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नित्य-प्रतिदिन गौ-शालाओं में हो रही गायों की मौत के पीछे कोई षड्यंत्र तो नहीं ?

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नित्य-प्रतिदिन गौ-शालाओं में हो रही गायों की मौत के पीछे कोई षड्यंत्र तो नहीं ?

पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ

प्रतिदिन अलग-अलग स्थानों की सरकारी गौशालाओं में बड़ी संख्या में मरती गायों की खबरें लगभग हरेक अखबार में होती है और ज्यादातर कारण बताया जाता है कि गायों की देख-रेख में लापरवाही और उनकी भूख. लेकिन क्या किसी ने ये सोचा है कि ये सरकार का कोई योजनाबद्ध षड्यंत्र तो नहीं ? अभी कुछ देर पहले मोदीजी का एक पुराना भाषण सुन रहा था जिसमें उन्होंने ‘पिंक रेवॉल्यूशन’ शब्द बोला था. सुनकर चौंका क्योंकि ये शब्द तो झींगा मछली उत्पादन के लिये प्रयोग में लाया गया था, जबकि मोदी जी का इंटेशन बीफ से था ! (बीफ के लिये तो ‘रेड रेवॉल्यूशन’ शब्द का प्रयोग होता है). मोदीजी अक्‍सर या तो आधी बातें बोलते हैं या फिर जो बोलते हैं, वे तथ्यात्मक रूप से गलत होता है (शायद इसका कारण लम्बे भाषणों में कई शब्दों का भूलना भी हो सकता है).

वैसे ‘पिंक रेवॉल्यूशन’ शब्द ‘ब्रेष्ट कैंसर’ से बचाव के लिये भी प्रयुक्त होता है. करीब सात वर्ष पहले इस बीमारी के प्रति जागरुकता पैदा करने और इसकी पीड़िताओं की सहायता के मकसद से हांगकांग से ‘पिंक रेवॉल्‍यूशन’ की शुरुआत हुई थी. आज वर्ष के 12 महीनों के दौरान दुनिया के अलग-अलग देशों में इससे जुड़े करीब 1000 कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. भारत से लेकर बांग्‍लादेश, सिंगापुर से लेकर चीन, श्रीलंका से लेकर पाकिस्‍तान और अमेरिका से लेकर लंदन तक में इसके लिये कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं.




खैर, हम ब्रेस्ट कैंसर या झींगा मछली उत्पादन दोनों के लिये प्रयुक्त शब्द ‘पिंक रेवॉल्यूशन’ को यहीं विराम देते हैं और ‘रेड रिवॉल्यूशन’ यानी गाय के मांस के लिये प्रयुक्त लाल क्रांति के बारे में जानते हैं !

मोदीजी के पिछले कार्यकाल में भारत बीफ एक्सपोर्ट में तेजी से ऊपर पहुंचा और 2018 में पहले नंबर पर आ गया (जैसा की फोटो में लगे आंकड़ों में आप देख ही सकते है कि विश्व के कुल बीफ उत्पादन का 30.44% उत्पादन भारत में हुआ और उसका एक्सपोर्ट हुआ. सबसे ज्यादा गायों के मांस का उत्पादन मुंबई और दिल्ली स्थित सरकारी कत्लखानों में हुआ अर्थात पुरे भारत में जितना उत्पादन किया गया, उसका लगभग 40% उत्पादन मुंबई और 25% दिल्ली में हुआ. और सिर्फ इन दो महानगरों के आंकड़ों को मिला दिया जाय तो ये कुल उत्पादन का 65% होता है और ये लीगल है क्योंकि सरकारी है).

मैं जानना चाहता हूंं कि वे गौ-सेवक कहांं हैं जो किसी मुस्लिम या दलित को जिन्दा गाय को इधर-उधर ले जाते हुए मार देते हैं ? क्या वे इन सरकारी कत्लखानों को बंद करवायेंगे ? क्या वे इनमें काम करने वाले सरकारी कसाईयों को भी वैसे ही पीट-पीटकर मारने की हिम्मत रखते हैं, जैसे किसी आम मुसलमान या आम दलितों को पीट-पीटकर मार देते हैं ? क्या वे नरेंद्र मोदी को लाठी -डंडों से पीटने का हौसला रखते हैं, जिसकी रजामंदी से ये सब हो रहा है ?




गौशालाओं में मरी (संभवतः षड्यंत्र के तहत मारी गयी) गायों का मांस भी एक्सपोर्ट होने के काम आता ही होगा क्योंकि इतनी बड़ी तादाद में मरती गायों का न तो कभी दाह-संस्कार सुना और न ही दफनाया गया, सुना. ऐसे ही सड़ने के लिये तो खुले में इन मरी गायों को फेंका नहीं जाता होगा ? ट्रकों में और ट्रेक्टरों में भरकर उन्हें सरकारी कत्लखानों में ही भिजवाया जाता होगा, जहांं उनका मांस निकाल कर एक्सपोर्ट किया जाता होगा ? असल में ‘लालक्रांति’ या ‘रेड रेवॉल्यूशन’ में भारत को शामिल होने की जरूरत ही क्यों पड़ी ? जबकि भारत में गाय को माता मानकर बहुसंख्यकों द्वारा पूजा जाता है और बीजेपी या आरएसएस (जो इन बहुसंख्यकों के सबसे बड़े दलाल हैं) ने कभी आवाज़ क्यों नहीं उठाई ?

हालांंकि ‘रेड रिवॉल्यूशन’ की तरह ही भारत में ‘ब्लू रिवॉल्यूशन’ भी 2013-14 में हुआ, जिसमें भारत ने 95.8 लाख टन मछली का रिकॉर्ड उत्पादन कर विश्व में दूसरा स्थान हासिल किया ! (मैं ये सोच रहा हूंं क्या यही हमारे भारत की संस्कृति है ? ) आखिरकार हम प्राणी-हत्या कर उनके मांस का व्यापार कर ही क्यों रहे हैं ? क्या भारत की शाकाहार उत्पादक क्षमता चूक गयी है ?




हमने जो हरित क्रांति (अन्न उत्पादन), श्वेत क्रांति (दुग्ध उत्पादन) और स्वर्णक्रांति (फलों और सब्जियों का उत्पादन) की थी, क्या वो सब ख़त्म हो चुकी है ?

इन तीनों क्रांतियों के चलते भारत में जो उत्पादन हुआ उससे पूरी दुनिया के सब मनुष्यों को एक दिन में 6 बार भरपेट भोजन करवाने जितनी क्षमता हमने विकसित की थी, जबकि मनुष्य ज्यादा से ज्यादा तीन बार खा सकता है. लेकिन हम उस उत्पादन का प्रयोग किसमें कर रहे हैं ? शराब बनाने में और पशुओ को जबरन खिलाने में ताकि उनका मांस बढ़ सके और फिर उन जानवरों को मारकर उनका मांस बेचा जा सके ? कितना वीभत्स है ये ! कितना डरावना और कितना भयानक है !! आखिर और कितना नीचे गिरेंगे हम ?

किसानों के लिये हमने रेनबो क्रांति की ताकि कृषि कार्य में वो पीछे न रहे और उन्नत तकनीकों के सहारे ज्यादा से ज्यादा खेती करें और मिट्टी भी उन्नत और खेती योग्य बनी रहे, लेकिन हालिया सरकार कार्पोरेट्स की गुलाम हो कर रह गयी है. वो किसानों को खत्म कर मजदूर बना रही है ताकि कॉर्पोरेट्स उनकी जमीनें खरीद सके और वे वहां मजदूर बनकर कार्य करें. लेकिन क्या कभी किसी ने ये सोचा है कि जब किसान नहीं बचेंगे और जमीनें खेती योग्य नहीं होंगी तो देश का क्या होगा ? उन शाकाहार क्रांतियों का क्या होगा, जो हमने देश के हालात बदलने और वैश्विक बाजार में देश को स्थिर रखने के लिये की थी ?




मैं फिर से भटक रहा हूंं. विषय षड्यंत्र के तहत मारी जा रही गौशालाओं की गायोंं का था, जिनका मांस ‘रेड रिवॉल्यूशन’ यानी बीफ (गाय के मांस) एक्सपोर्ट के तहत बेचा जा रहा है और मैं विचारों में बहते-बहते कुछ ज्यादा ही गहराई में चला गया. बहरहाल, मूल विषय पर लौटता हूंं, यथा –

हिंगोनिया (जयपुर) गौशाला हो या मथाना (हरियाणा) गौशाला, इनके अलावा भी देश भर में इन जैसी न जाने कितनी ही गौष-शालाओं में रोज बड़ी संख्या में गायें मर रही है. कभी उनके मरने का कारण भूख बताया जाता है, तो कभी बाढ़ का पानी, तो कभी और कुछ. लेकिन कभी कोई इनको सीरियसली नहीं लेता क्योंकि गौशाला सरकारी होती है और वहां की गायें शायद गौ-भक्तों के लिये माता समान और पूजनीय नहीं होती होगी न ?

किसी के पास महज बीफ होने की अफवाह के चलते उग्र होने वाले यह गौ-सेवक देश-भर की गौ-शालाओं में मर रही इन गायों की संख्या से न तो उद्वेलित हुए और न ही उन्होंने गोशाला के संचालक को या अन्य कर्मचारियों के ख़िलाफ़ कोई मुक़दमा दर्ज करने की सोची और न कुछ हंगामा किया, क्यों ?




क्या ये कथित गौ-सेवक भी इस षड्यंत्र वाले गोरखधंधे में शामिल हैं ? (आपको ज्ञात रहे ज्यादातर गौ-सेवक आरएसएस और इनके सहयोगी दलों के सदस्य ही होते हैं ) हालांंकि बड़े पैमाने पर गायों की मौतों को जस्टिफाई करने के लिये एक कारण को गिनाया जाता है और वह है गायों का प्लास्टिक खाना. जबकि ये कारण किसी भी गौ-शाला में संभव नहीं क्योंकि ये तो हो नहीं सकता कि गौ-शाला की गायों को लावारिस छोड़ा जाता हो कि वो यहांं वहां चर ले या कोई कर्मचारी उन्हें प्लास्टिक लाकर खिला दे ?

कई राज्य सरकारों ने गायों की हत्या पर सख्त कानून बना लिये हैं जबकि उन्हीं राज्यों के सरकारी कत्लखानो में गायों को काटा जाता है, तो उन सख्त कानूनों के प्रावधानों के तहत राज्य के मुख्यमंत्री और सबंधित विभाग के मंत्री समेत प्रशासनिक अधिकारियों, कर्मचारियों और उन सरकारी कत्लखाने के कार्यरत सभी लोगों को सजा नहीं होनी चाहिए ? क्यों सरकार बीफ एक्सपोर्ट को बैन नहीं करती ? असल कारण क्या है ? असल कारण ये है कि इसमें संलिप्त कम्पनियों (सरकारी और गैर-सरकारी दोनों तरह) को अनाप-शनाप फायदा होता है इसलिये वे इन निरीह जीवों की हत्या करते हैं.




सरकार संरक्षित कत्लखानों की संख्या ही 3600 है यानि नगरपालिकाओं द्वारा संचालित है. अर्थात गाय के मांस का सबसे ज्यादा व्यापार सरकार ही करती है और ये मोदी सरकार के समय 2014 से लगातार बढ़ रहा था और 2018 में भारत बीफ एक्सपोर्ट में नंबर वन हो गया ! (इसी मोदी को हिंदुत्व का भगवान माना जा रहा है न ? )

महाराष्ट्र, पंजाब और उत्तर प्रदेश तीन ऐसे प्रमुख राज्य हैं जहांं से सबसे ज़्यादा बीफ के मांस का निर्यात होता है. अकेले उत्तर प्रदेश में 317 पंजीकृत सरकारी कत्लखाने हैं. सरकार का नियंत्रण सिर्फ जानवरों के काटे जाने तक ही नहीं बल्कि सरकार का नियंत्रण तो इसकी बिक्री पर भी है. स्लाटर हाउसेज से लेकर खुदरा व्यापारियों तक ऐसा सिस्टम बनाया गया है कि सारा कार्य कानून के मुताबिक और सरकार के अधीन ही हो (उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी कहते हैं कि हिन्दू धर्म गोमांस खाने की इजाजत नहीं देता. मैं उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी से पूछना चाहता हूंं कि हिन्दू धर्म गौमांस बेचने की इजाजत देता है क्या ?)

धर्म के ठेकेदार हो, इतना तो पता ही होगा न ? क्योंकि गये साल के आंकड़ों में भारत ने सिर्फ पाकिस्तान को ही 5,000 टन गौमांस निर्यात किया है, जिसके लिए 11 हज़ार 93 गायों को काटा गया और अकेले उत्तर प्रदेश में 7,018 गायों को काटा गया था इसलिए योगीजी आइंदा कोई बकवास करो, तो पहले जान लेना कि भारत में मेरे जैसे कुछ लोग भी हैं, जो तुम्हारी बकवासी बातों में भी तथ्य निकाल कर, उसमें भी सवाल खड़े कर सकते हैंं).




आखिरकार भारत सरकार ये बिजनेस कर ही क्यों रही है ?

इसका कारण एक गाय के कटने पर लगभग 350 किलोग्राम मांस निकलता है और चमड़े और हड्डियों की अलग से कीमत मिलती है जो नाडिया धागे बनाने के काम में ली जाती है (आप घरों में जो धागा प्रयोग करते हैं, उसमें जो सिंथेटिक धागा बोलकर बाज़ार में बेचा जाता है, वो असल में जानवरों की नाड़ियों से बनाया जाता है. तो अगली बार धागा मुंह में डालकर गिला करने से पहले सोच लेना, कहीं वो किसी गाय की नाड़ी से भी बना हो सकता है). औसतन जिन्दा गाय ₹8000- ₹9000 में मिल जाती है. गांवों में और सुखा वाले प्रदेशों में तो यह ₹3000 में ही मिल जायेगी क्योंकि जहांं इंसान के खाने के वांदे हो, वहां पशु को कैसे खिलायेगा ?

एवरेज एक पशु की कीमत ₹8000. उसे काटने से मिला मांस 350 किलो. बीफ के मांस की भारत में एवरेज कीमत ₹120 रुपये प्रति किलो, तो 350 x 120 = ₹42,000 रुपये. चमड़े का दाम = ₹1000 और हड्डियांं और बांंकि जंक ₹2000 रूपये में यानी एक गाय के काटने से हुई कमाई कुल ₹45000 अर्थात जबरदस्त फायदा (भारत में ही लगभग 6 गुना). विदेशों में यही गोमांस निर्यात करने पर 3 से 4 गुना ज्यादा दाम में (यानि कुल फायदा 25 गुना ) बिकता है और यह निर्भर करता है कि किस देश में भेजा जा रहा है. गाय पालने वाले किसान को मिला सिर्फ ₹8000 रुपया और कत्लखाना चलाने वाले को मिला ₹45,000 रुपये. तो ₹37,000 रुपयों का फायदा देने वाली गाय को वह क्यों जिन्दा छोड़ेगा ?




भारत के कई कत्लखानों में 1000 से 1500 गायें रोज कट रही हैं. औसतन 1200 गायें रोज का मानिए तो एक कत्लखाने को एक दिन में 45000 x 1200 = 5,40,00,000/- (पांच करोड़ चालीस लाख) रोजाना की विशाल कमाई हुई ! यदि साल में 65 दिन सरकारी छुट्टी मान लें तो 300 वर्किंग-डे में ये कमाई 5,40,00,000 x 300= 16अरब 20करोड़ रुपये हुई. और इसमें मूल गायों की कीमत 2 अरब 88 करोड़ घटा दें तो 13 अरब 32 करोड़ का प्रॉफिट हुआ. इसमें भी सालाना खर्च सैलेरी, मेंटिनेंस इत्यादि के 3 अरब 32 करोड़ और घटा दें तो शुद्ध प्रॉफिट 13 अरब रुपयों का हुआ. ये प्रॉफिट सिर्फ एक कत्लखाने का है तो सभी का कितना ?

इसलिये तो सरकार खुद ही कत्लखाने खोल रही है और गाय काटने का लाइंसेस दे रही है ताकि बिजनेस बढ़ता रहे और सप्लाय के नाम पर सरकार में रहे इन नेताओं और मंत्रियों को कमीशन मिलता रहे. इसीलिए पिछली बार मोदी सरकार ने इसमें वैध-अवैध का चक्कर डाला, ताकि सारा प्रॉफिट सिर्फ उन लोगों को मिले, जो उनसे जुड़े हुए हैं. जरा सोचिये, सरकार ही जब इतना प्रॉफिट ले रही है तो गैर-सरकारी कम्पनियांं (बीफ एक्सपोर्ट में लायसेंसशुदा गैर-सरकारी कम्पनियांं सरकार से खरीदकर विदेशों में एक्सपॉर्ट करती है) कितना प्रॉफिट लेती होगी ? और उसमें नेताओं और मंत्रियों (लायसेंस देने में सहायक और अपनी किसी रिश्तेदार या पहचान वाले की कम्पनी) को कितना कमीशन मिलता होगा ? अथवा हो सकता है कि वे गैर-सरकारी कम्पनियांं खुद किसी मंत्री या उसके रिश्तेदार के नाम पर ही हो ? मैं कहता हूंं ये वैध और अवैध का चक्कर क्यों ? क्यों इसे पूरा बैन नहीं किया जाता ?




अब तो बीजेपी फुल पॉवर में है. राष्ट्रपति से लेकर संसद तक सभी उसके कब्जे में है. 2020 तक राज्य सभा में भी बहुमत आ जायेगा तो भाजपा या मोदी सरकार-2 क्या ऐसा कोई नियम लायेगी, जिससे गायें नहीं काटी जायेगी या हमेशा की तरह उत्तर भारत के इलाकों में गाय हमारी माता है और दक्षिण या पूर्वी भारत में मोदी सब भूल जाता है, वाली कहावत ही चरितार्थ होगी ?

गुजरात, यूपी, बिहार, राजस्थान जैसे इलाकों में बीफ खाने पर फांसी और उम्रकैद की सजा और गोवा से लेकर केरल तक और अरुणाचल से लेकर कन्याकुमारी तक बीफ की सप्लाय बीजेपी सरकार खुद ही करती रहेगी ? सिर्फ गोवा में ही हर दिन बीफ की खपत 30 से 50 टन तक होती है और इतना मांस सप्लाय के लिये कितनी गायों को मारा जाता होगा (एक अंदाज लगाइये ?). 100 से 150 गायों की हत्या के बाद ही इतना बीफ मिलेगा और ये सब सरकारी कत्लखाने में सरकार की रजामंदी से होता है !




जब भारत के एक छोटे से इलाके में ही बीफ सप्लाय के लिये 100-150 गायों को रोज सरकारी कत्लखानों में मारा जा रहा है, तो पुरे भारत में सप्लाय के लिये रोज कितनी गायों को मारा जाता होगा ? और उसके बाद बीफ एक्सपोर्ट के लिये संख्या कितनी होगी ? इस संख्या को कायम रखने के लिये जरूरत होगी और गायों की. और उसी जरूरत को पूरा करने के लिये गौ-शालाओं की ये गायें काम में ली जाती है, जिसे विभिन्न तरीकों से या तो मार दिया जाता है, या मर गयी, ऐसा दिखा दिया जाता है, और बाद में वे स्लाटर हाऊस में पहुंचा दी जाती है ताकि उनका मांस सप्लाय किया जा सके !

ये लेख इसलिये लिखी है ताकि आप सजग रहे और अपने आस-पास की गौ-शालाओं में जाकर, वहां की गायों की संख्या और उनके चारे-पानी की व्यवस्था खुद देखे. अचानक मर रही गायों के विषय में पड़ताल करे क्योंकि जब बहुत से व्यक्ति एक साथ ऐसा करेंगे तो गौशाला संचालक को भय लगेगा और वो डर की अवस्था में ऐसा कोई कार्य नहीं करेगा, जिससे किसी गाय को अकारण जान का खतरा पैदा होता हो !




एक बात और, ये जो आजकल गौ-सेवा के नाम पर जगह-जगह बॉक्स रखे होते हैं और आप अपनी सुविधा के हिसाब से उसमें पैसे डालकर ये सोच लेते है कि ये गौ-सेवा में लगेंगे, तो आपको ये समझना होगा कि शायद ऐसा न हो और वो किसी की शराब, गांजे या अन्य नशीले पदार्थोंं के सेवन में या अन्य किसी कार्योंं में प्रयोग होते हो. अतः आप रोज अपने घर में ही प्रति सदस्य एक रुपया प्रतिदिन के हिसाब से जोड़कर महीने में एक बार किसी गौ-शाला में जाकर गायों को अपने हाथों से चारा खिलाये अथवा अपनी सोसायटी या मुहल्ले के हिसाब से निर्धारित कर लें और रोज अलग-अलग व्यक्ति जाकर अपनी नजदीकी गौशालाओं में गायों को चारा खिलाने जाये !

ऐसा होने से जहांं आप सचमुच जीव-दया कर सकेंगे, वहीं संचालक भी कोई ऐसा कार्य नहीं कर पायेगा क्योंकि जब रोज अलग-अलग लोग रेगुलर जायेंगे तो संचालक भी पकड़े जाने के डर से कोई गड़बड़ नहीं कर पायेगा ! यह लेख काफी विस्तारवाली हो गयी, लेकिन विषय ही ऐसा है कि इससे कम शब्दों में इसको लिखना संभव ही नहीं है. हालांंकि इसी से सबंधित कई विषय तो एकदम छोड़ दिये गये हैं और कई का तो जिक्र तक नहीं किया !

[पं. किशन गोलछा जैन का सम्पर्क मेल आईडी : kishangolchha@gmail.com है.]




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