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मनुस्मृति : मनुवादी व्यवस्था यानी गुलामी का घृणित संविधान (धर्मग्रंथ)

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मनुस्मृति : मनुवादी व्यवस्था यानी गुलामी का घृणित संविधान (धर्मग्रंथ)

कहने वाले तो कहते हैं कि मनुस्मृति और उसकी आज्ञाएं कब कि मर चुकी हैं, अब गड़े मुर्दे उखाडने से क्या फायदा ? लेकिन सच पूछे कि क्या वाकई मनुस्मृति मर चुकी है ? ऐसा नहीं हैं, आज भी विश्वविद्यालयों में मनुस्मृति पाठ्यपुस्तक के रूप में पढाई जाती है. जयपुर हाईकोर्ट के परिसर में आज भी मनु की मूर्ति भारत के संविधान को चिढ़ाते स्थित है. यूं तो आज नये-नये कानून बन गए हैं परन्तु दुःख कि बात है कि आज भी वास्तव में हम मनुस्मृति से ही संचालित हो रहे हैं.न जाने हम कब इस कब्र से बाहर निकलेंगे ?

हम सभी को अपने जीवन में डॉ. भदंत आनंद कौसल्यायन की लिखी पुस्तक “मनुस्मृति क्यों जलाई गयी ?” जरूर पढ़नी चाहिए  :

इससे पहले की हम मनुस्मृति क्यों जलाई गयी ? को जाने, मनुस्मृति का मकसद जान लेते हैं. मनुस्मृति संविधान इसलिए लिखा गया था कि हारे हुए बौद्ध/राक्षस/असुर/दलित फिर दोबारा संगठित होकर सर न उठा पाएं. उनका परमानेंट गुलाम बनाने का ग्रन्थ है – मनुस्मृति. आईये मनुस्मृति पर ओशो के विचार से शुरू करते हैं.




“गरीब आदमी तो क्रांति की कल्पना भी नहीं कर सकते क्योंकि उसको तो किसी भी प्रकार कि शिक्षा की अनुमति ही नहीं दी गई. उसे अपने से उपर के तीन वर्णों से किसी भी संपर्क से मना कर दिया गया. वो शहर के बाहर रहता है. वो शहर के अंदर नहीं रह सकता. गरीब लोगों के कुंए इतने गहरे नहीं हैं. वे कुंए बनाने में ज्यादा पैसा नहीं डाल सकते हैं. व्यवसायियों के पास अपने बड़े और गहरे कुंए है और राजा के पास अपने कुंए है ही. अगर कभी बारिश नहीं आए और उसके कुंए सूख रहे होते हैं, तो भी शूद्र को अन्य किसी के कुएं से पानी लेने की अनुमति नहीं है. उसको किसी नदी से पानी लाने के लिए दस मील दूर जाना पड़ सकता है. वो इतना भूखा है कि दिन में एक बार के भोजन का प्रबंधन करना भी मुश्किल है. उसको कोई पोषण नहीं मिलता. वे कैसे क्रांति के बारे में सोच सकते हैं ? वह यह जानता है कि कि यही उसकी किस्मत है. पुजारी ने उनको यही बताया है. यही उनकी मानसिकता में जड़ कर गया है. “ईश्वर ने आप को अपने पर भरोसा दिखाने का मौका दे दिया है. यह गरीबी कुछ भी नहीं है. यह कुछ वर्षों के लिए ही है. आप वफादार रह सकते हैं तो आपको महान फ़ल मिलेगा.”

तो एक तरफ़ तो पुजारी किसी भी परिवर्तन के खिलाफ उन्हें ये उपदेश देता जाता है और दूसरी तरफ वे परिवर्तन कर भी नहीं सकते क्यांकि वे कुपोषण का शिकार हैं. और आप के लिये एक बात समझने की है कि कुपोषित व्यक्ति बुद्धि बल खो देता है. बुद्धि बल वहीं खिलता है जहां वो सब कुछ होता है, जिसकी शरीर को जरूरत है. इतना ही नहीं इसके साथ-साथ ‘कुछ और’ भी चाहिए. ये जो ‘कुछ और’ और है, यही तो बुद्धि हो जाता है. बुद्धि एक लक्जरी है. एक दिन में केवल एक बार भोजन करने वाला व्यक्ति के पास कुछ भी नहीं है. बुद्धि विकसित करने के लिए उसके पास कोई ऊर्जा नहीं है.




यह बुद्धिजीवी वर्ग है जो विचारों, नए दर्शन, जीवन के नए तरीके, भविष्य के लिए नए सपने बनाता है लेकिन यहां बुद्धिजीवी तो शीर्ष पर पहले से ही है. वास्तव में भारत में जबरदस्त महत्व का काम किया गया है. विश्व का कोई अन्य देश इतना सक्षम नहीं है कि इस तरह के किसी वैज्ञानिक तरीके से यथास्थिति बनाए रखें. और आप हैरान होंगे ये एक आदमी ने किया, वो मनु था. हजारों साल बाद उसके सूत्र अभी भी वास्तव में वैसे-के-वैसे पालन किये जा रहे हैं.” ओशो रजनीश. (Book Title : The Lsat Testament, Vol- 2- Chepter 6, The Intelligent Way.)

जिस महापुरुष ने अपने ग्रंथों को रखने के लिए ‘राजगृह’ जैसा विशाल भवन बनवाया था, उसी ने 25 दिसंबर, 1927 के दिन एक पुस्तक जला दी थी. आखिर क्यों? जिस महापुरुष के पास लगभग तीस हज़ार से भी अधिक मूल्य की निजी पुस्तकें थीं, उसी ने एक दिन एक पुस्तक जला दी थी. आखिर क्यों ?

जिस महापुरुष का पुस्तक-प्रेम संसार के अनेक विद्वानों के लिए नहीं, अनेक पुस्तक-प्रकाशकों और विक्रेताओं तक के लिए आश्चर्य का विषय था, उसी ने एक दिन एक पुस्तक जला दी थी. आखिर क्यों ? उस पुस्तक का नाम क्या था ? उसका नाम था ‘मनु-स्मृति’. आइये हम जाने कि वह क्यों जलाई गयी ?




इस पुस्तक में ऐसा हलाहल विष भरा है कि जिसके चलते इस देश में कभी राष्ट्रीय एकीकरण का पौधा कभी पुष्पित और पल्लवित नहीं हो सकता ! वैसे तो इस पुस्तक में सृष्टि की उत्पत्ति की जानकारी भी दी गयी है लेकिन असलियत यह सब अज्ञानी मन के तुतलाने से अधिक कुछ भी नहीं हैं. मनुस्मृति की इतने बढ़-चढ़ कर ज्ञान की डींगें बघारी गयी है, उसका असली उद्देश्य जातिवाद का निर्माण और स्त्री को निंदनीय तथा निम्न बताना भर है. इसमें निहित आदेश निर्लज्जता से ब्राह्मणों के हित में हैं.

कहने वाले तो कहते हैं कि मनुस्मृति और उसकी आज्ञाएं कब कि मर चुकी हैं, अब गड़े मुर्दे उखाडने से क्या फायदा ? लेकिन सच पूछे कि क्या वाकई मनुस्मृति मर चुकी है ? ऐसा नहीं हैं, आज भी विश्वविद्यालयों में मनुस्मृति पाठ्यपुस्तक के रूप में पढाई जाती है. जयपुर हाईकोर्ट के परिसर में आज भी मनु की मूर्ति भारत के संविधान को चिढ़ाते स्थित है. यूं तो आज नये-नये कानून बन गए हैं परन्तु दुःख कि बात है कि आज भी वास्तव में हम मनुस्मृति से ही संचालित हो रहे हैं.न जाने हम कब इस कब्र से बाहर निकलेंगे ?

प्रश्न है कि डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर ने आखिर यहीं पुस्तक क्यों जलाई ? इसका उत्तर साफ़ है कि जिस कारण महात्मा गांधी ने अनगिनत विदेशी कपड़े जलवाये थे. धर्मशास्त्र माने जाने वाले इस कुकृत्य को नष्ट करने के लिए क्या इसे जलाना अनिवार्य नहीं था ?




कहने वाले कहते हैं कि आज मनुस्मृति को कौन जानता और मानता है, इसलिए अब मनुस्मृति पर हाथ धो कर पड़ने से क्या फायदा ? यह एक मरे हुए सांप को मारना है. हमारा कहना है कि कई सांप इतने जहरीले होते हैं कि उन्हें सिर्फ मारना ही पर्याप्त नहीं समझा जाता बल्कि उसके मृत शरीर से निकला जहर किसी को हानि न पहुंचा दे इसलिए उसे जलाना भी पड़ता है.

वैसे मनुस्मृति जैसी घटिया किताब कि तुलना बेचारे सांप से करना मुझे अच्छा नहीं लग रहा. बेचारे सांप तों यूँ ही बदनाम हैं, और अधिकांश तो यूं ही मार दिए जाते हैं. फिर भी सांप के काटने से एकाध आदमी ही मरता हैं जबकि मनुस्मृति जैसे ग्रन्थ तो दीर्घकाल तक पूरे समाज को डस लेते हैं. क्या ऐसे कृतियों की अंत्येष्टि यथासंभव किया जाना अनिवार्य नहीं हैं ?

वैसे मनुस्मृति के अलावा भी हिंदुओं की तमाम स्मृतियाँ और ग्रन्थ में शूद्रों (आज के ओबीसी और दलित) तथा महिलाओं को हेय दृष्टि से देखते हुए उन्हें ताड़न का अधिकारी बताती है. बाबासाहेब ने 1927 में जो मनुस्मृति जलाई थी वह अकेली एक पुस्तक से घृणा होने के कारण नहीं, बल्कि इसे अन्य तमाम स्मृतियों और किताबों का प्रतिनिधि ग्रन्थ मानकर की थी. लेकिन आश्चर्य तो इस बात का है कि भारत सरकार आज तक इस राष्ट्र-विरोधी किताब पर प्रतिबन्ध लगाकर इसे जब्त नहीं कर रही.




मनुवादी व्यवस्था और शुद्र

मनुवादी अथवा ब्राह्मणवादी व्यवस्था के अधीन रामचरित मानस, व्यास स्मृति और मनुस्मृति प्रमाणित करती है कि भारत का समस्त पिछड़ा वर्ग एवं अछूत वर्ग शूद्र और अतिशूद्र कहलाता है. जैसे कि तेली, कुम्हार, चाण्डाल, भील, कोल, कल्हार, बढई, नाई, ग्वाल, बनिया, किरात, कायस्थ, भंगी, सुनार इत्यादि. मनुविधान अर्थात मनुस्मृति में उक्त शूद्रों के लिए मनु भगवान द्वारा उच्च संस्कारी कानून बनाये गए हैं, जिनको पढ़ कर उनका अनुसरण करने से उक्त समाज के सभी लोगों का उद्धार हो जायेगा और हमारा भारत पुनः सोने की चिड़िया बन जायेगा. आपके समक्ष मनु भगवान के अमृतमयी क़ानूनी वचन पेश हैं.


    • जिस देश का राजा शूद्र अर्थात पिछड़े वर्ग का हो, उस देश में ब्राह्मण निवास न करें क्योंकि शूद्रों को राजा बनने का अधिकार नहीं है.
    • राजा प्रातःकाल उठकर तीनों वेदों के ज्ञाता और विद्वान ब्राह्मणों की सेवा करें और उनके कहने के अनुसार कार्य करें.
    • जिस राजा के यहां शूद्र न्यायाधीश होता है, उस राजा का देश कीचड़ में धंसी हुई गाय की भांति दुःख पाता है.
    • ब्राह्मण की सम्पत्ति राजा द्वारा कभी भी नहीं ली जानी चाहिए, यह एक निश्चित नियम है, मर्यादा है लेकिन अन्य जाति के व्यक्तियों की सम्पत्ति उनके उत्तराधिकारियों के न रहने पर राजा ले सकता है.
    • नीच वर्ण का जो मनुष्य अपने से ऊंचे वर्ण के मनुष्य की वृत्ति को लोभवश ग्रहण कर जीविकायापन करे तो राजा उसकी सब सम्पत्ति छीनकर उसे तत्काल निष्कासित कर दे.
    • ब्राह्मणों की सेवा करना ही शूद्रों का मुख्य कर्म कहा गया है. इसके अतिरक्त वह शूद्र जो कुछ करता है, उसका कर्म निष्फल होता है.
    • यदि कोई शूद्र किसी द्विज को गाली देता है तब उसकी जीभ काट देनी चाहिए क्योंकि वह ब्रह्मा के निम्नतम अंग से पैदा हुआ है.




    • यदि शूद्र तिरस्कारपूर्वक उनके नाम और वर्ण का उच्चारण करता है, जैसे वह यह कहे ‘देवदत्त तू नीच ब्राह्मण है’, तब दश अंगुल लम्बी लोहे की छड़ उसके मुख में कील दी जाए.
    • निम्न कुल में पैदा कोई भी व्यक्ति यदि अपने से श्रेष्ठ वर्ण के व्यक्ति के साथ मारपीट करे और उसे क्षति पहुंचाए, तब उसका क्षति के अनुपात में अंग कटवा दिया जाए.
    • ब्रह्मा ने शूद्रों के लिए एक मात्र कर्म निश्चित किया है, वह है – गुणगान करते हुए ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य की सेवा करना.
    • शूद्र यदि ब्राह्मण के साथ एक आसन पर बैठे, तब राजा उसकी पीठ को तपाए गए लोहे से दगबाकर अपने राज्य से निष्कासित कर दे.
    • यदि शूद्र गर्व से ब्राह्मण पर थूक दे, तब राजा दोनों ओंठों पर पेशाब कर दे. तब उसके लिंग को और अगर उसकी ओर अपान वायु निकाले तब उसकी गुदा को कटवा दे .
    • यदि कोई शूद्र ब्राह्मण के विरुद्ध हाथ या लाठी उठाए, तब उसका हाथ कटवा दिया जाए और अगर शूद्र गुस्से में ब्राह्मण को लात से मारे, तब उसका पैर कटवा दिया जाए.
    • इस पृथ्वी पर ब्राह्मण-वध के समान दूसरा कोई बड़ा पाप नहीं है. अतः राजा ब्राह्मण के वध का विचार मन में भी न लाए.
    • शूद्र यदि अहंकारवश ब्राह्मणों को धर्मोपदेश करे तो उस शूद्र के मुंह और कान में राजा गर्म तेल डलवा दें.




    • राजा बड़ी-बड़ी दक्षिणाओं वाले अनेक यज्ञ करें और धर्म के लिए ब्राह्मणों को स्त्री, गृह-शय्या, वाहन आदि भोग साधक पदार्थ तथा धन दे.
    • जानबूझ कर क्रोध से यदि शूद्र ब्राह्मण को एक तिनके से भी मारता है, वह 21 जन्मों तक कुत्ते-बिल्ली आदि पापश्रेणियों में जन्म लेता है.
    • ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न होने से और वेद के धारण करने से धर्मानुसार ब्राह्मण ही सम्पूर्ण सृष्टि का स्वामी है.
    • शूद्र को भोजन के लिए झूठा अन्न, पहनने को पुराने वस्त्र, बिछाने के लिए धान का पुआल और फ़टे पुराने वस्त्र देना चाहिए.
    • बिल्ली, नेवला, नीलकण्ठ, मेंढक, कुत्ता, गोह, उल्लू, कौआ किसी एक की हिंसा का प्रायश्चित शूद्र की हत्या के प्रायश्चित के बराबर है अर्थात शूद्र की हत्या कुत्ता-बिल्ली की हत्या के समान है.
    • शूद्र लोग बस्ती के बीच में मकान नहीं बना सकते. गांव या नगर के समीप किसी वृक्ष के नीचे अथवा श्मशान पहाड़ या उपवन के पास बसकर अपने कर्मों द्वारा जीविका चलावें.
    • ब्राह्मण को चाहिए कि वह शूद्र का धन बिना किसी संकोच के छीन लेवे क्योंकि शूद्र का उसका अपना कुछ नहीं है. उसका धन उसके मालिक ब्राह्मण को छीनने योग्य है.
    • धन संचय करने में समर्थ होता हुआ भी शूद्र धन का संग्रह न करें क्योंकि धन पाकर शूद्र ब्राह्मण को ही सताता है.




    • राजा वैश्यों और शूद्रों को अपना-अपना कार्य करने के लिए बाध्य करने के बारे में सावधान रहें क्योंकि जब ये लोग अपने कर्तव्य से विचलित हो जाते हैं, तब वे इस संसार को अव्यवस्थित कर देते हैं.
    • शूद्रों का धन कुत्ता और गदहा ही है. मुर्दों से उतरे हुए इनके वस्त्र हैं. शूद्र टूटे-फूटे बर्तनों में भोजन करें. शूद्र महिलाएं लोहे के ही गहने पहने.
    • यदि यज्ञ अपूर्ण रह जाये तो वैश्य की असमर्थता में शूद्र का धन यज्ञ करने के लिए छीन लेना चाहिए.
    • दूसरे ग्रामवासी पुरुष जो पतित, चाण्डाल, मूर्ख, धोबी आदि अंत्यवासी हो उनके साथ द्विज न रहें. लोहार, निषाद, नट, गायक के अतिरिक्त सुनार और शस्त्र बेचने वाले का अन्न वर्जित है.
    • शूद्रों के समय कोई भी ब्राह्मण वेदाध्ययन में कोई सम्बन्ध नही रखें, चाहे उस पर विपत्ति ही क्यों न आ जाए.
    • स्त्रियों का वेद से कोई सरोकार नहीं होता. यह शास्त्र द्वारा निश्चित है. अतः जो स्त्रियां वेदाध्ययन करती हैं, वे पापयुक्त हैं और असत्य के समान अपवित्र हैं, यह शाश्वत नियम है.
    • अतिथि के रूप में वैश्य या शूद्र के आने पर ब्राह्मण उस पर दया प्रदर्शित करता हुआ, अपने नौकरों के साथ भोज कराये.




  • शूद्रों को बुद्धि नहीं देना चाहिए अर्थात उन्हें शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार नहीं है. शूद्रों को धर्म और व्रत का उपदेश न करें.
  • जिस प्रकार शास्त्रविधि से स्थापित अग्नि और सामान्य अग्नि, दोनों ही श्रेष्ठ देवता हैं, उसी प्रकार ब्राह्मण चाहे वह मूर्ख हो या विद्वान दोनों ही रूपों में श्रेष्ठ देवता है.
  • शूद्र की उपस्थिति में वेद पाठ नहीं करना चाहिए. ब्राह्मण का नाम शुभ और आदर-सूचक, क्षत्रिय का नाम वीरता-सूचक, वैश्य का नाम सम्पत्ति-सूचक और शूद्र का नाम तिरस्कार-सूचक हो.
  • दस वर्ष के ब्राह्मण को 90 वर्ष का क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र पिता समान समझ कर उसे प्रणाम करे.
  • मनु के उपवर्णित विधानों से अनुमान लगाया जा सकता है कि शूद्रों-अतिशूद्रों पर किस प्रकार और कितने अमानवीय अत्याचार हुए हैं.





इस प्रकार के क्रूर और रोंगटे खड़े कर देने वाले विधान लिखे गए हैं. मनु के इन अमानवीय विधानों से भारत का हाथी जैसा मूल निवासी बहुसंख्यक समाज मानव होते हुए भी पशु के समान जीवन जीने को मजबूर हो गया. मनु के आर्थिक प्रतिबंधों के कारण शूद्र और अतिशूद्र समाज मरे हुए जानवरों के सड़े से सड़े मांस को नोचकर खाने को मजबूर हो गए. मनु द्वारा ब्राह्मणों को दिए गए विशेषाधिकारों ने ब्राह्मणों में शूद्रों और अछूतों के प्रति निर्ममता और अमानवीयता का भाव भर दिया. मनुविधान में वर्णित मूर्ख, गवांर और कुकर्मी ब्राह्मण भी मूल निवासियों पर आधिपत्य स्थापित कर उन्हें जीवन भर गुलाम बनाने के लिए उनको कई हजार जातियों में बांटा ( शूद्र अर्थात पिछड़ी जातियां – 3742 और अति शूद्र एससी-एसटी – 1500 और 1000 ).

ब्राह्मणों ने मूल निवासियों को न केवल जातियों में विभक्त किया बल्कि उनमें ऊंच-नीच का भेद-भाव भी पैदा किया ताकि इन जातियों में आपस में फ़ूट रहे और वे उन पर राज करते रहे. महामानव महान सामाजिक क्रांतिकारी ज्योतिराव फुले का कहना था, ‘‘अंग्रेजों और मुसलमानों ने तो हमारे शरीर को ही गुलाम बनाया परन्तु ब्राह्मणों ने तो हमारी चेतना को ही गुलाम बना डाला.’’




इस प्रकार मनु के विधान के फलस्वरुप समाज में जातिवाद, ऊंच-नीच, छुआछूत, पैतृक-पौरोहिताई, वर्णवाद, कर्मकाण्ड का वातावरण फ़ैल गया. इससे केवल ब्राह्मणों को ही लाभ हुआ तथा शूद्रों का घोर अहित हुआ. उनमें हीनता का भाव पनप गया. ब्राह्मणों द्वारा भाग्यवाद, पुनर्जन्मवाद और ईश्वरवाद के बिछाये जाल में फंस कर बहुजन अपने मान और सम्मान के प्रति संवेदना ही नष्ट कर बैठे. उनमें एक अच्छा इंसान बनने की चाहत समाप्त हो गई. यह सब मनु द्वारा रचित मनुस्मृति के कारण हुआ.

मनुवाद विध्वंसक, अपराधिक प्रवृत्तियुक्त, असमानता पर आधारित, लालची एवं स्वार्थी मनोवृत्ति वाला, हिंसक एवं बेईमान, क्रूर, उत्पीड़क, निकम्मा तथा दूसरों का घातक शत्रु है. इस व्यवस्था ने इस देश के मूल निवासियों को शूद्र और अतिशूद्र बना कर उन्हें लम्बे अरसे तक जानवर की जिंदगी व्यतीत करने को मजबूर किया. मनुवाद हमेशा समाज को दिग्भ्रमित करता है तथा बहकाता है. यह बहुजनों और महिलाओं को हमेशा हतोत्साहित करता है. यह घोर भौतिकवादी और अवसरवादी है.




बहुजन समाज की उन्नति और मुक्ति के लिए मनुवाद को पुनः दफनाने की जरूरत है. क्या हिन्दुवादी अर्थात ब्राह्मणवादी लोग ये बताने का कष्ट करेंगे कि उपयुर्क्त् मनु के क्रूर विचारों और विधानों से क्या पिछड़े वर्ग के लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत नही होती हैं ? क्या उनको अपने देश में एक सम्मान और मौलिक अधिकारों के साथ जीने का अधिकार नहीं है ? क्या इससे हिन्दू धर्म की आस्था को ठेस नहीं पहुंचती है ? क्या विचारधारा से हिंदुओं में फ़ूट उत्पन्न नहीं होती है ?

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