छत्तीसगढ़ में जब गृहमंत्री अमित शाह एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में माओवादियों को छत्तीसगढ़ समेत पूरे देश से 31 मार्च, 2026 तक समाप्त कर देने का घोषणा कर रहे थे तब वे यह भूल जाते हैं कि वे माओवादियों को नहीं बल्कि इस देश की स्वाभिमानी जनता तो ख़त्म करने की बात कर रहे हैं, जिसने हर तरह की ग़ुलामी के पट्टे को पहनने से न केवल इंकार किया था, बल्कि अंग्रेज़ी ग़ुलामी के खिलाफ भी सशस्त्र विद्रोह या ग़ैर सशस्त्र विद्रोह को नेतृत्व दिया था.
2022 के बाद से, छत्तीसगढ़ सरकार ने 85 प्रतिशत खानों को निजी क्षेत्र को पट्टे पर दिया है, जिनमें अधिकतर अडानी, एल एंड टी, टाटा, जिंदल हैं. 50 से अधिक वर्षों में ‘विकास परियोजनाओं’ के लिए यहां लगभग 50 मिलियन लोग विस्थापित हुए हैं. यह हमारे अधिकारों और संस्कृति की पूरी तरह से लूट है. विद्रोही, युवा और बच्चे अपने जल-जंगल-ज़मीन और जनताना सरकार की रक्षा के लिए आदिवासी संघर्ष के साथ अडिग खड़े हैं.
आज जब अंग्रेजों की चाटुकारिता में अपना योगदान देने और क्रांतिकारियों के खिलाफ जासूसी करने वाले आरएसएस के एजेंट जब एक बार फिर देश की स्वाभिमानी जनता को ग़ुलामी की ज़ंजीरों में जकड़ने के लिए लाखों की तादाद में भाड़े के सिपाहियों को हत्या करने की खुली छूट देकर छत्तीसगढ़ के जंगलों में हुला दिया है और हज़ारों लोगों की लाशों से ज़मीन पाट दिया है. तब वह कैसे सोच लिया कि वह इस देश की स्वाभिमानी जनता को कुचल डालेंगे, उनकी लाशों से ज़मीन पाट देंगे और लोग चुपचाप बैठ रहेंगे ?
पश्चिम बर्धमान के विभिन्न अधिकार एवं मजदूर संगठनों द्वारा छत्तीसगढ़ में चल रहे नरसंहार एवं देश भर में स्वदेशी लोगों के जल-जंगल-जमीन पर डकैती के खिलाफ लगभग एक सौ लोगों की उपस्थिति में आज दुर्गापुर के प्राणकेन्द्र सिटी सेंटर में विरोध सभा आयोजित किया गया. सभा के वक्ताओं ने एक तरफ विकास के नाम पर भारतीय खनिज संसाधनों को कॉर्पोरेट लुटेरों को सौंपने का विरोध किया, दूसरी तरफ आदिवासी निकेश यज्ञ ने ऑपरेशन कागर बंद करने की मांग की.
देशभर में मोदी-शाह की सरकार के इस नरसंहार के खिलाफ न केवल आम नागरिकों की आवाज़ ही बुलंद होने लगी है अपितु शासक वर्गों के बीच भी घबराहट फैल गई है. यही कारण है कि आॉपरेशन संकल्प चलाकर माओवादियों को ख़त्म करने करा सपना देखने वाले छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री और गृह मंत्री विजय शर्मा द्वारा समाचार माध्यमों में यह कहा जा रहा है कि छत्तीसगढ़ तेलंगाना बॉर्डर पर बीजापुर में ‘संकल्प’ नामक कोई नक्सल ऑपरेशन नहीं चलाया जा रहा है. ये भ्रामक है.
विजय शर्मा ने कहा – ‘मैं इस बात का पूर्णतः खंडन करता हूं कि संकल्प नाम का कोई भी अभियान छत्तीसगढ़ की पुलिस अथवा संयुक्त टीम चला रही है. इसके माध्यम से होने वाली बाकी बातों की जानकारी भी गलत है. इसमें जो 22 नक्सलियों के शव बरामद होने का आंकड़ा दिया गया है यह आंकड़ा भी सही नहीं है. इस आंकड़े से पृथक भी बहुत सारी बातें हैं. संकल्प नाम का कोई नक्सल ऑपरेशन नहीं चलाया जा रहा है. किसी भी सोर्स से ये जानकारी मिली तो इसे ना मानें.’
इसक साथ ही 20 दिनों से कारेगुट्टा की पहाड़ियों को 26 हज़ार पालिसियों द्वारा घेरकर माओवादियों को ख़त्म करने की घृणित कोशिश करने वाली ऑपरेशन संकल्प का समापन हो गया, जिसका सरकारी खातों में अब कोई अस्तित्व नहीं रहा लेकिन ज़मीन पर इसका असर बहुत ही भयानक रहा है, जिसने मोदी-शाह को थर्रा कर रख दिया है. ऐसा क्यों हुआ, इसके कुछ कारण इस प्रकार हो सकते हैं –
- बड़े पैमाने पर आदिवासियों के नरसंहार से देश और दुनिया भर में मोदी सरकार की किरकिरी.
- देश भर के प्रगतिशील ताक़तों के द्वारा मोदी सरकार का विरोध.
- माओवादियों के नाम पर बड़े पैमाने पर आम नागरिकों की हत्या से आदिवासियों के बीच आक्रोश.
- पुलिसिया नरसंहार के कारण आदिवासियों का बड़े पैमाने पर माओवादियों में भर्ती.
- माओवादियों की ओर से लगातार शांतिवार्ता का पेशकश, जिसको दीठ सरकार निर्लज्जतापूर्वक नज़रअंदाज़ कर रही थी, जिसके कारण वह लगातार एक्सपोज़ हो रही थी.
- कारेगुट्टा की पहाड़ियों में माओवादियों के 20 दिनों की ‘घेराबंदी’ के बाद भी कोई सफलता का नहीं मिलना.
- कारेगुट्टा की घेराबंदी में बड़े पैमाने पर पुलिसियों के हाताहत होने, दहशत के कारण सैकड़ों पुलिसियों को डायरिया धर लेना. 5 कोबरा बटालियन के जवानों की आईईडी ब्लास्ट में मौत, चार अन्य का बुरी तरह ज़ख़्मी होना आदि.
- 20 दिन के घेराबंदी अभियान में हज़ारों करोड़ रुपये का फूंका जाना.
- माओवादियों का सरेंडर के बजाय मज़बूती से डट जाना.
- जनताना सरकार का मज़बूत होता जनाधार.
- माओवादी नेता रुपेश का पत्रकार के साथ इंटरव्यू.
यह कुछ कारण हैं जो मोदी-शाह एंड कंपनी ने ओपरेशन संकल्प से पल्ला झाड़ लिया. हालांकि बताया यह गया कि पाकिस्तान के साथ ‘युद्ध’ के कारण संकल्प जैसे क्रूर अभियान को रोका गया है. यदि मोदी-शाह के इन बातों को मान लिया जाये तो कहना होगा कि मोदी-शाह की नीतियों ने सेना को इतना कमज़ोर कर दिया है कि वह दो मोर्चों पर एक साथ युद्ध नहीं लड़ सकता.