है सीपीआई (माओवादी) पार्टी की राजनीतिक इकाई.

अब आते हैं महत्वपूर्ण सवाल पर कि आखिर पीएलजीए के एक छोटे से दस्ते किस प्रकार सरकार की हजारों की फौज पर न केवल भारी ही पड़ती है अपितु बड़े पैमाने पर उसे मार भी गिराती है ? इसका जवाब देने हेतु एक उदाहरण इस प्रकार है, जो एक पत्रकार ने बताया था जब वे माओवादियों का इन्टरव्यू लेने एक पहाड़ पर गये थे और वे वहां हजारों पुलिस के द्वारा घेर लिये गये थे. बकौल पत्रकार –

सुबह का समय था जब मैं माओवादियों का इन्टरव्यू लेने वहां पहुंचा था. तकरीबन 65 माओवादियों का वहां कैम्प चल रहा था. कुछ लोग नास्ता में चना खा रहे थे तो कुछ दातुन से ब्रश कर रहे थे, तभी तकरीबन एक हजार सीआरपीएफ की भारी तादाद में वहां पहुंची पुलिस ने अचानक हमला कर दिया और तेज गोलीबारी शुरू कर दिया. माओवादियों का पीएलजीए ने तत्काल मोर्चा संभाला और पलक झपकते चारों तरफ विशाल पंख के समान फैल गये और पुलिसिया गोलीबारी का जवाब देने लगे.

इससे एक महत्वपूर्ण तथ्यों यह था कि हजारों पुलिसिया टुकड़ी से घिरे होने के बाद भी सभी 65 गुरिल्ले एक साथ गोली नहीं चला रहे थे अपितु महज 10 से 12 गुरिल्ले ही गोली चला रहे थे. जब कोई थक जाते थे या अन्य जरूरतें होती थी तब उनका स्थान कोई दूसरा गुरिल्ला लेता और पहले वाला वापस आकर बैठ जाता, जिसे रिजर्व सैन्य कहा गया था. हम देख रहे थे पुलिस लगातार बिना रूके गोलियां बरसा रही थी.

खैर महत्वपूर्ण तथ्य इसके बाद देखने को मिला. तकरीबन 3 घंटे की भारी गोलाबारी के बाद पीएलजीए की इकाई पुलिसिया घेरा को तोड़ने में सफल हो गया और बाहर निकल कर पहाड़ की ओर चल दिया. स्वभाविक तौर पर सभी परेशान थे क्योंकि उन्होंने नाश्ता भी नहीं किया था और पीने का पानी भी खत्म हो गया था. फिर भी वे लोग आगे बढ़ते रहे.

चूंकि हमारी टीम भी इन्हीं लोगों के साथ थी, इसलिए यह सब बड़ी बारीकी से देख पा रहे थे कि काफी दूर जाने के बाद एक गांव में उन्होंने रूकने का इशारा किया. बाद में मालूम हुआ कि पुलिस के मुठभेड़ शुरू होते ही गोलियां की आवाज ने दूर-दूर तक लोगों को सतर्क कर दिया और लगभग पीएलजीए के आने के तमाम संभावित गांवों के लोगों ने अतिरिक्त खाना बना लिया अथवा खाना तुरन्त तैयार होने के लिए सामग्री जुटा लिये.

बहरहाल, हमारी टीम जिस गांव में पहुंची, वहां के लोगों से दूर से ही पीएलजीए की टीम को पहचानते ही आनन-फानन में खाट, चटाई आदि बिछाने लगे. वहां पहुंचते ही बोलने से पहले ही वहां के बच्चों को दूर खड़ा होकर पुलिस को देखने और संकेत करने के लिए कहा. बहुत से बच्चे दूर जाकर खेलने लगे और निगाहबानी करने लगे.

खाट या चटाई पर बैठते ही गांव की तमाम महिलाएं गुरिल्ले के पैरों से जूते उतारने लगी और उनके पैरों को गर्म पानी से धोने लगी. कुछ महिलायें एक हाथ में गुड़ का ढेला और दूसरे हाथ में एक लोटा पानी लिये थी और पहले गुड़ का वह ढ़ेला खाने के बाद पानी पीने का आग्रह कर रही थी. कुछ लोग ज्यादा परेशान या जख्मी हुए गुरिल्ले का तत्काल उपचार कर रही थी. हलांकि गोलीबारी में किसी को भी गोली नहीं लगी थी, फिर भी भाग-दौड़ की आपाधापी से कुछेक के पैरों पर चोटें आई थी, जिसका हर संभावित उपचार वे ग्रामीण लोग कर रहे थे. फिर तुरन्त सभी को खाना खाने के लिया दिया.

बाद में पता चला कि तकरीबन एक हजार की संख्या वाली सरकारी फौज के एसपी मुठभेड़ शुरू होते ही जमीन में बैठ गया और अपने चारों ओर घेरकर सिपाहियों को खड़ा होने का आदेश दिया ताकि कोई भी गोली गलती से भी उसे छू न जाये. वहीं वह लगातार वाकी-टाॅकी पर ‘और जवान भेजो’ कहकर चीखने लगा. खैर मुठभेड़ खत्म होते-होते करीब चार पुलिस अधिकारी को ‘डायरिया’ ने घेर लिया, जिसे स्ट्रेचर पर लिटाकर पुलिस वापस लौटी. वापसी में जिस गांव होते हुए पुलिस वापस लौट रही थी, उस गांव के लोगों ने अपने-अपने घरों का खाना या तो खा लिया अथवा दूर फेंक दिया ताकि किसी पुलिस को खाना न मिल सके. पानी के बर्तन खाली कर दिया. खाने या पीने योग्य किसी समान को छिपा दिया अथवा नष्ट कर दिया. यहां तक चापाकल का हैंडिल भी खोल कर दूर कहीं छिपा दिया. एक मात्र दुकानदार अपना दुकान बंद कर दिया.

ऐसे में ज्यों ही हैरान-परेशान पुलिसिया दल वहां पहुंचा तो खाने और पीने के लिए खाना और पानी मांगने लगा, लोगों को मारने-पीटने और लूटने लगा. गंदी-गंदी गालियां देने लगा, दर्जनों महिलाओं-पुरूषों को मारचूर का घायल कर दिया, परन्तु, इससे भी पुलिसिया दल को खाने या पीने का एक ढेला भी नहीं मिला और भागकर अंत में पुलिस मुख्यालय जानेे के बाद ही उसे खाना-पानी नसीब हुआ.

इस रिपोर्ट को पढ़ने के बाद एक चीज साफ हो गया कि आखिर क्यों पीएलजीए की छोटी-सी टुकड़ी भी भारतीय सत्ता की खूंख्वार फौज पर भारी पड़ती है, और ठीक यही चीज तत्कालिक लड़ाई में हुई, जिसमें ‘कोबरा’ का 23 ‘जवान’ मारा गया, 31 घायल हुआ और 1 पीएलजीए के द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार –

सीपीआई (माओवादी) की सैन्य ईकाई पीएलजीए गुरिल्ला युद्ध कला का प्रयोग करते हुए हमला करते हैं. शनिवार की दोपहर भी पीएलजीए ने यही किया और जवानों पर अलग-अलग टुकड़ियों में बंटकर हमला कर दिया. पुलिस सूत्र बताते हैं कि अफसरों को सूचना मिली थी कि तर्रेम के आगे बीजापुर-सुकमा के बॉर्डर पर बड़ी संख्या में पीएलजीए के गुुरिल्ले जमा हैं. इन सूचनाओं को पुष्ट करने के लिए ड्रोन से लेकर अलग-अलग माध्यमों का प्रयोग किया गया और 2 हजार ‘जवानों’ को अलग-अलग दिशाओं से टारगेट के लोकेशन की तरफ भेजा गया. तर्रेम से भी करीब 7 सौ ‘जवानों’ की एक टुकड़ी को टारगेट की तरफ भेजा गया.

पीएलजीए के गुुरिल्ले को पहले ही जवानों की मूवमेंट की जानकारी थी और जवानों को पीएलजीए के गुुरिल्ले ने जोनागुड़ा के पहाड़ियों की तरफ बढ़ने दिया. चूंकि गुरिल्ला वार क्षेत्र में एक साथ बड़ी संख्या में जवान पहुंच गए थे ऐसे में पीएलजीए के गुुरिल्ले ने जवानों को बड़ी आसानी से निशाना बनाया. इससे पहले भी जंगलों में ऐसे ही हमले होते रहे हैं और पीएलजीए के गुुरिल्ले छिपकर बड़ा नुकसान करते रहे हैं.

पीएलजीए के गुुरिल्लों ने पहले पहाड़ी से दागी गोलियां. बड़ी संख्या में जवान जोनागुड़ा की तरफ बढ़े यहां पहाड़ी की ओर से गोलियां और रॉकेट लॉन्चर के जरिए पीएलजीए के गुुरिल्ले ने ‘जवानों’ पर हमला किया. पहली ही गोलीबारी में ‘जवानों’ को खासा नुकसान उठाना पड़ा. इस बीच कुछ ‘जवान’ यहीं मारे गये और बाकी घायल ‘जवान’ अपने दूसरे साथी ‘जवानों’ के साथ 1 किलोमीटर दूर टेकलगुड़ा गांव की तरफ आए. यहां घरों और अन्य सामानों को मोर्चा बनाने और घायल ‘जवानों’ को दवा देने की कोशिश करने लगे. इसी बीच गांव के अंदर से भी ‘जवानों’ पर हमला हो गया. बताया जा रहा है कि गांव में हुए हमले में भी बड़ी संख्या में ‘जवान’ मारे गये.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के छत्तीसगढ़ से वापस रवाना होते ही माओवादियों ने एक पर्चा जारी किया है. शनिवार को तर्रेम में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में घायल हुए अपने साथियों को सलाम करते हुए उन्होंने अमित शाह पर निशाना साधा है. पर्चे में कहा गया है कि अमित शाह देश के गृह मंत्री होकर भी बदला लेने जैसी असंवैधानिक बात करते हैं, लेकिन वे किस-किस से बदला लेंगे ?

भाकपा (माओवादी) के प्रवक्ता अभय द्वारा जारी किए गए पर्चे में कहा गया है कि सरकार और सुरक्षा बलों के अभियान के खिलाफ वे टैक्टिकल काउंटर ऑपेंसिव कैंपेन चला रहे हैं, जिसमें अब तक 100 से ज्यादा पुलिसकर्मी या तो घायल हुए हैं या मारे गए हैं. इसमें कहा गया है कि सरकार के दमन के खिलाफ उन्होंने 26 अप्रैल को भारत बंद का आह्वान किया है, लेकिन सरकार कोरोना महामारी से जनता की बचाव करने के बजाय उन्हें माओवादियों का डर दिखा रही है.

पर्चे में दावा किया गया है कि सरकार की कार्रवाइयों के खिलाफ इस तरह के मुठभेड़ आगे भी होते रहेंगे. सीपीआई (माओवादी) ने कहा है कि सरकार उन्हें आतंकवादी मानती है जबकि वे सरकारी तंत्र द्वारा जनता के संसाधनों की लूट के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं. पर्चे में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की भी चर्चा है. उनके बारे में कहा गया है कि मुख्यमंत्री शांति वार्ता से पहले हथियार और हिंसा छोड़ने की शर्त रख रहे हैं, जबकि महज तीन महीने में हमारे 28 गुरिल्लों को शहीद कर दिया है. ऐसा संंभव नहीं कि आप हमारे कॉमरेड्स की हत्या करें और हम मूकदर्शक बन देखते रहें.

सीपीआई (माओवादी) ने कहा है कि वे पुलिस के साथ संघर्ष नहीं चाहते, लेकिन जब वे सरकारी तंत्र का हथियार बनकर उन पर हमला करते हैं तो उन्हें जवाब देना पड़ता है. उन्होंने पुलिस को भी शोषित जनता का हिस्सा बताते हुए लोगों से अपील की है कि वे अपने बच्चों को पुलिस में भर्ती नहीं करें.

वहीं, टेकलगुड़ा हमले में ‘जवानों की शहादत’ के बीच पीएलजीए के गुरिल्लों ने जवानों से लूटे गए हथियारों की जानकारी सार्वजनिक कर दी है. पीएलजीए के गुरिल्लों ने जवानों से 14 हथियारों के साथ दो हजार गोलियां, 47 मैग्जीन सहित अन्य असलहा लूटा है. अभी पीएलजीए के गुरिल्लों की ओर से जिन हथियारों की तस्वीर जारी की गई है उसमें ऑटोमेटिक रायफल से लेकर कई बड़े हथियार भी शामिल हैं. इनमें सबसे खतरनाक हथियार एके-47 और यूबीजीएल है. पीएलजीए के गुरिल्लों ने टेकलगुड़ा से जितने हथियार लूटे हैं वह पीएलजीए के गुरिल्लों की एक नई मिल्ट्री प्लाटून के निर्माण के लिए काफी है. मामलों के जानकारों की मानें तो पीएलजीए के गुरिल्लों के मिलिट्री प्लाटून में 10 जवान और एक कमांडर होते हैं. मिलिट्री प्लाटून को ही आधुनिक और उम्दा हथियार दिए जाते हैं जबकि सुरक्षाबलों के मिलिट्री प्लाटून में 30 जवान और एक कमांडर होता है.

दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के प्रवक्ता विकल्प ने मंगलवार को एक सूचना जारी की है. इस सूचना में विकल्प ने कहा है कि ‘सीआरपीएफ जवान हमारे कब्जे में है और उसे बंदी बनाकर रखा गया है. जवान को हम रिहा करने के लिए तैयार हैं लेकिन इससे पहले सरकार रिहाई के लिए मध्यस्थता करने वालों के नाम बता दे. जब तक सरकार मध्यस्थों का नाम नहीं बताती है, तब तक जवान उनके कब्जे में सुरक्षित रहेगा.’

प्रख्यात गांधीवादी हिमांशु कुमार लिखते हैं, ‘जिस तरह छत्तीसगढ़ में पूंजीपतियों के लिए जमीन हड़पने के लिए सीआरपीएफ गांव-गांव में बैठाई गई है, लिखकर रख लो ठीक इसी तरह हरियाणा पंजाब राजस्थान और पूरे उत्तर भारत में इसी तरह सीआरपीएफ गांव-गांव में बैठा दी जाएगी. संसाधनों के लिए जो युद्ध आज आदिवासी इलाकों में चल रहा है वही युद्ध कुछ सालों के बाद आपके दरवाजे पर आने वाला है. लिखकर रख लो क्योंकि कुछ दिनों के बाद हम या तो जेल में होंगे या मार डाले जाएंगे.’

इन तथ्यों से जो चीज निकल कर सामने आती है वह यह कि यदि सचमुच भारत सरकार सीपीआई (माओवादी) की सैन्य इकाई पीएलजीए के खिलाफ सीधा युद्ध छेड़ती है तो इस आशंका से कतई इंकार नहीं किया जा सकता कि सीपीआई (माओवादी) देश में छिड़े गृहयुद्ध में अपनी सैन्य इकाई पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी की मदद से देश की सत्ता पर कब्जा कर ले और अंबानी-अदानी की यह सरकार जमींदोज कर दिया जाये.

  • महेश झा

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