
सीपीआई माओवादी के महासचिव बासवराज और उनके साथियों की 21 मई को डीआरजी (पुलिसिया गुंडा गिरोह, जो आत्मसमर्पित माओवादी थे) के साथ एक ज़बरदस्त मुठभेड़ में शहीद हो गये, के पार्थिव शरीर को शासक वर्ग ने परिजनों को देने से इनकार कर दिया और उनके आठ साथियों के पार्थिव शरीर को आज जला दिया.
शासक वर्ग की इस नीचतापूर्ण हरकत ने एक बार फिर उस अंग्रेज़ी शासन की याद दिला दिया, जिसने भगत सिंह और उनके साथियों के पार्थिव शरीर को ठीक इसी तरह परिजनों को सौंपने के बजाय जला दिया था. इससे समूचा देश सन्न और भयानक ग़ुस्से में हैं.
प्रसिद्ध गांधीवादी हिमांशु कुमार लिखते हैं कि अन्याय के खिलाफ लड़ने वालों की लाश से भी डरता है अत्याचारी शासन. छत्तीसगढ़ में 21 तारीख को मारे गए नक्सली नेता और उनके साथियों की आठ लाशों को उनके परिवार वालों को नहीं दिया गया. लाश से क्या लड़ाई उससे क्या दुश्मनी ?
मारे गए नक्सली नेताओं के परिवार के सदस्य लगातार लाश मांगते रहे. आज छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने उन लाशों को खुद ही जला दिया. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सरकार को डर था कि इन शवों के अंतिम संस्कार में लाखों लोगों की भीड़ उमड़ सकती है.
उस भीड़ से ऐसा राजनीतिक संदेश देश में जा सकता था कि जिन नक्सलियों को सरकार खराब लोग और बुरा आतंकवादी बताती है, वे लोग जनता में कितने लोकप्रिय हैं. इसलिए सरकार ने लाशों को खुद ही जला दिया.
बेला भाटिया, जो एक रिसर्चर और वकील है, वह तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से आए हुए इन मारे गए नक्सलियों के पांच परिवारों के साथ उनकी मदद करने के लिए बस्तर के नारायणपुर में मौजूद हैं, उन्होंने फोन पर बताया कि इन परिवारों ने सरकार को शवों को जलाने की कोई अनुमति नहीं दी थी.
यह एक अलोकतांत्रिक और अमानवीय घटना है. किसी भी भारतीय नागरिक के शव के साथ सरकार को ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए. लेकिन इस घटना ने दुनिया भर में एक संदेश दिया कि भारत सरकार न तो भारत के किसी संविधान को मानती है, न कोर्ट का सम्मान करती है, न ही जेनेवा सम्मेलन की ही कोई इज़्ज़त करती है और न ही मानवता को मानती है.
ऐसी नीच, पाखंडी, अमानवीय और असंवैधानिक सत्ता का जितनी जल्दी अंत हो जाये, मानवता के लिए उतना ही अच्छा है. पिछले कई दिनों से कॉ. बासवराज के परिवार के सदस्य उनके पार्थिव शरीर को वापस ले जाने के लिए अथक प्रयास किया, यहां तक की कोर्ट का आदेश भी उनके पास था, लेकिन अंततः सत्ता ने उन सहित आठ साथियों के पार्थिव शरीर को जला कर नष्ट कर दिया.
यहां हम बस्तर टॉकिज के पत्रकार विकास तिवारी के साथ बेला भाटिया की बातचीत का टेक्स्ट रूपांतरण अपने पाठकों के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं.