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अफसोस है इस दोगलेपन पर

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अफसोस है इस दोगलेपन पर

अलीगढ़ वनाम लखनऊ

लखनऊ के हत्यारे पुलिस वालों का कहना है उन्होंने आत्मरक्षा में गोली चलाई जिसमें विवेक मारा गया, यही बात अलीगढ़ की हत्यारी पुलिस भी कह रही है कि जवाबी कार्यवाई में दोनों बदमाश मारे गए. देश भर में रोज़ ही दर्जनों फर्जी एनकाउंटर होते हैं और हर जगह पुलिस का यही रटा रटाया जवाब होता है. पत्रकार, स्वनाम धन्य बुद्धिजीवी तथा स्वघोषित संत महोदय कृप्या मुझे भी वह फार्मूला बताइये जिससे आप विवेक को निर्दोष मानकर विलख उठते हैं और बाकी दूसरे मामलों में चुप रहते हैं. आप कैसे तय कर लेते हैं कि अलीगढ़ की पुलिस सम्मान के लायक है और लखनऊ की पुलिस नृशंस हत्यारी है अपराधी है ? कृप्या बताइये आपने कैसे तय कर लिया लखनऊ कांड का मृतक निर्दोष है और अलीगढ़ के मृतक अपराधी हैं ?

चलिए मान लेता हूंं कि अलीगढ़ के मृतक अपराधी थे, मान लेता हूंं कि इशरत जहांं आतंकवादी थी, मान लेता हूंं के बाटला हाउस के मृतक आतंकवादी थे मगर यह तो बताइए कि उन्हें अपराधी या आतंकवादी घोषित किस अदालत ने किया था ? चलिए मान लेता हूंं किसी अदालत ने उन्हें अपराधी घोषित भी किया था सजा सुनाई भी थी तो पुलिस वालों को किसने यह अधिकार दिया कि वह जब जिसे चाहे सूट कर के एनकाउंटर का नाम दे दें ?

क्या आप नहीं जानते एनकाउंटर की असलियत क्या होती है … क्या आप सच में इतने भोले हैं ….क्या आपको पता नहीं है कि सारे के सारे एनकाउंटर फर्जी होते हैं यहां तक कि घायल होने वाले पुलिस भी ड्रामा करते हैं. फिर किस बुनियाद पर आप डबल स्टैंडर्ड अपनाते हैं ? आपके पास वह कौनसा चश्मा है जिससे आप किसी को अपराधी देख लेते हैं और किसी को मासूम देख लेते हैं ?

अलीगढ़ का फर्जी एनकाउंटर आपने अपनी आंखों से टीवी स्क्रीन पर देखा कि पुलिस वाले किस तरह हंसते खेलते न्यूज़ चैनलों के कैमरों के सामने पत्रकारों के साथ जाते हैं और 2 लोगों को मार गिराते हैं. उसके बाद भी आपने एक दफा मृतकों के प्रति संवेदना नहीं जताई, मृतकों के परिजनों के प्रति संवेदना नहीं जताई. हद तो यहांं तक हो गई कि हत्यारी पुलिस का बाकायदा सम्मान किया जा रहा है, उन्हें फूल मालाओं से लादा जा रहा है.

इतना ही नहीं जब कुछ स्वयंसेवी लोगों ने मृतकों के परिजनों से मुलाकात की, उनकी आवाज को उठाने का आश्वासन दिया तो अलीगढ़ की उसी पुलिस ने उन स्वयंसेवी लोगों को भीड़ द्वारा पिटवाने का पूरा इंतजाम कर दिया. जब वह लोग वहाँ से किसी तरह बच बचाकर दिल्ली पहुंच गए तो उन लोगों पर अपहरण का केस दर्ज कर दिया. वह भी उस औरत के अपहरण का केस दर्ज कर दिया जिसका बेटा पुलिस की गोली से मारा गया था, अपहरण का आरोप उनपर लगा दिया जो लोग उसकी आवाज़ उठाने उसकी मदद करने गए थे.

आप जानते हैं पुलिस ने या कार्रवाई क्यों की ….ताकि उस मृतक की बूढ़ी गरीब मां अपने बेटे के लिए इंसाफ की मांग न कर सके दिल्ली ना पहुंच सकें. मीडिया को संबोधित ना कर सके. फाइनली वह किसी तरह दिल्ली पहुंची. उसने प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपनी बात रखी. उसने यह भी बताया कि मेरा अपहरण नहीं हुआ है. मैं खुद दिल्ली आई हूंं अपने बेटे के लिए इंसाफ मांगने. उसका कहना है कि उसके बेटे को 2 दिन पहले पुलिस ने गिरफ्तार किया था और उसके बाद फर्जी एनकाउंटर में मार दिया (आपकी जानकारी के लिए बताता चलूंं कि उन दोनों पर इसके पहले से कोई अपराध दर्ज नहीं है) और पुलिस ने जिस साधू की हत्या का दोषी उन लड़कों को बताया है उस साधु के परिजनों का भी यही कहना है कि पुलिस ग़लत कार्यवाही कर रही है. उस press conference में आप जैसे दर्जनों पत्रकार बुद्धिजीवी भी मौजूद थे. मुझे बताइए कितने लोगों ने उसे अपने चैनल पर दिखाया ? अपने अखबार में छपा? कितने लोगों ने सोशल मीडिया पर लिखा ? अगर नहीं लिखा तो क्यों नहीं लिखा ? सिर्फ विवेक के लिए कि आपका विधवा विलाप यदि सांप्रदायिकता नहीं है यदि जातिवाद नहीं है, यदि भेदभाव नहीं है तो और क्या है ?

मैं कल सुबह से मैं चिल्ला रहा था कि पहलू खान के तीनों बेटों पर और उसके केस में दो गवाहों पर और एक्टिविस्ट तथा कानूनविद जनाब असद हयात पर गोलीबारी की गई है. पर आपके कानों पर जूं नहीं रेंगी कि वह पहलू खान जिसे साल भर पहले पीट-पीटकर मार दिया गया, जिसके आरोपियों को अदालत ने छोड़ दिया, जबकि वीडियो में सारी चीजें साफ थी, पुलिस ने उनका समर्थन किया. उन्हें सहयोग दिया. सत्ता उनके साथ खड़ी रही. आज उनके बेटों पर भी हमला हो गया. मगर आपको पीड़ा थी तो सिर्फ विवेक की थी पहलू खान और उनके परिजनों के लिए नहीं थी. क्या आप बताना पसंद करेंगे आपका यह दोगलापन क्यों है ?

मुझे किसी जाति से घृणा, किसी धर्म से नफरत कभी नहीं रही मुझे ब्राह्मणों से भी कोई शिकायत नहीं है इसलिए यदि मैं विवेक का नाम लेकर के अलीगढ़ वालों का सवाल पूछ रहा हूंं तो इसमें ग़लत क्या है ? इसे जातिवाद आप समझे अलग बात है, मेरा मकसद जातिवाद नहीं है. मुझे उतना ही दुख विवेक तिवारी का है जितना दुख आपको इशरत जहां के लिए है. जितना दुख आपको अलीगढ़ में मारे गए लड़कों के लिए है. आपको दुख हो या ना हो मुझे दोनों के लिए है मगर फिर यहीं आकर के सवाल उठता है, जो सुविधाएं विवेक तिवारी की विधवा के लिए मिल रही है, जो मुआवजा विवेक तिवारी को मिल रहा है, वहीं मुआवजा अलीगढ़ वालों को क्यों नहीं मिल रहा है ? जो सहानुभूति विवेक तिवारी के लिए है वही सहानुभूति अलीगढ़ वालों के लिए क्यों नहीं है ? … है कोई जवाब ?

मैं जातिवादी कभी नहीं रहा  मैंने कभी किसी के मरने पर अट्टहास नहीं किया  मगर मैं आपका दोगलापन देखकर आहत हूंं और आपसे जानना चाहता हूंं कि बताइए विवेक अन्य मृतकों से कैसे सर्वोपरि था ? देश हित में विवेक का ऐसा कौन सा योगदान था जो अन्य मृतकों का नहीं था ? यदि विवेक की पत्नी को मुआवजा ना मिलता शायद वह तब भी सर्वाइव कर जाती है, मगर क्या आपने सोचा के अलीगढ़ में जो दो लड़के मारे गए उनके परिजन कैसे सरवाइव करेंगे ? उनके पास तो केस लड़ने का भी खर्चा नहीं है यदि आपका यह भेदभाव वाला बर्ताव ब्राह्मणवाद नहीं है तो और क्या है ? विवेक तिवारी में मुस्तकीम में धर्म और जाति के फर्क के अलावा दूसरा फर्क क्या है ?

मुझे दुख है कि विवेक तिवारी जैसे होनहार बेलगाम पुलिस का शिकार हो गए, मगर मैं शुक्रगुजार हूंं विवेक तिवारी का कि उनकी बदौलत देश को यह पता चला कि पुलिस फर्जी एनकाउंटर भी करती है. पुलिस मनमर्जी भी करती है वरना पुलिस की गोली से मरने वाले हमेशा या तो आतंकवादी होते हैं, नक्सलवादी होते हैं और आप जैसे सभ्य लोगों की नजर में वह मरने के ही लायक होते हैं.

बंधु, आप आज आहत हुए हैं, हम रोज ही आहत होते हैं. हमने तो यहां तक देखा है कि लोग विकेट गिनते हैं. सफाई अभियान कहते हैं. रामराज कहते हैं, काश कि आप हमारा भी दर्द समझ पाते !

खैर छोड़िए, आप बताइए आप एनकाउंटर को किस तरह जस्टिफाई करते हैं ? जब हम आम नागरिकों से उम्मीद की जाती है कि वह कानून का संविधान का और अदालत का सम्मान करेंगे, उसमें आस्था रखेंगे, भरोसा रखेंगे, फिर यही आस्था, यही सम्मान, यही भरोसा पुलिस वाले क्यों नहीं करते । क्यूंं खुद ही जज बन कर के किसी को भी गोलियों से भून देते हैं और बदले में सरकार से वीरता का इनाम ले लेते हैं. प्रमोशन ले लेते हैं. उनके सीने पर मेडल लग जाता है और आप उनके लिए ताली बजाते हैं ?

सुनिए …… मुझे शिकायत पुलिस वालों से नहीं है, मुझे शिकायत आपके दोगलेपन से है. अगर आपके दोगलेपन पर सवाल पूछना सांप्रदायिकता है तो हांं भाई साहब, मैं सांप्रदायिक हूंं.  यदि आप का दोगलापन धर्मनिरपेक्षता है, यदि आप का दोगलापन आपकी बौद्धिकता है, यदि आप का दोगलापन आपकी प्रगतिशीलता है तो मेरी बला से अपनी बौद्धिकता, अपनी पर गतिशीलता, अपनी धर्मनिरपेक्षता अपने पिछवाड़े में डाल लीजिए, मुझे आपकी जरूरत नहीं है. यदि मेरा सवाल पूछना आपको आहत करता है तो मेरी बला से भाड़ में जाइए, अनफ्रेंड कर दीजिए, मुझे भी आपकी जरूरत नहीं है.

यदि कोई जाति या धर्म देखकर विवेक की मौत का जश्न मना रहा है, खुशी जता रहा है तो यकीनन मेरी नजर में वह राक्षस है. परंतु याद कीजिए जब मध्य प्रदेश में 8 मुसलमान नौजवानों को पुलिस ने गोलियों से भून दिया था, यहांं तक कि जिसकी सांसे चल रही थी उसे हिला डुलाकर देखा और फिर से गोली मार दी. याद कीजिए उस वक्त धर्म विशेष के लोगों का क्या व्यवहार था, उस वक्त लोग किस तरह के स्टेटस लगाते थे. लोग किस तरह के कमेंट करते थे. याद कीजिए उस वक्त मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने क्या बयान दिया था. क्या तब आपको नहीं लगा कि उस एनकाउंटर की जांच होनी चाहिए ? क्या तब आपके दिमाग में यह ख्याल नहीं आया कि जिन लोगों को पहाड़ी पर ले जाकर के मारा गया है उनके परिजनों पर क्या बीती होगी ? आपसे पुलिस ने कह दिया कि जेल से भागे थ. पुलिस पर गोली चला रहे थे. जवाबी कार्रवाई में मारे गए, आपने मान लिया. मगर क्या आपने एक बार भी सोचा कि उन लोगों को जेल से भागने की क्या जरूरत थी जबकि वह जल्द ही बाहर निकलने वाले थे ? नहीं सोचा तो क्यों नहीं सोचा ? उस वक्त जो लोग उनकी मौत पर अट्हास कर रहे थे याद कीजिए उनके साथ आपने कैसा व्यवहार किया था ? मैं वादा करता हूंं, मेरी लिस्ट में जो भी व्यक्ति विवेक की मौत पर या किसी की भी मौत पर अट्हास करता मिलेगा, मैं उसे अनफ्रेंड कर दूंंगा. सिर्फ अनफ्रेंड नहीं करूंंगा बल्कि उसे खरी खोटी भी सुनाऊंगा.

मैं जानता हूंं विवेक का परिवार, उसकी पत्नी भाजपाई हैं. वह भाजपा को सिर्फ इसी बुनियाद पर चुनते थे क्योंकि उन्हें मुसलमानों से नफरत है. पर यकीन मानिए उसके बावजूद मुझे विवेक की मौत पर बेहद अफसोस है मगर उससे भी ज्यादा अफसोस है आप के दोगलेपन पर.

  • अबरार खान 
    सौशल मीडिया पर सक्रिय चेतनशील बुद्धिजीवी

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