Home गेस्ट ब्लॉग राहुल गांधी की छवि बर्बाद करने के लिए कॉरपोरेट का राष्ट्रीय अभियान

राहुल गांधी की छवि बर्बाद करने के लिए कॉरपोरेट का राष्ट्रीय अभियान

2 second read
0
0
309
राहुल गांधी की छवि बर्बाद करने के लिए कॉरपोरेट का राष्ट्रीय अभियान
राहुल गांधी की छवि बर्बाद करने के लिए कॉरपोरेट का राष्ट्रीय अभियान

राहुल गांधी, आजाद भारत में पहले नेता हैं जिनकी छवि बर्बाद करने के लिए अरबों रुपये लगाकर बाकायदा राष्ट्रीय अभियान चलाया गया. वजह थी चंद उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने से इन्कार करना और आदिवासियों का साथ देना. जब वे ताकतवर थे, सत्ता में थे तो कॉर्पोरेट का साथ देने की जगह आदिवासियों का साथ दिया और इसकी कीमत चुकाई. उनकी छबी धूमिल करने के लिए उनके खिलाफ राष्ट्रीय अभियान चला दिया गया.

यह अभियान 2010 में शुरू हुआ और बाकायदा करोड़ों-अरबों का तंत्र बनाया गया. कम से कम तीन कॉर्पोरेट घरानों ने सुप्रीम कोर्ट में उनकी नुमाइंदगी करने वाले एक वकील एवं पूर्व मंत्री के साथ मिलकर यह अभियान चलाया, जिसमें दो मीडिया घराने, कुछ पालतू संपादक और पत्रकार शामिल थे. इस अभियान के तहत राहुल गांधी के खिलाफ सालों तक लगातार खबरें प्लांट की गईं ताकि देश की जनता उन्हें गंभीरता से न ले. मीडिया में राहुल गांधी के खिलाफ क्या छपना है यह वो वकील, नेता तय करता था.

पत्रकार रोहिणी सिंह और अभिसार शर्मा ने मिलकर यह खुलासा किया है. उनके मुताबिक हुआ ये कि कॉरपोरेट समूह वेदांता नियामगिरि, ओडिशा में खनन करना चाहता था. आदिवासियों ने इसका विरोध किया. संघर्ष बढ़ा तो बात दिल्ली तक पहुंची. राहुल गांधी ने कहा कि आदिवासियों की आवाज सुनी जाएगी. सरकार खनन की इजाजत नहीं देगी.

राहुल गांधी के इस स्टैंड से वेदांता ग्रुप तो कांग्रेस के खिलाफ गया ही, बाकी कॉर्पोरेट घरानों में भी घबराहट बढ़ने लगी. संदेश ये गया कि राहुल गांधी सत्ता में आए तो जनता के साथ खड़े होकर कॉर्पोरेट का विरोध करेंगे. इसी बीच अंबानी समूह में मोदी और शाह के एक करीबी को टॉप पोजिशन पर बैठाया गया, इसे लेकर कांग्रेस और अंबानी में दूरी पैदा हुई.

भारत जोड़ो यात्रा के एक नवीनतम पोस्टर में राहुल गांधी

उस समय तक राहुल गांधी मीडिया में छाए रहते थे. हालांकि, बहुत कोशिश के बावजूद वे किसी कॉर्पोरेट से नहीं मिलते थे. कॉर्पोरेट जगत के लोगों को लगा कि अगर राहुल गांधी मजबूत हुए तो उनके लिए हो सकता है अच्छा परिणाम न हो. नतीजतन कुछ मजबूत औद्योगिक समूहोंने राहुल गांधी को बदनाम करने का अभियान ज्वाइन किया.

दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से कुछ एक कांग्रेसियों ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई. अगर आप व्हाट्सएप विश्विद्यालय के जरिए राहुल गांधी को जानते हैं तो आपको यह कहानी रास नहीं आएगी, लेकिन अगर आप राहुल गांधी को गंभीरता से सुनते हैं, कोरोना, नोटबंदी, अर्थव्यवस्था आदि पर उनकी सच होती भविष्यवाणियों को जानते हैं, मीडिया पर उस वकील नेता के प्रभाव के बारे में परिचित हैं, राहुल गांधी के खिलाफ चल रहे चरित्र हनन अभियान का अंदाजा है तो आपको यह कहानी हैरान नहीं करेगी.

जानने वाले जानते हैं कि राहुल गांधी नेता जैसे भी हों लेकिन उनकी छबी खराब करने के लिए इस देश में राष्ट्रीय अभियान चलाया गया. जहरीली आई.टी. सेल उसी मिथ्या अभियान के तहत वजूद में आई थी जिसने भारतीय राजनीति को पतन के धरातल पर पहुंचाया है.

  • मनोज कुमार

Read Also –

राहुल गांधी के खिलाफ न्यूज़ चैनल्स पर झूठ और नफरतों का डिबेट
भारत जोड़ो अभियान : राहुल गांधी का कन्याकुमारी से कश्मीर तक पैदल यात्रा भारतीय राजनीति को एक नई दिशा देगा ?
राहुल गांधी : जिसे मीडिया वंशवाद कहती है वह वंशवाद नहीं, क्रान्तिकारी विचार है
राहुल गांधी : एक सख्शियत, जो अपने विरुद्ध खड़े व्यक्ति को डराता बहुत है
पोस्ट मोदी पॉलिटिक्स में 50 के राहुल महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

जाति-वर्ण की बीमारी और बुद्ध का विचार

ढांचे तो तेरहवीं सदी में निपट गए, लेकिन क्या भारत में बुद्ध के धर्म का कुछ असर बचा रह गया …