Home गेस्ट ब्लॉग भारत का गौरवशाली इतिहास !?

भारत का गौरवशाली इतिहास !?

34 second read
0
0
1,692

 

भारत का गौरवशाली इतिहास !?

पिछले वर्ष हरियाणा के एक नेता जी ने ऐतिहासिक गौरव की रक्षार्थ एक अभिनेत्री के बलात्कार और हत्या का फतवा जारी किया था, जिसके लिए समाज करोड़ों रुपये दान कर देगा, ऐसी उन्होंने डींग भी मारी थी. पद्मावती बनी अभिनेत्री अब कल ही अलाउद्दीन बने अभिनेता से इटली में ब्याह रचा फिल्मी खिलजी के नाम का सिंदूर मांग में भरे भारत लौट आयी हैं.

विडम्बना देखिये कि नेताजी और उनकी गौरवशाली संस्थाएं मज़े से टीवी पर घूमर देख आनंदित हो रही हैं. नेताजी के साथ साथ राष्ट्रवादियों का झूठा गौरव भी बिखर कर नाली में बह गया है. अब चूंकि नेता जी डींग हांक रहे थे तो क्यों न इस ’गौरवशाली इतिहास’ का एक ऐतिहासिक विश्लेषण भी क्यों न कर ही लिया जाए.




जब सिंधु सभ्यता का काल था हम एक मातृसत्तात्मक समाज में थे. हमारा इतिहास गौरवशाली था. फिर हमारी भूमि पर आक्रांता घुस आए. हमारी किसानी से उत्पन्न अधिशेष का शोषण कर-कर के उन्होंने चार वर्ण रच दिए. स्वयं को आस्था के केंद्र में रख हमारी ही मातृभूमि पर हमें शुद्र बना दिया. इसे कौन मूर्ख गौरवशाली इतिहास कहेगा ?

बुद्ध, महावीर, अशोक आदि के काल अवश्य हमारे पतित और उत्पीड़न से भरे इतिहास में कुछ राहत भरे गौरव के क्षण लेकर आते हैं.




हर्षवर्धन के काल के भारतीय पटल से मिट जाने के दौरान विभिन्न विदेशी आक्रांताओं जैसे (हूण आदि) की संकर संतानों से उत्पन्न वर्ग राजपूत कहलाया. सत्ता पर अधिकार के कारण भाट कवियों ( चन्दवरदाई आदि) ने अरावली के पहाड़ पर आयोजित यज्ञ की अग्नि से उत्पन्न बता इन्हें फ़र्ज़ी धार्मिक पात्रता प्रदान की. क्या इस फ़र्ज़ीफिकेशन को गौरवशाली इतिहास मानें ?

इन बहादुरों की अतिशयोक्तिपूर्ण बहादुरी के वर्णन के बावजूद एक कमसिन कमउम्र मलेच्छ लौंडा मोहम्मद बिन कासिम जो अभी ताज़ा-ताज़ा अवतरित धर्म इस्लाम में दीक्षित हुया था, सिंध के रास्ते हमारी भूमि पर चढ़ आया. क्या इसे गौरव का इतिहास कहें ?

वो तो भला हो अरबों का, सिंध में कुछ उल्लेखनीय नहीं लगा, अतः वे आगे न बढ़े. उनकी अपनी भी कुछ राजनातिक मजबूरियां थी, सो अरबों ने कोई खास रुचि न दिखाई. क्या इस पर गौरव करें ?




मध्य एशिया के एक मलेच्छ तुर्क लुटेरे ने जब सुना कि भारत के ब्राह्मणवादी पुरोहितों की कूटनीति और ठस्स शासकों के गठजोड़ से किसानों को लूटा गया अधिशेष कुछ मंदिरों में इकट्ठा हो गया है, जिस पर पुरोहित और अभिजात्य वर्ग अय्याशी कर रहा है. उस अथाह दौलत को लूटने के लिए आक्रमण करना, धावे मारना उसने अपना सालाना शगल बना लिया. इन सोलह-सत्तरह आक्रमणों में उसने उत्तर भारत के सभी बहादुर राजपूतों को अन्य राजपूतों के सहयोग से बार-बार रगड़ा. जो राजपूत सरदार गजनी से हार जाता था, या उसकी अधीनस्थता स्वीकार कर लेता था, या अपने पड़ोसी राजपूत सरदार को सबक सिखाने के लिए उससे मित्रता करता था, अपनी फौजी टुकड़ी के साथ गजनी के अभियानों का हिस्सा बन जाता था. इन अभियानों में वैभवशाली मंदिरों की लूट भी शामिल थी. गजनी ने उत्तर भारत में छोटी-बड़ी सैकड़ों लड़ाइयां लड़ी. बस बुंदेलखंड का शासक विद्याधर एक मात्र ऐसा शासक था, जिसने एक युद्ध क्षेत्र में गजनी को बराबरी पर रोके रखा. क्या ग़ज़नवी को मात्र एक बार रोकने को गौरवशाली इतिहास कहा जाए ?




गौर के शासक मोहम्मद गौरी को तो बनारस के गहड़वाल राठौर राजपूत शासक जयचंद गहढ़वाल ने ही बुला भेजा था. उसे पृथ्वीराज चौहान की लौंडियाबाज़ी और दबंगई से ऐतराज़ था. गौरी ने भी उत्तर और पश्चिम भारत में मौजूद अनेक राजपूत राजवंशों को युद्धों में चित किया. तराईन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज और गुजरात के एक अनजान से शासक भीमदेव द्वित्तीय ने गौरी को हरा कर पीछे धकेल दिया था और फिर रास रंग रचाने में मदमस्त हो गए. दिल्ली अजमेर के पृथ्वीराज चौहान को तो गौरी ने खुद तराईन द्वित्तीय युद्ध में हरा बंदी बना लिया लेकिन गौरी जीते-जी कभी गुजरात के भीम द्वित्तीय को हरा नहीं सका. भीम को हराने के काम बाद में उसके गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने किया. क्या इस गौरवशाली इतिहास पर गर्व किया जाए ?

गुलाम, खिलजी, तुग़लक़, सैय्यद, लोदी वंश के सुल्तानों ने न सारे उत्तर भारत बल्कि सुदूरवर्ती दक्षिण भारत तक धावे मारे और उसे दिल्ली सल्तनत के अधीन कर लिया. ऐसे सभी आक्रमणों में राजपूतों ने सुल्तानों को सहयोग दिया. द्वारसमुद्र के शासक राजा राम राय, ने होयसल साम्राज्य से दुश्मनी के चलते उसे हरवाया. फिर द्वारसमुद्र, वारंगल, होयसल और पाण्ड्य वंश के पांडेय राजकुमारों ने आपसी कलह के चलते सल्तनत की सेनाओं के साथ मिलकर सारा दक्षिण रौंद डाला. ये सारे शासक विभिन्न समयों पर दिल्ली दरबार में हाज़िर हुए. इन्होंने खिराज अदा की. लूट का माल सुल्तानों को पेश किया. अधीनस्थता स्वीकार की. सुल्तान से चंदोबा प्राप्त किया. अपने साम्राज्य में वृद्धिं प्राप्त की और सुल्तान के अधीनस्थ रहने के वचन दिए. क्या इन क्षणों को गौरवशाली इतिहास के रूप में याद किया जाए ?




वर्तमान रूस की एक छोटी सी रियासत फरगना का एक नाबालिग लौंडा बाबर अपनी मातृ रियासत से अपने ताकतवर रिश्तेदारों के द्वारा बाहर धकेल दिया गया. अनेक युद्ध हारने के पश्चात बिना राजपाट, बिना रियासत और चंद साथियों के साथ भिखमंगे खानाबदोश का जीवन जीता मलेच्छ मुग़ल बाबर अफगानिस्तान आ पहुंचा. और देखिए आज़ाद भारत में ज़बरदस्ती देशभक्ति और बहादुरी का आदर्श ठहराए जा रहे भगोड़े महाराणा प्रताप के पूर्वज राणा सांगा जी ने इब्राहिम लोदी को हटाने के लिए उसे भारत आक्रमण का न्योता दे दिया. बाकी फिर इतिहास है. सारे राजपूताने के शासक धीरे-धीरे मुग़लों के मनसबदार बन गए. मुग़लों से उन्होंने वैवाहिक संबंध स्थापित किये. अधिकतर राजपूतों ने अपनी पुत्रियों के विवाह मुग़लों से किये हालांकि मुग़ल शहजादियों के विवाह भी राजपूताने में किये गए, इसका भी उल्लेख हैं. क्या किसानों के अधिशेष पर कैसे भी सत्ता को हथियाये रखने और युद्धों को लड़ते रहने के इस इतिहास को गौरवशाली इतिहास के रूप में याद करूं ? जिसमें मलेच्छ मुग़ल और क्षेत्रीय राजपूत साझीदार थे ?

नादिरशाह और अहमदशाह अब्दाली के दिल्ली आक्रमण और लूट देखिए. पानीपत के तीसरे युद्ध में अहमदशाह अब्दाली के सम्मुख मराठां का सर्वनाश हुआ तो राजपूत कहां थे, ज़रा खोजियेगा ?




यूरोप के पुनर्जागरण काल के फलस्वरूप अब डच, फ्रांसीसी, डेन, अंग्रेज़ भी व्यापारी के रूप में हमारी भूमि पर आ पहंचे. इन यूरोपियन में सबसे पहले जिसने राजपूतों की क्षेत्रीय रेजीमेंटें खड़ी कर ली उसने अन्य यूरोपियनों के साथ-साथ हैदर, टीपू, निज़ाम, मराठा, मुग़ल, सिख, राष्ट्रवादी आंदोलनों, आदिवासी आंदोलनों सबको कुचल कर भारत पर अधिकार कर लिया. 1857 की क्रांति को कुचलने के उपरांत लार्ड कैनिंग द्वारा बांटी गई राजवंशों की सनदों को खोज के देखिए. दिल्ली में आयोजित दरबारों में शासकों की उपस्थिति को खोजिए. लुटियन की दिल्ली में बने ब्रिटिश काल के विभिन्न रियासतों के हाऊसेस के बारे में खोजिए. क्या आप इस गौरवशाली इतिहास पर गौरवान्वित होंगे ? इसमें भारत तो कहीं भी कभी भी नहीं था.

भारत की आज़ादी की लड़ाई, प्रजातंत्र की स्थापना, संविधान के बनने, लोगों को मताधिकार मिलने, ज़मींदारी की समाप्ति, प्रिवीपर्स की समाप्ति, किसान राहत एवं सब्सिडी, एस.सी/एस.टी. आरक्षण, महिला सशक्तिकरण एवम् समानता के मुद्दे आदि विषयों पर रियासतों और राजपूतों का क्या रोल रहा है, ज़रा उसे भी पढ़ लीजिये. अंग्रेज़ी साम्राज्य के गुलामी के दौर में सब बड़े राजा साहिबान इंग्लैंड जा बसे. किसान के अधिशेष से पैदा पूंजी और ख़ज़ाने को इन्होंने अपनी अय्याशी में लुटाया और आम आदमी को मिलने वाले अधिकार के प्रत्येक आंदोलन को कमज़ोर किया. क्या इस गौरवशाली इतिहास पर गर्व किया जाये ?




आम आदमी के अधिकारों की जो लड़ाई आज़ादी के संघर्ष के दौरान कांग्रेस लड़ रही थी, उससे नाराज़गी के चलते अधिकतर राजवंशों ने संघ, और भाजपा जैसी पुरातन को स्थापित करने वाले राजनैतिक दलों की स्थापना में खुलकर और छिप कर योगदान दिया ताकि पुरातन स्थापना की आड़ में इन्हें विशेष अधिकार मिलते रहें. क्या विशेषाधिकार को बचाये रखने की इस गैर प्रजातांत्रिक कोशिश पर गौरव महसूस किया जाए ?

क्या आपको आज एक भी … ग़ुलाम, खिलजी, तुग़लक़, सैय्यद, लोदी, सूरी, मुग़ल वंशज मिलता है, जो प्राचीन ऐतिहासिक गौरव के नाम पर विशेषाधिकार, विशेष इज़्ज़त, विशेष महत्व या विशेष आवभगत या गौरव का क्लेम करते मिला हो ? ऐसे वंशजों का नाम तो पाकिस्तान तक में सुनाई नहीं देता.




मोहम्मद गौरी के काल से जिन लोगों की सत्ता छिन गई थी, वे आज तक इतनी केंद्रीय सत्ताएं बदल लेने के बाद भी विशेषधिकारों और विशेष गौरव से कैसे लैस हैं, ये बात गौरव पर संदेह प्रकट करती है.

ये पैटर्न साबित करता है कि केंद्र में सत्ताएं बदलने के साथ ये उस सत्ता के साथ सेटिंग कर क्षेत्रीय सत्ता पर हमेशा अपना हक़ बनाये रखे और शोषण जारी रखे रहे वरना शक्तिशाली सत्तायों का विरोध करने वालों के तो 100 साल में नामलेवा तक कहीं खोजे नहीं मिलते !

  • फरीदी अल हसन तनवीर





Read Also –

इतिहास से – दलाली और गुंडई ही है हिदुत्व के ठेकेदारों का पेशा
इतिहास से नफरत और नफरत की राजनीति !
कांचा इलैय्या की किताबों से घबड़ाते क्यों हैं संघी-भाजपाई ?
महान टीपू सुल्तान और निष्कृट पेशवा
इतिहास बनाम इतिहास मिटाने का कुचक्र
भीमा कोरेगांवः ब्राह्मणीय हिन्दुत्व मराठा जातिवादी भेदभाव व उत्पीड़न के प्रतिरोध का प्रतीक




प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

एक वोट लेने की भी हक़दार नहीं है, मज़दूर-विरोधी मोदी सरकार

‘चूंकि मज़दूरों कि मौत का कोई आंकड़ा सरकार के पास मौजूद नहीं है, इसलिए उन्हें मुआवजा द…