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सरकार में बैठकर भारतीय रेल को ख़त्म कर भारत को बर्बाद करने की योजना

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सरकार में बैठकर भारतीय रेल को ख़त्म कर भारत को बर्बाद करने की योजना

पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ

पॉल्टेशियन्स, सरकार में बैठकर इस भारतीय रेल को ख़त्म कर भारत को बर्बाद करने की योजना बना रहे हैं. भले ही भारतीय रेल अंग्रेजों की देन है मगर आज जो भारतीय रेल का प्रारूप है, वो भारत की उपलब्धि है. ऐसा लिखने का कारण भी जान लीजिये, यथा –

भारतीय रेल विश्व का चौथा और एशिया महाद्वीप का दूसरा एकल सरकारी स्वामित्व वाला सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है और पिछले 165 वर्षों से ये भारत के परिवहन क्षेत्र का मुख्य घटक है. भारतीय रेल द्वारा वर्ष 2016 में (मेरे पास इसके बाद का आंकड़ा नहीं है इसीलिये 2016 का आंकड़ा ही दे रहा हूंं) ₹1,63,791 करोड़ का राजस्व प्राप्त किया गया था, जो अब और ज्यादा बढ़ा ही होगा.




भारतीय रेल एक ऐसा उपक्रम है, जिसमें बहुल गेज प्रणाली है. जिसमें चौडी गेज (1.676 मिमी), मीटर गेज (1.000 मिमी) और पतली गेज (0.762 मिमी और 610 मिमी) है. उनकी पटरियों की लंबाई क्रमश: 89,771 किमी; 15,684 किमी और 3,350 किमी है जबकि गेजवार मार्ग की लंबाई क्रमश: 47,749 किमी; 12,662 किमी और 3,054 किमी है. भारतीय रेल के पास कुल चालू पटरियों की लंबाई 84,260 किमी है, जिसमें से 67,932 किमी चौडी गेज, 13,271 किमी मीटर गेज और 3,057 किमी पतली गेज है.

भारतीय रेल का पुरे भारत के परिवहन मार्ग का लगभग 28% मार्ग है, जिसमे चालू पटरी 39% है और कुल पटरियों का 40% मार्ग विद्धुतीकरण किया जा चुका है. भारतीय रेल 115,000 किमी मार्ग की रेल लाइनों से युक्त है. भारतीय रेल में 42,441 सवारी सेवाधान, 5,822 अन्‍य कोच यान, 2,22,379 वैगन यान है. भारतीय रेल के पास अभी 7,910 इंजनों का बेड़ा है. भारतीय रेल के अभी तक 7,172 रेल्वे स्‍टेशन से है, जो 16,31,582 लोगों को नियमित रोजगार देती है (अनियमित का तो मेरे पास आंकड़ा ही नहीं है). भारतीय रेल का देश के विकास में सबसे ज्यादा योगदान है.




भारतीय रेल की सफलता

दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे जो पतली गेज की एक बहुत पुरानी रेल व्यवस्था है, उसे यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत घोषित किया गया है. यह रेल अभी भी डीजल से चलित इंजनों द्वारा खींची जाती है और आजकल यह न्यू जलपाईगुड़ी से सिलीगुड़ी तक चलती है. इस रास्ते में सबसे ऊंंचाई पर स्थित स्टेशन घूम है. इसके अलावा नीलगिरि पर्वतीय भारतीय रेल को भी विश्व विरासत घोषित कर संरक्षित किया गया है.

भारतीय रेल में लग्जरी रेल परिवहन में पैलेस ऑन व्हील्स, समझौता एक्सप्रेस, कोंकण रेलवे, डेक्कन, थार एक्सप्रेस, शताब्दी एक्सप्रेस, राजधानी एक्सप्रेस जैसी सेवायें हैं, जिनका लुत्फ़ टूरिस्ट से लेकर भारतीय तक उठाते हैं.




पूरी दुनिया में लाइफ लाईन एक्सप्रेस सिर्फ भारतीय रेल के पास ही है जो किसी भी दुर्घटना की स्थिति में भारतीय रेल की एक चलंत (मोबाइल) अस्पताल सेवा है जो किसी भी नाजुक स्थितियों में लोगों की जान बचाने में सक्षम है. भारतीय रेल की अत्याधुनिक रेल प्रणाली में मेट्रो रेल के बाद टी18 का संचालन भी शामिल हो चूका है. सबसे खास बात भारतीय रेल के प्रथम वातानुकूलित सेवाओं का लाभ ज्यादा किराया और समय देकर भी भारतीय लोग और टूरिस्ट कर रहे हैं, वे उससे कम किराये और कम समय में फ्लाइट में भी जा सकते हैं लेकिन रेलवे में जो सुविधाजनक सफर उन्हें मिलता है, वो फ्लाइट में नहीं मिलता.

ऐसी भारतीय रेल व्यवस्था का निगमीकरण कर वर्तमान सरकार अपने पैरों पर कुल्हाड़ी नहीं बल्कि कुल्हाड़ी पर अपने पैर मार रही है. आने वाले समय में ये निगमीकरण निजीकरण में बदल जायेगा और इसके ठेकेदार इसके मालिक बन जायेंगे. फिर शुरू होगी एक अंतहीन लूट, जो आम नागरिकों से होगी. उनका रेल में सफर फ्लाइट की तरह महंगा और असुविधाजनक हो जायेगा और आने वाली सरकारों का राजस्व तो घटेगा ही, जिसकी आपूर्ति सरकार अन्य विकल्पों से भी नहीं कर पायेगी.




मैं नरेंद्र मोदी से कहूंगा कि आपने 2014 में कहा था कि ‘मेरे खून में व्यापार है.’ मैं भी मारवाड़ी हूंं और व्यापार के मामले  में मारवाड़ी, गुजरातियों से काफी ज्यादा आगे होते हैं. मैं आपसे पूछना चाहता हूंं कि ये कैसा व्यापार है जो घाटे पर घाटा खा रहा है ? और स्थिति यहांं तक आ गयी है कि घर के बर्तन-भांडे (सरकारी उपक्रम) तक बेचे या बंद किये जा रहे है ?

हे खून में व्यापार वाले महान व्यापारी, इसे दिवालियापन की ओर बढ़ना कहते हैं. अतः मेरा आपसे अनुरोध है कि अपने फैसलों पर एक बार पुनर्विचार करें क्योंकि ये मामला देश का है, जो आपकी सत्ता से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है. और ये देश किसी नेताओं की जागीर नहीं है बल्कि इसे एक-एक भारतीय ने अपने खून से सींचा है, तब कहीं जाकर ये आज का भारत बना है. अतः अपने राजनैतिक विद्वेष को भूलकर राष्ट्रहित में फैसला लीजिये.

आपको बुरा तो जरूर लगेगा पर मैं आपको ‘क्षमासहित’ ऐसा नहीं लिखूंगा क्योंकि मैंने ये बात आपके अहम् पर चोट करने के लिये ही लिखी है. ये पढ़ने के बाद अगर आप फैसला बदलने का विचार बनायेंगे तो मेरी तरफ से आपको अग्रिम धन्यवाद और अगर आपने ये फैसले बदले और निजीकरण से वापिस सरकारीकरण स्वामित्व की तरफ बढें तो आपका धुर विरोधी होकर भी, मैं आपका मुरीद बन जाऊंगा.




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