
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के महासचिव बासवराज की भीषण मुठभेड़ में सभी कॉमरेड्स की शहादत के बाद ही दुश्मन बासवराज को जीवित पकड़ लिया और नज़दीक से गोली मारकर उनकी हत्या कर दी. माओवादी मामलों के जानकार कुछ लोगों का मानना है कि संभव है बासवराज की हत्या के पहले उन्हें यातनाएं दी गई हो. यही कारण है कि बासवराज के पार्थिव शरीर को परिजनों को देने के बजाय पुलिस ने आनन-फ़ानन में जला दिया. इसकी सूचना सीपीआई माओवादी के दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के प्रवक्ता विकल्प की ओर से 25 मई, 2025 को जारी प्रेस वक्तव्य के बाद साबित हो गई.
भाकपा (माओवाद) के महा सचिव कामरेड नंबाला केशवराव उर्फ बसवाराज अमर रहे, गुंडेकोट अमर शहीदों को क्रांतिकारी जोहार ! 2 मई, माड के गुंडेकोट हत्याकांड का निंदा करें !! के नारे के साथ जारी इस प्रेस वक्तव्य को हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं. इसके साथ ही उन्होंने वादा किया है कि क्रांतिकारी आंदोलन में हमारे शहीद कामरेडों के योगदान के बारे में हमारे सीसी के तरफ से बुकलेट जारी किया जायेगा.
नारायणपुर जिला, माड क्षेत्र के गुंडेकोट जंगल में 21 मई 2025 को गठित हत्याकांड में जान कुरबान किये हमारे प्यारे कामरेड, भारत के क्रांतिकारी आंदोलन के महान नेता, हमारे पार्टी, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के महासचिव कामरेड नंबाला केशवराव उर्फ बासवाराज उर्फ बीआर दादा को हमारे दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी सिर झुकाकर विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करती है.
साथ में इस हत्याकांड में शहीद हुए सीसी स्टाफ के राज्य कमेटी स्तर के कामरेड नागेश्वर राव उर्फ मधू उर्फ जंग नवीन, सीसी स्टाफ के कामरेड्स संगीता, भूमिका, विवेक, सीवायपीसी सचिव कामरेड चंदन उर्फ महेश, सीवायपीसी सदस्या सजंति के साथ गुड्डु, रामे, लाल्सू, सूर्या, मासे, कमला, नागेश, रागो, राजेश, रवि, सुनिल, सरिता, रेश्मा, राजु, जमुना, गीता, हुंगी, सनकी, बदरू, नीलेश, संजु…इन सभी कामरेडों को हमारी दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करती है. इन कामरेडों के अधूरे आशयों को पूरा करने का संकल्प लेती है.
इन शहीद कामरेडों के परिवार जन, मित्रों के प्रति हमारी एसजेडसी गहरी संवेदना व संताप व्यक्त करती है.
तमाम देशवासियों व पार्टी, पीएलजीए कतारों, दुनिया के मेहनतकश लोगों से, क्रांतिकारी संस्थाओं से हमारी पार्टी आह्वान करती है कि इन शहीदों के स्मृति में शहीद स्मृति सभाओं का आयोजन करें, उनके सर्वोच्च आशयों को पूरा करने दृढ़संकल्प के साथ संघर्ष के राह पर आगे बढ़े. ब्राहमणीय हिंदुत्व फासीवादी सरकार द्वारा षड़यंत्र के तहत किये गये इस पाशविक हत्याकांड की तीव्र निंदा करे.
हमारी पार्टी के महासचिव कामरेड बीआर दादा के माड़ में मौजूद रहने के बारे में पुलिस खुफिया वालों को पहले से जानकारी थी. इस 6 महीनों में माड क्षेत्र से अलग-अलग यूनिटों के कुछ लोग कमजोर होकर पुलिस अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण कर गद्दार बन गये. इन लोगों से हमारे गोपनीय समाचार उनको अपडेट होता गया. कामरेड बीआर दादा को निशाने पर लेकर जनवरी और मार्च महीनों में समाचार आधारित दो बड़े अभियानों का संचालन किया गया, लेकिन इसमें सफल नहीं हुए. इन अभियानों के बाद पिछले डेढ़ महीने में उस यूनिट के 6 जन दुश्मन के सामने सरेंडर किये. दादा के सुरक्षा में मुख्य जिम्मेदारी निभाने वाले सीवायपीसी मेंबर भी इनमें शामिल है.
माड आंदोलन को गाइड करने वाले यूनिफाइड कमांड के एक सदस्य भी इस बीच गद्दार बन गये. इससे उन लोगों का काम और आसान हो गया. ये सभी गद्दार लोग रेक्की सहित ऑपरेशन में भी शामिल हुए. इन लोगों के कारण से हमें इतना बड़ा नुकसान उठाना पडा. जनता को अपने जल-जंगल-जमीन से बेदखल कर यहां के संपदाओं को कारपोरेटों को सौंपने के मकसद से चल रहे इस कगार अभियान में यह सफलता इन गद्दारों की वजह से मिली.
योजना के तहत 17 मई से नारायणपुर और कोंडागाव डीआरजी वालों का डिप्लायमेंट ओरछा के तरफ से शुरू किये. 18 को दंतेवाड़ा, बीजापुर के डीआरजी, बस्तर फाइटर्स के जवान अंदर गये. 19 तारीख के सबेरे 9 बजे तक हमारे यूनिट के नजदीक पहुंच गये. अभियान से एक दिन पहले यानी 17 तारीख को उस यूनिट का एक पीपीसी मेंबर अपने पत्नी के साथ भाग गये. ये लोग कहां गये जानकारी लेने का है. इन लोग के भाग जाने के बाद वहां से डेरा बदली किया गया.
19 तारीख के सबेरे पुलिस फोर्स नजदीक गांव तक पहुंचने का समाचर मिलने के बाद वहां से निकलकर जा रहे थे. रास्ते में सबेरे 10 बजे पुलिस जवानों से पहली मुठभेड़ हुई. उसके बाद दिन भर 5 बार मुठभेड़ हुई. इन मुठभेड़ों में किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ. उनके घेराव क्षेत्र से बाहर निकलने के लिए 20 तारीख को दिनभर कोशिश किये थे, लेकिन सफल नहीं हुए. 20 की रात को हजारों पुलिस बल नजदीक से घेर लिये. 21 के सबेरे फायनल ऑपरेशन को अंजाम दिये.
एक तरफ अत्याधुनिक हथियारों से लैस हजारों गुण्डा बल, आपरेशन में इन लोगों को खाने पीने का व्यवस्था हेलिकाफ्टरों से किया जाता है. दूसरी तरफ देश के सामाजिक अर्थिक समस्याओं के चलते लड़ने वाले मात्र 35 जन क्रांतिकारी लोग, 60 घण्टों से इन लोगों को खाने पीने के लिए कुछ नहीं मिले, भूखे थे…
इन दोनों पक्षों के बीच में युद्ध शुरू होता है. हमारे कामरेडों ने बीआर दादा को अपने बीच में सुरक्षित जगह में रखकर प्रतिरोध किये. पहले राउंड में डीआरजी के कोटलू राम को मार गिराया. इसके बाद कुछ समय तक आगे आने के लिए कोई हिम्मत नहीं किये थे. बाद में फिर फायरिंग चालू किये. प्रतिरोध को सक्रियता के साथ नेतृत्व करते हुए सबसे पहले कमांडर चंदन शहीद हो गये. फिर भी सभी ने आख़िरी तक डट कर प्रतिरोध किये, कई जवानों को घायल किये. एक टीम आगे बढ़कर उनके घेराव को तोड़ने में सफल हुई लेकिन भारी शेलिंग के कारण बाकी लोग उस रास्ते से नहीं निकल सके.
घेराव को ब्रेकिंग किये टीम मुख्य टीम से अलग हो गई. सभी ने नेतृत्व को बचाने की अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाते हुए दादा को आखिरी तक छोटा खरोंच भी आने नहीं दिया. सभी शहीद होने के बाद कामरेड बीआर दादा को जिंदा पकड लिया, हत्या किया. हमारे कामरेड्स कुल 35 थे, इसमें 28 कामरेड्स शहीद हो गये. इस मुठभेड़ से 7 जन सुरक्षित निकल कर आये. शहीदों का सूची अलग है. कामरेड नीलेश का लाश हमारे पीएलजीए को मिला. पुलिस फोर्स घमंड़ी से वापस जाते समय इंद्रावति नदी किनारे आइईडी विस्पोट में और एक जवान रमेश हेमला ढेर हो गये, जो कुछ साल पहले उसी क्षेत्र में एलओएस कमांडर के रूप में काम किये थे.
सभी को ध्यान देने वाली मुख्य बात यह है कि इस सब जोन में हमारे तरफ से एकतरफा सीजफायर की घोषणा कर रखे थे. कामरेड बीआर दादा के सुझाव पर ही शांति वार्ता के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए सरकारी सशस्त्र बलों पर कार्रवाइयों पर रोक लगा रखे थे. 40 दिनों में ऐसा एक भी कार्रवाई नहीं किये थे. इस समय में षड़यंत्र के तहत केंद्र, राज्य सरकार ने मिलकर इतने बड़े हमला को अंजाम दिया. इसके बारे में एक भी मीडिया वाले सवाल नहीं उठा रहे हैं, चिंता का विषय है.
मुख्य नेतृत्व की सुरक्षा को लेकर पार्टी ने क्या किया…? सभी के मन में सवाल उठना साधारण बात है. एक बात में जवाब देना है तो हां … हम विफल हो गये. जनवरी महीने तक यह यूनिट 60 के ऊपर संख्या में रहती थी. प्रतिकूल परिस्थितियों में आसान मोबिलिटी के लिए संख्या को घटाया गया. उस कंपनी से इस बीच में कुछ सीनियर लोग कमजोर होकर सरेंडर किये. घटना के समय संख्या 35 थी. अप्रैल और मई में बड़े अभियानों का अंदेशा हमें पहले से था. लेकिन सुरक्षित जगह में जाने के लिए कामरेड बासवराज तैयार नहीं थे.
सुरक्षा के बारे में हमारे पूछने से उनका जवाब था… ‘मेरे बारे में आप लोग को चिंता नहीं करना, मै ज्यादा से ज्यादा और दो या तीन साल इस जिम्मेदारी को निभा सकता हूं. युवा नेतृत्व की सुरक्षा पर आप लोग को ध्यान देना है, शहादतों से आंदोलन कमजोर नहीं होते, शहादतें बेकार नहीं होते, इतिहास में ऐसा नहीं हुआ, इतिहास में शहादतें क्रांतिकारी आंदोलन को ताकत दिया. अभी भी मुझे विश्वास है…इन शहादतों के प्रेरणा से क्रांतिकारी आंदोलन कई गुणा ताकत के साथ नये सिरे से उभर कर सामने आयेगी, इस फासीवादी सरकार की दुष्ट योजना साकार नहीं होंगे, अंतिम जीत जनता की होगी.’ हमारे कई कामरेड्स के समझाने से भी दादा नहीं सुने. प्रतिकूल स्थिति में कैडर के साथ रहते हुए नजदीकी मार्गदर्शन देना तय किये.
हमारे आंदोलन और नेतृत्व पर दुष्प्रचार करने वाले राजनेता, पुलिस आधिकारी व गोदी मीडिया वालों से मैं सवाल कर रहा हूं…जिम्मेदारियों को छोड़कर नेतृत्व के भाग जाने का झूठा प्रचार करने वाले इन सभी को शर्मिंदगी होनी चाहिए. सच्चा क्रांतिकारी कभी नहीं डरेंगे, हमें देश की भविष्य को लेकर चिंता है. इस सफलता को बड़ी उपलब्धि कहते हुए सरकार और प्रतिक्रांतिकारी लोग जश्न मना रहा है.
हम भी मान रहे हैं कि उन लोगों के लिए यह बड़ी उपलब्धि है, कारपोरेट हिंदू राष्ट्र निर्माण करने की अपनी योजना को अमल करने की दिशा में यह एक उपलब्धि जरूर है. नया भारत, विकसित भारत के नाम से देश को कारपोरेट हिंदू राष्ट्र में तब्दील करने की आरएसएस, भाजपा के योजना से असहमत देश के करोड़ों लोग इस नुकसान को लेकर चिंता में हैं. यह भारत की क्रांतिकारी आंदोलन के लिए बहुत बड़ा नुकसान है.
इतिहास में 21 मई अंधेरे दिन के रूप में दर्ज होंगे. मजबूत दुश्मन का सामना करते समय क्रांतिकारी आंदोलन ऐसे नुकसानों को सामना करने की संभावना रहता है. कामरेड बासवराज का दृढ़ विचार व लंबे योगदान से निर्मित आंदोलन है, उनके मार्गदर्शन में काम करते हुए विकसित हुए दृढ़ कैड़र है और अनुभवी कामरेडों से लैस केंद्रीय कमेटी मौजूद है. इन पर आधारित होकर क्रांतिकारी आंदोलन इस प्रतिकूल स्थिति से उभरेंगे.
सरकार अपनी पूरी ताकत का इस्तेमाल कर रहा है, इतना ही नहीं साम्राज्यवादियों का मदद भी मिल रहा है. देश व अंतर्राष्ट्रीय कानून व नियमों का उल्लंघन करते हुए देश के अंदर सेना इस्तेमाल हो रहा है, बडा आर्टिलरी व टैंकों का इस्तेमाल हो रहा है. इससे सशस्त्र क्रांतिकारियों को भौतिक रूप से निर्मूलन करने में कुछ हद तक सफल होते होंगे, लेकिन क्रांतिकारी विचारों को खत्म करना संभव नहीं है. बड़े कारपोरेटों, साम्रज्यवादियों के बीच के सांठगांठ को समझिए. इन लोगों के लिए जब जरूरत पड़े तब ऐसा महोल तैयार करते रहते हैं.
प्रेस विज्ञप्ति का मज़मून यहां तक ही है. प्रेम विज्ञप्ति में दिया गया बोल्ड पंक्ति हमारी तरफ़ से है. जैसा कि पत्र बताता है कि ब्राह्मणवादी फ़ासिस्ट यह शासक साम्राज्यवादी शक्तियों के साथ गठजोड़ कर देनी की क्रांतिकारी जनता पर हमला बोल दिया है और इसके साथ शांति वार्ता व युद्ध विराम का मुख्य पहल महासचिव बासवराज की अगुवाई में ही किया गया था, जिनकी पकड़ कर पुलिस ने हत्या कर दिया.
तो ज़ाहिर है मोदी-शाह की सरकार ने शांति वार्ता और युद्ध विराम को भंग कर दिया है. अब माओवादी क्या करेंगे यह भविष्य के गर्भ में है. लेकिन तमाम क़यासों के बावजूद यह सत्य स्थापित है कि बासवराज की शहादत से माओवादी आंदोलन और मज़बूत और देशव्यापी आधार को और विस्तृत कर दिया है. जैसा कि महासचिव कहते थे – ‘शहादतों से आंदोलन कमजोर नहीं होते, शहादतें बेकार नहीं होती.’ यह कोरी बातें नहीं है, आज यह हक़ीक़त है. इस शहादत ने माओवादियों के प्रति लोगों के मन में और श्रद्धा, और ज़्यादा विश्वास पैदा कर दिया है. मोदी-शाह और डीआरजी के प्रति और घृणा भर दिया है.
- जगदीश प्रसाद
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